नई दिल्ली: कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे की अटकलों के बीच खुद मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने अपने एग्जिट के संकेत दे दिए हैं. येदियुरप्पा ने कहा कि पार्टी ने उनके काम पर भरोसा कर 75 की उम्र पार करने के बावजूद मौका दिया. 25 जुलाई को उनकी सरकार के दो वर्ष पूरे होने वाले हैं. जिसके बाद एक कार्यक्रम रखा गया है. उसके बाद आलाकमान जो कहेगा, वो करेंगे. साथ ही पार्टी को वापस सत्ता में लाने का कार्य भी करेंगे. उन्होंने अपने समर्थकों, लिंगायत संतों का भी धन्यवाद किया और उनके सहयोग की अपील की.
वहीं येदियुरप्पा के इस बयान से ऐसा लगता है कि आलाकमान को काफी राहत मिली होगी. वजह साफ है कि कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा तेज होने के साथ ही लिंगायत समुदाय से येदियुरप्पा के समर्थन में आवाज उठने लगी है. विपक्ष कांग्रेस के भी बड़े लिंगायत नेता येदियुरप्पा के बचाव में आए हैं और बीजेपी आलाकमान को चेतावनी दी है कि लिंगायत समुदाय को नाराज न करें और येदियुरप्पा बड़े नेता होने के नाते उनकी डिग्निटी बनाएं रखें. इन नेताओं की लिस्ट में बड़े लिंगायत नेता एमबी पाटिल और शामानुर शिवाशंकरप्पा शामिल है.
येदियुरप्पा के घर लगा जमावड़ा
इसके बाद लिंगायत समुदाय के कई संतों का येदियुरप्पा के घर जमावड़ा देखा गया. हर दिन एक-एक दल उनसे मिलने पहुंचा. जिसने लिंगायत के बड़े मठ सिद्दागंगा मठ के सिद्दालिंगा स्वामीजी भी शामिल थे. आज भी करीब 500 संतों ने येदियुरप्पा के घर तक पैदल मार्च किया. इसे येदियुरप्पा का मसल फ्लेक्सिंग माना जा रहा है. वहीं पार्टी सूत्र बताते हैं कि पार्टी किसी भी तरह से लिंगायत वोट बेस को गलत संदेश नहीं देना चाहती है जो पार्टी को राज्य में सत्ता में लेकर आया है.
निर्विवाद नेता
कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा इस समुदाय के निर्विवाद नेता हैं. हालांकि, वह 78 साल के हैं, इसलिए पार्टी बदलाव चाहती है. लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं है. येदियुरप्पा को लिंगायतों का मास लीडर माना जाता है. फिलहाल राज्य में बीजेपी के पास येदियुरप्पा को रिप्लेस करने जैसा कोई चेहरा दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि चुनौती यह भी है कि क्या लिंगायत समुदाय उस चेहरे को स्वीकार करेगा? बता दें कि लिंगायत समुदाय बीजेपी का ट्रेडिशनल वोटर रहा है. राज्य में करीब 19% लिंगायत वोट शेयर है जो किसी भी पार्टी को जीत दिलाने के लिए अहम भूमिका निभाते हैं. यही कारण है कि बीजेपी ऐसा कोई भी रिस्क लेना नहीं चाहती. ना ही राजीव गांधी जैसी कोई भूल दोहराना चाहती है.
वीरेंद्र पाटिल को हटाया था
बता दें कि साल 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उस वक्त के मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को पद से हटा दिया था, जिसके बाद लिंगायत वोट बीजेपी की ओर मुड़ गए. वीरेंद्र पाटिल ने चुनावों में 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में 184 सीटें जीतकर कांग्रेस पार्टी को बड़ी जीत दिलाई थी. उनके बाहर निकलने के बाद भले ही कांग्रेस पार्टी दो बार सत्ता में आई, लेकिन लिंगायतों को वापस अपने पाले में लाने में कांग्रेस के सभी प्रयास विफल रहे. बीजेपी को भी यही डर फिलहाल सता रहा है कि लिंगायतों को किसी भी तरह अपने साथ रखा जाए.
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