Karnataka CM Race: सीएम पद पर क्यों नहीं बन रही बात, शिवकुमार को पार्टी ने क्या ऑफर किया और उनकी मांग क्या है?
Karnataka Election 2023: कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों में बहुमत हासिल करते हुए बीजेपी को सत्ता से बाहर किया है. पार्टी में अब सीएम के नाम को लेकर मंथन हो रहा है.
Karnataka CM News: कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस बरकरार है. कांग्रेस (Congress) में लगातार मंत्रणा चल रही है, लेकिन अभी तक सीएम के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है. बुधवार (17 मई) को भी सुबह से ही बैठकों का जोर जारी रहा. पहले सिद्धारमैया (Siddaramaiah) का नाम फाइनल होने की चर्चाएं तेज थीं, लेकिन अब सूत्रों का कहना है कि डीके शिवकुमार (DK Shivakumar) तैयार नहीं हो रहे हैं. पार्टी ने उन्हें मनाने के लिए ऑफर भी दिया है, लेकिन शिवकुमार राजी नहीं हैं.
आपको बताते हैं कि डीके शिवकुमार को कांग्रेस ने क्या पेशकश की है और उनकी मांग क्या है. कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने बुधवार को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से करीब एक घंटे तक चर्चा की. सूत्रों ने बताया कि राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व ने डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम के पद के साथ-साथ 6 बड़े मंत्रालय ऑफर किए हैं.
क्या है डीके की मांग?
इसके अलावा उनसे ढाई साल के बाद सीएम की कुर्सी देने का भी वादा किया गया है. वहीं शिवकुमार की मांग है कि डिप्टी सीएम एक ही बने, अभी कई एक से ज्यादा डिप्टी सीएम की चर्चा है. डिप्टी के बाद सीएम बनाया जाए. सीएम बनाने का एलान अभी ही हो, ताकि बाद में टीके सहदेव सिंह जैसा हाल न हो.
इस बीच राजनीतिक गलियारों में कई सवाल भी उठ रहे हैं. जैसे कि कांग्रेस के सामने सीएम का नाम तय करने को लेकर इतनी मुश्किल कैसे खड़ी हो गई है. नाम की घोषणा को लेकर कांग्रेस को किस बात की चिंता है. इन सब सवालों के जवाबों के लिए मुख्यमंत्री पद के दोनों प्रमुख दावेदारों सिद्धारमैया और शिवकुमार की ताकत और कमजोरी का विश्लेषण करना जरूरी है.
सिद्धारमैया के पक्ष में कौन सी बातें
सबसे पहले पूर्व सीएम सिद्धारमैया की ताकत के बारे में बात कर लेते हैं. सिद्धारमैया का राज्य भर में व्यापक प्रभाव है और कांग्रेस विधायकों के एक बड़े वर्ग के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं. उन्हें मुख्यमंत्री (2013-18) के रूप में सरकार चलाने का अनुभव भी है. वे 13 बजट प्रस्तुत करने के अनुभव के साथ सक्षम प्रशासक भी हैं. वे राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. जाहिर तौर पर उन्हें उनका समर्थन प्राप्त है.
सिद्धारमैया की कमजोरी की बात करें तो सांगठनिक रूप में पार्टी के साथ उनका इतना जुड़ाव नहीं है. उनके नेतृत्व में 2018 में कांग्रेस की सरकार की सत्ता में वापसी नहीं हो पाई थी. अभी भी कांग्रेस के पुराने नेताओं के एक वर्ग की ओर से उन्हें बाहरी माना जाता है. वह पहले जेडीएस में थे. आयु भी एक कारक हो सकता है. सिद्धारमैया 75 वर्ष के हैं.
डीके शिवकुमार की ताकत और कमजोरी
अब डीके शिवकुमार के बारे में बात कर लेते हैं. शिवकुमार की ताकतों में मजबूत सांगठनिक क्षमता और चुनावों में पार्टी को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाना शामिल है. वे पार्टी के प्रति वफादारी के लिए जाने जाते हैं. मुश्किल समय में उन्हें कांग्रेस का प्रमुख संकटमोचक माना जाता है. प्रमुख वोक्कालिगा समुदाय, उसके प्रभावशाली संतों और नेताओं का समर्थन भी उन्हें प्राप्त है. साथ ही उनकी गांधी परिवार से निकटता है खासकर कि सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से. आयु उनके पक्ष में है ये कोई कारक नहीं है. लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है और उन्होंने विभिन्न विभागों को संभाला भी है.
शिवकुमार के खिलाफ जो बातें जा रही हैं. वे हैं- आईटी, ईडी और सीबीआई में उनके खिलाफ मामले, तिहाड़ जेल में सजा, सिद्धारमैया की तुलना में कम जन अपील और अनुभव, कुल मिलाकर उनका प्रभाव पुराने मैसुरू क्षेत्र तक सीमित है. साथ ही उन्हें अन्य समुदायों से ज्यादा समर्थन नहीं है. शिवकुमार की तुलना में बड़ी संख्या में विधायकों के सिद्धारमैया का समर्थन करने की संभावना है. वहीं राहुल गांधी का सिद्धारमैया को स्पष्ट समर्थन है.
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