D K Shivakumar: सुप्रीम कोर्ट ने डीके शिवकुमार को दी बड़ी राहत, ED का केस किया रद्द
DK Shivakumar Case: कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिव कुमार के खिलाफ दर्ज ED केस को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. शिव कुमार के घर से करोड़ रुपये बरामद हुए थे जिस मामले में केस दर्ज है.
Supreme Court Hearing: कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने उनके खिलाफ ED की तरफ से दर्ज केस खारिज कर दिया है. यह केस अगस्त 2017 में दिल्ली में शिवकुमार के घर से करोड़ों रुपए नकद की बरामदगी से जुड़ा है. इनकम टैक्स के छापे में यह रकम मिली थी. इसके बाद ED ने भी अपनी तरफ से केस दर्ज कर लिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि आपराधिक साजिश यानी IPC की धारा 120B के आरोप में अगर किसी एजेंसी ने किसी को आरोपी बनाया हो, तो यह ED की तरफ से PMLA का मुकदमा दर्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं है. अगर PMLA कानून में दिए गए अपराध की साजिश में कोई शामिल रहा हो, तभी मुकदमा चल सकता है.
पुराने फैसेल के आधार पर मिली राहत
दरअसल, PMLA केस की सीमाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल एक फैसला दिया था. उसी के आधार पर शिवकुमार को राहत मिली है. कोर्ट ने यह भी कहा कि उसके पिछले आदेश के खिलाफ पुनर्विचार अर्जी लंबित है. अगर उसे स्वीकार कर फैसला पलट दिया जाता है, तो ED आज के आदेश को वापस लेने की मांग के साथ कोर्ट को आवेदन दे सकता है.
क्या है मामला?
डीके शिवकुमार एवं कुछ अन्य लोगों पर आरोप था कि उन्होंने बेंगलुरु से लेकर दिल्ली तक एक बड़ा नेटवर्क बनाया था. इन लोगों के जरिए अघोषित कैश को ट्रांसफर किया जाता था. इस मामले में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने छापेमारी की थी और फिर मामले की जांच ईडी ने संभाल ली थी. इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने अगस्त 2019 में डीके शिवकुमार को राहत देने से इनकार कर दिया था और ईडी के समन पर रोक नहीं लगाई थी. इसके खिलाफ डीके शिवकुमार ने फिर शीर्ष अदालत का रुख किया था.
इस मामले में पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि डीके शिवकुमार के खिलाफ ईडी की जांच में कहा गया है कि उन्होंने आपराधिक साजिश रची थी. एजेंसी का यदि यह आरोप है तो फिर यह आईपीसी के सेक्शन 120 के तहत आता है. ऐसे में यह केस प्रवर्तन निदेशालय के तहत नहीं आता है. सिंघवी ने कहा कि हाई कोर्ट का आदेश गलत था क्योंकि सिर्फ 120बी के तहत आने वाले अपराध की जांच प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट के तहत नहीं की जा सकती.