Karnataka Election Result: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में खुद को किंगमेकर मानकर चल रही जेडीएस तकरीबन हाशिये पर नजर आ रही है. यह ऐसे किंगमेकर की कहानी है जिसका पतन अपनी कीमत पर किंग को बढ़ावा देने पर हुआ है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के नतीजे जेडीएस के खराब प्रदर्शन और उसकी पारंपरिक जमीन हारने का सबसे बड़ा सबूत हैं.
साल 1999 में जेडीएस के गठन के बाद से राज्य के चुनाव में पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली पार्टी के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगते रहे हैं. अपने अस्तित्व में आने के 24 सालों बाद भी जेडीएस अपने दम पर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त ताकत नहीं जुटा सकी. यही वजह रही कि राज्य में दो बड़ी पार्टियों को सत्ता संभालने के लिए उनको सपोर्ट करने में जेडीएस समाप्त हो गई.
इस तरह जेडीएस एक बार नहीं बल्कि दो बार जीतने वाली टीम का हिस्सा रही. साल 2006 और 2018 में जेडीएस नेताओं ने क्रमशः बीजेपी और कांग्रेस को सरकार बनाने में मदद की और राज्य की विधानसभा के सत्ता पक्ष में बैठे. जेडीएस की स्थापना जुलाई, 1999 में एचडी देवेगौड़ा ने जनता दल से अलग होने के बाद की थी.
जेडीएस को कैसे मिला किंगमेकर का टैग
सितंबर, 1999 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में गठन के तुरंत बाद नई पार्टी (जेडीएस) मैदान में थी. उस समय इसने 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसके बाद जेडीएस को तैयारी के लिए समय मिला और वह साल 2004 के चुनावों में प्रबल दावेदार बन गई. इस दौरान पहली बार जेडीएस को किंगमेकर की भूमिका निभाने का मौका मिला.
साल 2004 के चुनावों में बीजेपी ने 79 सीटें और कांग्रेस को 65 सीटें मिली थी. वहीं, जेडीएस ने 58 सीटें जीतीं और उसने कांग्रेस का समर्थन किया. उस समय धरम सिंह सीएम बने, जो कांग्रेस से थे, लेकिन साल 2006 में जेडीएस ने कांग्रेस के पैरों तले से जमीन खींच ली और धरम सिंह सरकार गिर गई. उस दौरान एचडी कुमारस्वामी ने बीजेपी की मदद की और कर्नाटक के सीएम बने. बीएस येदियुरप्पा डिप्टी सीएम बने.
साल 2008 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी कर्नाटक में 110 सीटें हासिल करके सत्ता में आई थी. 224 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत की संख्या 113 होने के चलते बीजेपी थोड़ा पीछे रह गई, लेकिन बीजेपी ने छह निर्दलीय उम्मीदवारों की मदद से सरकार बनाई. उस चुनाव में कांग्रेस ने 80 सीटें और जेडीएस ने 28 सीटें जीती थीं.
साल 2013 में कांग्रेस 122 सीटों के साथ कर्नाटक में कार्यभार संभालने वाली सबसे बड़ी पार्टी बन गई. सिद्धारमैया ने सीएम के रूप में शपथ ली. इस चुनाव में जेडीएस को 40 सीटें मिली थी, लेकिन कांग्रेस ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया था. इसलिए इसमें जेडीएस की कोई भूमिका नहीं थी.
साल 2018 के चुनाव में बीजेपी ने 104 सीटें, कांग्रेस ने 80 और जेडीएस ने 37 सीटें जीती थीं. बीजेपी की तरफ से बीएस येदियुरप्पा सीएम बने, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ओर से उन्हें सदन के पटल पर बहुमत साबित करने के लिए कहा गया, जिसके 72 घंटे के भीतर उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
इस बीच कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी और जेडीएस को फिर से किंगमेकर की भूमिका निभाने का मौका मिला था. हालांकि, ये सरकार सिर्फ 14 महीने ही चली, क्योंकि बीजेपी के 'ऑपरेशन लोटस' के चलते सत्तारूढ़ गठबंधन के 17 विधायक और दो निर्दलीय विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. इसके बाद बीजेपी ने सरकार बनाई और येदियुरप्पा कर्नाटक के सीएम बने.
जेडीएस का वोट शेयर रहा कमजोर
अगर वोट शेयर पर नजर दौड़ाएं तो ये साफ होता है कि जेडीएस क्यों मैदान में है. कांग्रेस ने साल 2013 में अपने दम पर बहुमत हासिल किया. हालांकि, 2018 में बीजेपी के फिर से सत्ता में आने और उसके गढ़ क्षेत्रों में जेडीएस के मजबूत होने से कांग्रेस की सीटों में 19 प्रतिशत की कमी आई. इस बार के चुनाव में कांग्रेस की जीत से जेडीएस के वोट शेयर के कमजोर होने का पता चलता है.
यह स्पष्ट है कि इस विधानसभा चुनाव में जेडीएस के वोटों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस में स्थानांतरित हो गया है. जेडीएस ने कांग्रेस की वोट संख्या बढ़ाने और किंगमेकर के रूप में अपनी भूमिका को समाप्त कर दिया है. दक्षिणी कर्नाटक में जेडीएस की अच्छी पकड़ है. यहां पर बीजेपी और कांग्रेस की स्थिति मजबूत नहीं है. पिछले दो चुनावों में जेडीएस ने दक्षिणी कर्नाटक के उप क्षेत्रों से अपनी आधी से अधिक सीटें जीती थीं. लेकिन, यह भी संभावना है कि बीजेपी के खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी लहर ने जेडीएस को भी प्रभावित किया, जिससे उसके वोट कांग्रेस के लिए समेकित हो गए.
वोक्कालिगा, मुस्लिम और अनुसूचित जाति के बीच पुराने मैसूर क्षेत्र में जेडीएस के वोट शेयर में गिरावट आई है. इन वोट शेयर का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस में स्थानांतरित हो गया है. साथ ही, पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया के साथ एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग के बीच लोकप्रियता भी वोट शिफ्ट का एक बड़ा कारण बनी. हमेशा सहयोगी की भूमिका निभाने वाली जेडीएस को राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए अब नई रणनीति तलाशनी होगी.
यहां देखें पिछली विधानसभा चुनाव के आंकड़ें?
जेडीएस को 1999 में 10 सीटें, 2004 में 58 सीटें, 2008 में 28 सीटें, 2013 में 40 और 2018 में 37 सीटें मिली थीं.
कांग्रेस को 1999 में 132 सीटें, 2004 में 65 सीटें, 2008 में 80 सीटें, 2013 में 122 सीटें और 2018 में 80 सीटें प्राप्त हुई थीं.
बीजेपी के खाते में 1999 में 44 सीटें, 2004 में 79 सीटें, 2008 में 110 सीटें, 2013 में 40 सीटें और 2018 में 104 सीटें आई थीं.