नई दिल्ली: द टेलीग्राफ की वरिष्ठ पत्रकार मानिनी चटर्जी ने अपने एक लेख में लिखा कि कर्नाटक में बीजेपी की हार ये बताती है कि किसी भी दल को सत्ता के नशे में चूर नहीं होना चाहिए. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जिस तरह चरम स्तर पर नशा व्यक्ति के सोचने-समझने की शक्ति को छीन लेता है उसी तरह सत्ता का नशा भी भयावह होता है. बीजेपी को कर्नाटक चुनाव में इसी चरम नशा का फल भोगड़ा पड़ा है.
मानिनी ने लिखा कि 15 मई को चुनाव परिणाम आते ही मीडिया में ये शोर होने लगा कि बीजेपी सरकार बना रही है और अब उसकी 21 राज्यों में सरकार होगी. बीजेपी प्रवक्ता भी इसी बात को चैनलों पर दोहरा रहे थे. चारों तरफ मोदी लहर की बात हो रही थी कि किस तरह अब दक्षिण में बीजेपी के लिए दरवाजे खुल गए हैं. हालांकि लोगों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि 2008 में येदुरप्पा की अगुवाई में बीजेपी को 110 सीटें मिली थीं और इस बार के चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 104 सीटें ही मिल सकीं.
अगर वाकई मोदी लहर था तो बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले और बेहतर करना चाहिए था. क्यों बीजेपी अपने 10 साल पहले जीती सीट से कम जीत पाई. मालिनी ने लिखा कि सत्ता के नशे में चूर दल में अतिश्योक्ति आ ही जाती है और यही वजह थी कि बीजेपी ने अंतिम फैसले का इंतजार नहीं किया और तुरंत अपनी जीत घोषित कर दी. बीजेपी ने ये सोचा ही नहीं कि अगर पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो उसे क्या करना होगा.
उन्होंने लिखा कि बीजेपी की लगातार जीत, चाहे वो बहुमत से हो या जोड़-तोड़ से, ने उनके सोचने की शक्ति छीन ली. कर्नाटक में बीजेपी ने जैसे ही 100 का आंकड़ा पार किया तो उनके नेता जीत की खुमारी में खो गए और उन्होंने प्लान बी पर काम नहीं किया. वहीं कांग्रेस जेडीएस के साथ गठबंधन का विचार करने लगी.
मालिनी ने लिखा कि बीजेपी ने जिस तरह गोवा, मणिपुर और मेघालय में सरकार बनाई थी उसे लेकर वो अतिआत्मविश्वास में चली गई. उसे लगा कि वो 104 सीटें पा कर आसानी से कर्नाटक में सरकार बना लेगी. गोवा, मणिपुर और मेघालय में कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा सीटें मिली थीं जबकि सरकार बीजेपी ने बना ली. गोवा में कांग्रेस के पास 17 सीटें थीं तो बीजेपी के 13 ही सीटें थी और बहुमत के लिए 21 सीटें चाहिए था. इसी तरह मणिपुर में कांग्रेस ने 28 सीटें जीती जबकि बीजेपी को 21 सीटें ही जीत पाई थी. यहां पर बहुमत के लिए 31 सीटें चाहिए थी. इसी तरह मेघालय में कांग्रेस 21 मिली थी वहीं जबकि बीजेपी सिर्फ दो सीटें ही जीत पाई थी. इन सभी जगहों पर बीजेपी ने छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली थी. मालिनी ने लिखा कि ऐसी परिस्थितियों में बीजेपी के सरकार बना लेने पर आलोचना नहीं हुई बल्कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को आधुनिक चाणक्य के रूप में महिमामंडित किया गया.
अगर बीजेपी ने इन जगहों पर कांग्रेस के मुकाबले कम सीट जीतने के बाद भी सरकार बना ली थी तो फिर कर्नाटक इनके लिए बाएं हाथ का खेल होना चाहिए. उन्होंने लिखा कि जब कांग्रेस और जेडीएस ने गर्वनर के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था तो बीजेपी अन्य मौके तलाश सकती थी. लेकिन सत्ता के नशे ने उन्हें सोचने नहीं दिया और ना ही इन्होंने पार्टी के अन्य लोगों से राय सलाह लेने की कोशिश की. न तो नरेन्द्र मोदी और न ही अमित शाह ने अपने पार्टी के अन्य सदस्यों से इस पर बात करने की कोशिश की. उन्होंने लिखा कि अगर इन लोगों ने राजनाथ सिंह या सुषमा स्वराज या नितिन गडकरी या मुरली मनोहर जोशी से बात की होती तो वे यही सुझाव देते कि पहले एचडी कुमारस्वामी की सरकार बनने दिया जाए. इसके बाद इनमें से धीरे-धीरे बागी विधायकों को अलग किया जाए और फिर सरकार बनाए.
इसके बजाय मोदी और शाह ने सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करके अनैतिक तरीके से बहुमत साबित करने की कोशिश की. ये बेहद अप्रत्याशित था जब गवर्नर वाजुभाई वाला ने कहा कि वे 12 घंटे बाद येदुरप्पा को शपथ दिलाएंगे और उन्होंने बहुमत साबित करने का 15 दिन का समय दे दिया. उन्होंने लिखा कि 15 दिन का समय देना खरीद-फरोख्त की खुली छूट थी. बीजेपी कर्नाटक में सरकार बनाने का दावा करके गवर्नर और अटॉर्नी जनरल का मजाक उड़ाया. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और मुकुल रोहतगी सुप्रीम कोर्ट में कहते रहे कि बीजेपी सरकार बना सकती है उन्हें समय दिया जाए. अगर 15 दिन नहीं तो 7 दिन, अगर 7 दिन नहीं तो तीन दे दिया जाए.
मालिनी ने लिखा कि इस पूरे मामले में असंवैधानिक काम रोकने में सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य भूमिका निभाई. हाल फिलहाल में सुप्रीम कोर्ट काफी विवादों में रहा है लेकिन एक बार फिर कोर्ट ने साबित किया लोकतंत्र को बनाए रखने में यह भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों की स्थायी ताकत का प्रमाण है.