कुछ देर में कुमारस्वामी सरकार का फ्लोर टेस्ट, इससे पहले जान लीजिए सभी नियम-कानून
Karnataka Floor Test: कर्नाटक में जारी सियासी संकट का आज अंत हो सकता है. जेडीएस-कांग्रेस सरकार के मुखिया एच डी कुमारस्वामी कर्नाटक विधानसभा में विश्वास मत का सामना करेंगे.
कर्नाटक: 16 विधायकों के इस्तीफा देने से कर्नाटक विधानसभा में कुल सीटों की संख्या 225 से घटकर 209 हो गया है. कांग्रेस-जेडी (एस) के विधायकों की संख्या 101 (बसपा का एक) पर आ गई है. विधानसभा सभा में बहुमत साबित करने के लिए 105 सीटों का होना जरूरी है. ऐसे में कर्नाटक के सिय़ासी नाटक में आज का दिन बेहद दिलचस्प होगा.
कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी सरकार की आज शक्ति परीक्षण है. कांग्रेस और जेडीएस सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहा है. अगर फ्लोर टेस्ट से पहले स्पीकर रमेश कुमार 16 बागी विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लेते हैं तो कर्नाटक विधानसभा में सदस्यों की संख्या 225 से घटकर 209 रह जाएगी क्योंकि स्पीकर वोटिंग में हिस्सा नहीं लेते हैं. ऐसे में केवल 208 विधायक ही विश्वास मत पर वोटिंग कर सकेंगे. सदन में अभी तक स्पीकर को छोड़कर कांग्रेस के 78 और जेडीएस के 37 विधायक हैं.
क्या होता है फ्लोर टेस्ट
फ्लोर टेस्ट के जरिए यह फैसला लिया जाता है कि वर्तमान सरकार या मुख्यमंत्री के पास पर्याप्त बहुमत है या नहीं. चुने हुए विधायक अपने मत के जरिए सरकार के भविष्य का फैसला करते हैं. फ्लोर टेस्ट सदन में चलने वाली एक पारदर्शी प्रक्रिया है और इसमें राज्यपाल का किसी भी तरह से कोई हस्तक्षेप नहीं होता. सत्ता पर काबिज पार्टी के लिए यह बेहद जरुरी होता है कि वह फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करे. इससे साफ है कि फ्लोर टेस्ट में किसी पार्टी या गठबंधन के बहुमत के आधार पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किए गए मुख्यमंत्री को विश्वास मत हासिल करने के लिए कहा जाता है.
क्या होता है फ्लोर टेस्ट में ?
विधानसभा स्पीकर बहुमत का पता लगाने के लिए फ्लोर टेस्ट आयोजित करता है. मुख्यमंत्री को विश्वास मत हासिल करना होगा और बहुमत हासिल करना होगा. अगर फ्लोर टेस्ट में मुख्यमंत्री बहुमत साबित करने में असफल रहे तो उनको इस्तीफा देना होगा.
कम्पोजिट फ्लोर टेस्ट क्या होता है
कम्पोजिट फ्लोर टेस्ट तभी लिया जाता है जब एक से अधिक दल सरकार बनाने का दावा करते हैं. यह तब होता है जब बहुमत स्पष्ट नहीं होता है और राज्य का राज्यपाल बहुमत स्थापित करने के लिए विशेष सत्र बुलाता है.
कैसे होती है वोटिंग
साधारण शब्दों में समझे तो फ्लोर टेस्ट में सदन के अंदर मौजूद विधायक बैलट बॉक्स में अपना मत डालते हैं जिसके बाद मतों की गिनती होती और फैसला सुनाया जाता है. हालांकि फ्लोर टेस्ट ध्वनिमत, ईवीएम द्वारा या बैलट बॉक्स किसी भी तरह से किया जा सकता है. यदि दोनों पार्टी को वोट बराबर मिलते हैं तो ऐसे में स्पीकर अपनी पसंदीदा को वोट करके सरकार बनवा सकता है.
वोटिंग होने की सूरत में पहले विधायकों की ओर से ध्वनि मत लिया जाएगा. इसके बाद कोरम बेल बजेगी. फिर सदन में मौजूद सभी विधायकों को पक्ष और विपक्ष में बंटने को कहा जाएगा. विधायक सदन में बने ‘हां’ या ‘नहीं’ वाले लॉबी की ओर रुख करते हैं. इसके बाद पक्ष-विपक्ष में बंटे विधायकों की गिनती की जाएगी. फिर स्पीकर परिणाम की घोषणा करेंगे. हालांकि कई बार ध्वनिमत से फ्लोर टेस्ट करवाने या विधायकों की सदस्यता रद्द कर बहुमत परीक्षण के दौरान गड़बड़ी होने के कई केस सामने आ चुके हैं.
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विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव में अंतर क्या है
विश्वास प्रस्ताव सरकार की ओर से अपना बहुमत और मंत्रिमंडल में सदन का विश्वास स्थापित करने के लिए लाया जाता है, जबकि अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से सरकार के खिलाफ लाया जाता है.
स्पीकर की भूमिका क्या है
स्पीकर प्लोर टेस्ट का आयोजन करता है. स्पीकर का मुक्य काम नव निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाना है. वह अध्यक्ष सदन के सदस्यों के इस्तीफे को भी देखता है. विश्वास मत के दौरान विधायकों की अयोग्यता के साथ, भारत के दलबदल विरोधी कानून को देखते हुए स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण है. प्लोर टेस्ट के दौरान टाई की स्थिति में स्पीकर अपने मत का प्रयोग कर सकता है.
किसी भी विधायक को अयोग्य करार देने से क्या मतलब है
संविधान का अनुच्छेद 102 आचार संहिता और लाभ के कार्यालय आदि से संबंधित अयोग्यता के लिए आधार देता है. वहीं संविधान के अनुच्छेद 99 के तहत, किसी सदन का निर्वाचित सदस्य पद की शपथ लेने से पहले अपनी सीट नहीं ले सकता है. अनुच्छेद 104 के तहत उन्हें शपथ लेने से पहले वोट देने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है. इसका मतलब यह है कि नवनिर्वाचित विधायकों के शपथ ग्रहण से पहले फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता है. अयोग्यता का दूसरा प्रमुख कारण दलबदल कानून से जुड़ा होता है.
क्रॉस-वोटिंग या वोटिंग न करने से क्या विधायकों को अयोग्य साबित किया जा सकता है
विधायक कुछ परिस्थितियों में अयोग्यता के जोखिम के बिना पार्टी बदल सकते हैं. ऐसा एक तब होता है जब कोई पार्टी किसी अन्य पार्टी के साथ विलय करने का फैसला करती है. कानून यह अनुमति तब देता है जब उस पार्टी के कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हो. हालांकि क्रॉस-वोटिंग और विधानसभा में मौजूद रहते हुए वोटिंग न करने के कारण उन्हें अयोग्य साबित किया जा सकता है.
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