Karanataka High Court: कर्नाटक हाईकोर्ट ने ट्विटर की एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सोशल मीडिया का ज्यादातर इस्तेमाल आम जनता के राजनीतिक मत को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है. ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि सरकार इन पर नियंत्रण करने के लिए प्रभावी कानून बनाए. अगर जल्द ही ऐसा नहीं किया गया तो यह ये देश के लोकतांत्रिक ढ़ांचे को घातक नुकसान पहुंचा सकता है.


जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की सिंगल बेंच ने ट्विटर की याचिका रद्द करते हुए लॉ ऑफ लैंड को सर्वोच्च बताया है. इस मामले को सुनने के दौरान जस्टिस दिक्षित ने टिप्पणी करते हुए कहा, सोशल मीडिया ने लोगों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने के तरीके को बदल दिया है और अक्सर इसका इस्तेमाल मतदाताओं को गुमराह करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. 


उन्होंने कहा, इन दिनों लोग अपने आस-पास की घटनाओं के बारे में जानने के सोशल मीडिया पर तेजी से भरोसा कर रहे हैं. जो शायद लोकतंत्र को मजबूत भी कर सकता है, तो कमजोर भी कर सकता है. इसलिए इस पर निगरानी और नियंत्रण की जरूरत है क्योंकि ऐसा नहीं होने पर यह बहुत ही घातक रूप ले सकता है. 


क्या थी ट्विटर की याचिका?
केंद्र सरकार ने ट्विटर को उसके प्लेटफॉर्म पर बने कुछ अकाउंट को भारत में ब्लॉक करने का आदेश दिया था. ट्विटर इसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचा था, जहां पूरे मामले को सुनने के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने बयान में कहा था कि सरकार ने जिन सोशल मीडिया अकाउंट को ब्लॉक करने का आदेश दिया था दरअसल उन्होंने भारत की संप्रभुकता को नुकसान पहुंचाने वाली बातें की थी, और कुछ ने समाज में अशांति फैलानी की भी कोशिश की थी. 


कोर्ट ने कहा, चूंकि सोशल मीडिया लोगों के एक बड़े समूह की राजनीतिक विचारधाराओं को प्रभावित करने की क्षमता रखता है लिहाजा सक्षम संस्थाओं को इसके प्रति विशेष संवेदनशील रहने की जरूरत है. 


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