'किशोरों के बीच सहमति से बने संबंध अपराध नहीं', पॉक्सो एक्ट पर कर्नाटक हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
POCSO Act News: पॉक्सो एक्ट 2012 में लागू हुआ था. इसका मकसद बच्चों को यौन अपराधों और यौन शोषण से बचाना है. इसके तहत अपराध की गंभीरता के आधार पर दोषी को सजा मिलती है.
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POCSO Act: कर्नाटक हाई कोर्ट में हाल ही में एक केस की सुनवाई के दौरान 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्चुअल ओफेंस' (पॉक्सो) एक्ट पर अहम टिप्पणी की गई. हाईकोर्ट ने 'सी रघु वर्मा बनाम कर्नाटक राज्य' मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि पॉक्सो एक्ट का मकसद किशोरों के बीच सहमति से यौन संबंधों को अपराध बनाना नहीं है, बल्कि उन्हें यौन शोषण से बचाना है. पॉक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई होने पर आरोपी के खिलाफ सख्त धाराएं लगाई जाती हैं.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस हेमंत चंदनगौदर ने पॉक्सो एक्ट पर ये अहम टिप्पणी करते हुए 21 वर्षीय एक युवक के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द कर दिया. इस युवक ने एक नाबालिग लड़की से शादी की थी, जिसके बाद उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), पॉक्सो एक्ट और बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों के तहत केस दर्ज किया गया था. अदालत की इस टिप्पणी को काफी अहम माना जा रहा है.
हाई कोर्ट ने केस पर क्या टिप्पणी की?
दरअसल, अदालत का कहना था कि आरोपी और नाबालिग लड़की समाज के उस तबके से आते हैं, जो आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़ा हुआ है. उनके साथ ज्यादा जानकारी का अभाव है. उन्हें ये भी नहीं मालूम था कि अगर वे शादी करते हैं, तो इसके क्या नतीजे निकलेंगे.
हाई कोर्ट ने आगे कहा, 'पॉक्सो एक्ट का मकसद नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है, न कि दो किशोरों के बीच सहमति से बने संबंध को अपराध बनाना. जिन्हें ये भी नहीं मालूम है कि सहमति से बनाए गए यौन संबंधों के क्या नतीजे निकल सकते हैं.'
क्या है मामला?
आरोपी युवक ने एक नाबालिग लड़की के साथ शादी की और उसके साथ संबंध बनाए, जबकि उसे मालूम था कि लड़की नाबालिग है. वर्तमान में लड़की की उम्र महज 16 साल है. इसके बाद बेंगलुरू पुलिस ने उसके ऊपर केस दर्ज किया. वहीं, आरोपी युवक ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपने खिलाफ दर्ज किए गए मामले को रद्द करने की मांग की. उसका कहना था कि वह लड़की के साथ रिलेशनशिप में था और उसकी सहमति से ही संबंध बनाए गए.
इसके बाद नाबालिग लड़की और उसके माता-पिता ने हाईकोर्ट के समक्ष एक संयुक्त हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि शादी अनजाने में हुई है और उन्हें कानूनों के बारे में नहीं मालूम था. वहीं, अदालत ने आरोपी युवक को तुरंत न्यायिक हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया और उसके खिलाफ दर्ज किए गए मामलों को रद्द कर दिया. अदालत ने इस बात को भी संज्ञान में लिया कि नाबालिग लड़की से जन्मे बच्चे का ख्याल रखने के लिए पिता को रिहा करना जरूरी है.
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