Karnataka High Court Reprimanded State Government: कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (13 फरवरी) को औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (केआईएडीबी) की कड़ी फटकार लगाई है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार 'लुटेरों के रूप में कार्य नहीं कर सकती.' कोर्ट ने आगे सेंट ऑगस्टाइन की पुस्तक 'द सिटी ऑफ गॉड' का जिक्र करते हुए कहा, 'न्याय के बिना, राज्य लुटेरों के एक बड़े गिरोह के अलावा और क्या है?'
याचिकाकर्ता एम वी गुरुप्रसाद और नंदिनी गुरुप्रसाद ने 2007 में केआईएडीबी की ओर से उनकी भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. शुरू में, उनका नाम अधिग्रहण अधिसूचना से गायब था. सरकार को 2014 से लेकर अब तक एक भूल-सुधार पत्र जारी करने और उनके नाम शामिल करने में सात साल लग गए, लेकिन विभाग की लापरवाही यहीं नहीं रुकी. उसके बाद से अभी तक उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया है.
अदालत ने सुनाया यह फैसला
न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने अपने हालिया फैसले में कहा, "इस बात की कोई विश्वसनीय व्याख्या नहीं है कि डेढ़ दशक से मुआवजे का भुगतान क्यों रोका जा रहा है." हालांकि भूमि अधिग्रहण की चुनौती को अदालत ने खारिज कर दिया था, लेकिन आदेश दिया कि मुआवजे को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के तहत गणना किए गए 50 प्रतिशत की दर पर फिर से तय किया जाना चाहिए. केआईएडीबी को याचिकाकर्ताओं को प्रति एकड़ 25,000 रुपये की लागत का भुगतान करने का भी निर्देश दिया गया था.
अधिकारियों पर उच्च न्यायालय ने की टिप्पणी
अधिकारियों पर टिप्पणी करते हुए उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, "सरकार नागरिकों की भूमि के लुटेरे के रूप में काम नहीं कर सकती है, कथित सार्वजनिक उद्देश्य के लिए निजी भूमि को बिना मुआवजे के लेना अनुच्छेद 300ए के तहत अधिनियमित संवैधानिक गारंटी की भावना के खिलाफ है."
ये है पूरा मामला
गुरुप्रसाद की पांच एकड़ और एक गुंटा भूमि और उनकी पत्नी नंदिनी के नाम पर 38 गुंटा भूमि केआईएडीबी की ओर से अधिग्रहित की गई थी. अदालत ने नोट किया कि आवंटन के बाद इन्हें केआईएडीबी से 7.5 करोड़ रुपये मिले हैं, "वह भी बाजार मूल्य के 50 प्रतिशत की छूट दर के साथ."
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