(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Karnataka High Court: 'साबित करो शादी कानूनी है', हाई कोर्ट ने हिंसा के आरोपों से पति को किया बरी, कहा- दूसरी पत्नी को हक नहीं
Karnataka High Court: महिला की शिकायत पर ट्रायल कोर्ट ने पति को हिंसा करने का दोषी ठहराया था, जिसके खिलाफ उसने कर्नाटक हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
Karnataka High Court: कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (शादीशुदा महिला के साथ क्रूरता) के मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया. 46 वर्षीय शख्स के खिलाफ उसकी दूसरी पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई थी. हाई कोर्ट ने पाया कि ये शादी ही अमान्य है, ऐसे में आरोपी के खिलाफ केस नहीं बनता है.
पीटीआई के अनुसार, सिंगल बेंच में सुनवाई करते हुए जस्टिस एस रचैया ने अपने फैसले में कहा, जब शिकायतकर्ता महिला को दूसरी पत्नी कहा जाता है, तो आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता (पति) के खिलाफ शिकायत पर विचार नहीं किया जाना चाहिए. पीठ ने कहा, दूसरी पत्नी की ओर से पति और उसके ससुराल वालों के खिलाफ दायर शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है. कोर्ट ने ये भी कहा कि निचली अदालत ने फैसला सुनाते वक्त इस पहलू पर कानून को लागू करने में गलती की है.
ट्रायल कोर्ट ने ठहराया था दोषी
हाई कोर्ट ने कर्नाटक के तमकुरु जिले के रहने वाले कांताराजू की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया. शिकायतकर्ता महिला ने दावा किया था कि वह कांताराजू की दूसरी पत्नी थी और वे दोनों पांच साल साथ रहे थे. उनका एक बेटा भी है. बाद में महिला लकवे का शिकार होकर असहाय हो गई. महिला ने बताया कि कांताराजू ने इसके बाद उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.
महिला ने अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई के बाद जनवरी 2029 में उसे दोषी पाया था. उसी साल अक्टूबर में ट्रायल कोर्ट के फैसले को सत्र न्यायालय ने भी सही माना था. कांताराजू ने फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट पुनरीक्षण याचिका दायर की थी.
दूसरी पत्नी शिकायत करने की हकदार नहीं
हाई कोर्ट ने पाया कि दूसरी पत्नी 498ए के तहत शिकायत करने की हकदार नहीं है और इस अधार पर निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष को साबित करना होगा कि शादी कानूनी है या वह याचिकाकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के शिवचरण लाल वर्मा और पी शिवकुमार केस का हवाला देते हुए कहा, "सुप्रीम कोर्ट के इन दो निर्णयों से स्पष्ट है कि यदि पति और पत्नी के बीच विवाह अमान्य और शून्य के रूप में समाप्त हो गया, तो आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध बरकरार नहीं रखा जा सकता है." कंथाराजू की दोषसिद्धि को रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि गवाही से साबित हुआ कि महिला याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी थी.
पीटीआई से इनपुट के आधार पर
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