नई दिल्ली: आज औपचारिक रूप से कुमारस्वामी कर्नाटक के 'किंग' बन गये. उधर कुमारस्वामी सूबे के सीएम पद की शपथ ले रहे थे इधर 2019 के सियासी युद्ध का खाका खींचा जा रहा था. दिल्ली सल्तनत की सियासी लड़ाई का संकेत आज कर्नाटक के मंच पर दिखा. इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राजनीतिक चक्रव्यूह या विपक्ष की सांकेतिक एकता भी कहा जा रहा है. आज कुमार स्वामी के शपथग्रहण के बहाने दिल्ली से दूर दक्षिण भारत में उत्तर भारत के कई सियासी दिग्गज मंच पर एक साथ दिखे हैं.
मंच पर दिखने वाले दिग्गज
-सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष, कांग्रेस
-ममता बनर्जी, अध्यक्ष, टीएमसी
-मायावती, अध्यक्ष, बीएसपी
-अखिलेश यादव, अध्यक्ष, एसपी
-तेजस्वी यादव, पूर्व डिप्टी सीएम, बिहार
-शरद पवार, अध्यक्ष, एनसीपी
-अरविंद केजरीवाल, सीएम, दिल्ली
-चंद्रबाबू नायडू, अध्यक्ष, टीडीपी
-उमर अब्दुल्ला, अध्यक्ष, एनसी
-स्टालिन, कार्यकारी प्रमुख, डीएमके
-सीताराम येचुरी, महासचिव, सीपीएम
कर्नाटक में सत्ता संघर्ष के नाटक के बाद कुमार स्वामी की ताजपोशी में शामिल इन विपक्ष के 11 बड़े नेताओं का लक्ष्य पीएम नरेंद्र मोदी हैं. इन नेताओं को एकजुट आने की वजह भारत की 64 फीसदी आबादी पर भगवा राज है. इसीलिए ये 64% बनाम 36% की जंग है. ये 20 राज्य बनाम 11 राज्यों की जंग है.
2019 के चुनावों में ये देश 36 फीसद आबादी पर राज बचाने के लिए संघर्ष करने वाले नेता मोदी के खिलाफ मोर्चेबंदी में जुटे हैं और कर्नाटक में बीजेपी की सरकार गिराने की वजह से इनके हौसले की उड़ान को उम्मीदों के पंख लगे हैं.
अगर पूरा विपक्ष एक साथ आ जाए, तो सवाल ये है कि 2019 में बीजेपी के सामने ये मोर्चा कितनी बड़ी चुनौती साबित होगा. 11 राज्यों की 13 पार्टियां मोदी को हराने के लिए एक हो सकती हैं. 13 राज्यों की 349 सीटों पर बीजेपी को एकजुट विपक्ष से टक्कर मिल सकती है.
आज मंच पर एकजूट विपक्ष का भविष्य क्या होगा?
2019 के चुनाव में मोदी के खिलाफ एकजूटता बनी रहेगी इसको लेकर संदेह है. तीसरे मोर्चे के लिए मुहिम चलाने वाले तेलंगाना के सीएम ने तो अभी ही रास्ते अलग करने के संकेत दिये हैं. यूपी में सीट बंटवारे को लेकर एसपी, कांग्रेस के साथ बीएसपी कहां टिकेगी कहा नहीं जा सकता? बिहार में कांग्रेस, आरजेडी के साथ हम और लोकतांत्रिक जनता दल कब तक साथ दिखेंगे कह नहीं सकते.
पंजाब और दिल्ली की सियासत
पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक दूसरे के खिलाफ लड़ती हैं. इसलिए दिल्ली में दोनों साथ लड़ेंगी ऐसा नहीं लगता. आज भले ही अखिलेश और मायावती कांग्रेस के साथ कर्नाटक में मंच साझा करते दिख रहे हैं. लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि 22 सालों तक यही मायावती अखिलेश के खानदान की सबसे बड़ी दुश्मन थी. वैसे अभी ये दुश्मनी दोस्ती में बदल चुकी है लेकिन 2019 में सीट बंटवारे को लेकर दोस्ती फंस भी सकती है. बीजेपी की नजर इसी पर लगी हुई है. पहले यहां बीजेपी सत्ता में नहीं थी लेकिन अब सत्ता में भी है.
बिहार की सियासत
नीतीश कुमार आज भी बिहार में सबसे बड़े फैक्टर माने जाते हैं. 2014 में तो बिना नीतीश के बीजेपी गठबंधन को 40 में से 31 सीट मिली थी. अब नीतीश के हिस्से का सोलह फीसदी वोट भी एनडीए के साथ है. ऐसे में लालू के बेटे तेजस्वी का सियासी उभार पीएम मोदी के लिए संकट बनेगा ऐसा मुश्किल लगता है.
महाराष्ट्र की सियासत
2014 में शरद पवार की पार्टी एनसीपी कांग्रेस के साथ ही थी. तब भी मोदी एनडीए को 48 में से 42 सीट मिलीं. इस बार शिवसेना अभी अलग लड़ने की बात भले ही कह रही है लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि विधानसभा चुनाव में शिवसेना जब अलग लड़ी तब भी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और अभी उसकी सरकार है. हो सकता है चुनाव आने तक शिवसेना के पैंतरे ढीले पड़ जाए और फिर बीजेपी के साथ लड़े.
जम्मू कश्मीर में भी कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस साथ रहकर नरेंद्र मोदी के लिए समस्या नहीं खड़ी कर पाए अब तो महबूबा भी मोदी के साथ हैं. झारखंड में भी बीजेपी के सामने विपक्ष का कोई सीन फिलहाल तो नहीं ही दिख रहा है. एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में तीसरी पार्टी ताकतवर नहीं है.
2019 में मोदी के लिए चुनौती खड़ी करने वालों के लिए मोदी का फॉर्मूला
2019 के लिए मोदी ने जो प्लान तैयार किया है उसे भी समझ लीजिए. सबसे पहले पश्चिम बंगाल से शुरू करते हैं. यहां की राजनीति में अभी ममता बनर्जी का मानो एकछत्र राज है लेकिन बीजेपी जैसे जैसे यहां बढ़ रही है ममता की आंखों की नींद उड़ रही है.
2019 में बंगाल में कमल खिलाने के लिए मोदी मुकुल रॉय को साथ लेकर आए हैं . मुकुल रॉय ममता के भरोसेमंद रहे हैं और ममता की रणनीति को काटना जानते हैं. ममता की काट के लिए बीजेपी हिंदुत्व की लहर पैदा करने में जुटी है. पंचायत चुनाव में बीजेपी का दूसरे नंबर पर आना इस बात की गवाही देता है कि बीजेपी तेजी से बढ़ रही है. अभी पश्चिम बंगाल की 42 में से 2 सीट ही बीजेपी के खाते में है. यानी बीजेपी यहां खोने से ज्यादा पाने की स्थिति में है. ओडिशा की बात करें तो सत्ताधारी बीजू जनता दल के लिए मोदी यहां सबसे बड़ी चुनौती बन चुके हैं.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लोकसभा की 42 सीटें हैं. 2014 में बीजेपी जब टीडीपी के साथ थी तब 3 सीट मिली थीं. टीडीपी के अलग होने के बाद YSR कांग्रेस से बीजेपी हाथ मिला सकती है. तेलंगाना में कांग्रेस- टीआरएस के साथ नहीं आने का फायदा भी बीजेपी उठाएगी.
जहां तक तमिलनाडु का सवाल है तो बहुत मुमकिन है कि लोकसभा चुनाव बीजेपी एआईएडीएमके के साथ मिलकर लड़े. मोदी की पहल पर ही पार्टी के दो गुट एक होकर राज्य में सरकार चला रहे हैं. लोकसभा के लिहाज से तमिलनाडु देश का 5वां बड़ा राज्य है. 39 में से 37 सीट 2014 में AIADMK ने जीती, 2 सीट NDA को मिली. कांग्रेस के साथ डीएमके है तो बीजेपी AIADMK के साथ मिलकर उसे मात देने की तैयारी में है.
केरल में जहां लेफ्ट का राज है और बीजेपी नंबर के लिहाज से काफी पीछे है वहां बीजेपी प्रभाव बढ़ाने में जुटी है. पिछले साल बीजेपी ने जनरक्षा यात्रा के जरिये अपने तमाम दिग्गजों को उतारा था. इसका फायदा मिलने की उम्मीद है. समंदर किनारे वाले इन 6 राज्यों में कुल 164 सीट हैं. 2014 में बीजेपी को इनमें से सिर्फ 7 सीटों पर जीत मिली थीं.