नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में विधायकों के इस्तीफे के मामले में फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. मामले पर मंगलवार को अगली सुनवाई होगी. तब तक न इस्तीफे पर फैसला लिया जाएगा, न विधायकों को सदस्यता के अयोग्य ठहराया जाएगा.


विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने वाले 15 में से 10 विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. उन्होंने आरोप लगाया है कि विधानसभा अध्यक्ष अपने संवैधानिक दायित्व से दूर भाग रहे हैं. वो इस्तीफे पर फैसला नहीं ले रहे. उल्टे विधायकों को सदस्यता के अयोग्य करार देने की कार्रवाई शुरू कर दी है। बहुमत खो चुकी सरकार को किसी तरह बचाने की कोशिश की जा रही है.


कल चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) से आग्रह किया था कि वो कल ही विधायकों से मिलें. उनकी बात सुनें और इस्तीफों पर फैसला लें. आज विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि स्पीकर विधायकों से मिले, लेकिन कोई फैसला नहीं लिया. बल्कि प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि विधायकों को सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना चाहिए था.


रोहतगी ने स्पीकर की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा, "स्पीकर कह रहे हैं कि मुझे अध्ययन करना होगा. ये समझ से परे है कि 1 लाइन के इस्तीफों में उन्हें क्या पढ़ना है. आज विधानसभा का सत्र शुरू हो गया है. पार्टी ने सदन में रह कर बजट के पक्ष में वोट का व्हिप जारी कर दिया है. कोशिश है कि इसकी आड़ में विधायकों को अयोग्य ठहराया दिया जाए."


रोहतगी की दलीलों का स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कड़ा विरोध किया. उन्होंने कहा,"नियमों के मुताबिक इस्तीफा पर फैसला लेने में समय लगता है. वैसे, जो इस्तीफा देना चाहते हैं, उन्हें अयोग्यता से क्या डर? वो इसलिए डरते हैं कि अगर दूसरी सरकार बनी तो बिना चुनाव जीते, उसमें मंत्री नहीं बन सकेंगे. लोग मंत्री बनने की उम्मीद में स्पीकर की निष्पक्ष कार्रवाई पर सवाल उठा रहे हैं."


इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल किया, "आपने कहा है कि अयोग्यता की कार्रवाई फरवरी से लंबित है. पर ये तो सिर्फ 2 विधायकों पर ही शुरू हुई थी. 8 पर तो इस्तीफे के बाद कार्रवाई शुरू हुई है." सिंघवी ने जवाब दिया, "इस्तीफे व्यक्तिगत रूप से मिल कर नहीं दिए गए. लेकिन कोर्ट को ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे स्पीकर फरार हो गए थे."


सिंघवी ने आगे कहा, "हमारा सवाल ये भी है कि क्या स्पीकर को तय सीमा में फैसला लेने का आदेश दिया जा सकता है? स्पीकर को कानूनन अधिकार है कि वो देखें कि इस्तीफा दबाव में तो नहीं दिया गया."


इसके बाद मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने जिरह शुरू की. उन्होंने कहा, "यहां सरकार के बहुमत खोने के दावे किए जा रहे हैं. काम न करने, भ्रष्टाचार में शामिल होने के गलत आरोप लगाए जा रहे हैं। ये राजनीतिक मकसद से दाखिल याचिका है. इस पर विचार नहीं करना चाहिए."


धवन ने आगे कहा, "कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने दुर्भावना से काम किया। उनकी पार्टी ने स्पीकर के सामने उन्हें अयोग्य ठहराने की याचिका दाखिल की। इसमें कोर्ट से दखल की मांग करना कहां तक सही है। ये विधायक एक तरह से सरकार को गिराने में कोर्ट की मदद मांग रहे हैं। ये विधायक जिस जनमत से चुने गए, उसके खिलाफ काम कर रहे हैं। ऐसे में स्पीकर का क्या फ़र्ज़ है? यही कि मामले की जांच कर फैसला लें।


धवन ने कोर्ट को भी उसकी सीमा का ध्यान दिलाते हुए कहा, "स्पीकर कल विधायको से शाम 6.15 पर मिले। कोर्ट के आदेश के इस हिस्से पर अमल हुआ. वो नियमों के मुताबिक जल्द से जल्द फैसला लेंगे. लेकिन स्पीकर कैसे काम करें, इसका निर्देश कोर्ट नहीं दे सकता."


सुनवाई के अंत में चीफ जस्टिस ने कहा, "हमने सबकी बातें सुनीं। स्पीकर और मुख्यमंत्री ने याचिका के सुनवाई लायक होने पर सवाल उठाए हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या इस्तीफे के बाद अयोग्यता की कार्रवाई शुरू होनी चाहिए. हम 16 जुलाई को अगली सुनवाई करेंगे. तब तक इस मामले में यथास्थिति बनाए रखी जाए."