नई दिल्ली: कर्नाटक में सरकार बनाने की आपाधापी के बीच देश के सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय की दिशा में एक बड़ी मिसाल पेश की. कांग्रेस ने येदुरप्पा के शपथ ग्रहण के खिलाफ रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खट्खटाया और चीफ जस्टिस से फौरी सुनवाई की गुहार लगाई, जिसे चीफ जस्टिस ने स्वीकार करते हुए तीन जजों की बेंच का गठन कर दिया. गुरुवार की रात दो बजे से लेकर सुबह साढ़े पांच बजे सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर सुनवाई हुई. जब देश में ज्यादातर लोग सो रहे थे उस समय सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही थी. कांग्रेस नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया अदा किया. चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा, "इतनी रात में सुनवाई करने के लिए मैं सुप्रीम कोर्ट को सलाम करता हूं." उन्होंने यह भी कही कि अगर मैं येदुरप्पा की जगह होता तो 18 मई को सुप्रीम कोर्ट का फाइनल फैसला आने तक मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं लेता.


वहीं वरिष्ठ वकील अभिषेतक मनु सिंघवी ने ट्वीट कर कहा, "रात दो बजे से लेकर साढ़े पांच बजे तक सुनवाई करना सुप्रीम कोर्ट का अतुलनीय कदम है. बेहद शांति से पूरी सुनवाई हुई." पिछले कुछ महीनों से न्याय की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट सवालों के घेरे में है. सुप्रीम कोर्ट के चार सीनीयर जजों ने प्रेस कांफ्रेंस कर के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. इन जजों ने ये भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और लोकतंत्र खतरे में हैं.


ऐसे समय में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि न्याय के लिए यहां के दरवाजे हर समय खुले हुए हैं. ऐसा नहीं है कि ये पहला मामला है. इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट में रात में सुनवाई हुई थी. 29 जुलाई 2015 को मुंबई धमाके के आरोपी याकूब मेनन की फांसी की सजा मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण समेत 12 वकीलों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने रात 12 बजे के बाद सुनवाई की थी. उस समय एचएल दत्तू मुख्य न्यायाधीश थे. उन्होंने इस मामले को सुनने के लिए तीन जजों की बेच बनाई. हालांकि बेंच ने याकूूब मेनन की फांसी की सजा को बरकरार रखा था. तीन साल बाद एक बार फिर यही इतिहास दोहराया गया.