Kartarpur Corridor: 20 महीने बाद खुला करतारपुर कॉरिडोर, जानें क्या है इसका धार्मिक महत्व
Kartarpur Corridor Re-open: करतारपुर सिखों का पवित्र स्थान है जो इस वक्त पाकिस्तान में है. पहले सिख गुरु श्री गुरुनानक देव जी ने अपने जीवन का आखिरी वक्त यहीं बिताया है.
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Kartarpur Corridor Re-open: करीब बीस महीने बाद श्रद्धालुओं की कामना पूरी हुई. पाकिस्तान में दरबार साहिब के लिए कॉरिडोर खुल गया. रजिस्ट्रेन होते ही पहला जत्था दर्शन के लिए पहुंच गया. पाकिस्तान के सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से उन श्रद्धालुओं को फूलों की हार पहनाकर उन सभी का स्वागत किया गया. श्रीगुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व से ठीक पहले दरबार साहिब रोशनी से जगमगा रहा है. इस खास मौके पर अरदास और कीर्तन में भी श्रद्धालु शामिल हुए. आइये जानते हैं दरबार साहिब के बारे में-
करतारपुर सिखों का पवित्र स्थान है जो इस वक्त पाकिस्तान में है. पहले सिख गुरु श्री गुरुनानक देव जी ने अपने जीवन का आखिरी वक्त यहीं बिताया है. लेकिन पाकिस्तान में होने की वजह से यहां दर्शनों में दिक्कत आती थी जिसे करतारपुर कॉरिडोर के सुलझाने की कोशिशें की गई हैं. कुछ साल पहले तक भारत के सिख श्रद्धालु सिर्फ दूरबीन से दरबार साहिब के दर्शन किया करते थे. लेकिन करतारपुर कॉरिडोर खुलने से वो अब सीधे दरबार साहिब में जाकर माथा टेक सकते हैं.
क्या है करतारपुर कॉरिडोर?
करतारपुर कॉरिडोर का एक सिरा भारत में है. इसे पंजाब के गुरदासपुर में डेरा बाबा नानक के साथ जोड़ा गया है. वहीं पाकिस्तान में दरबार साहिब गुरुद्वारा है जिसकी दूरी सीमा से 4 किलोमीटर है. कॉरिडोर की कुल लंबाई करीब पांच किलोमीटर है. इस कॉरिडोर के बाद दर्शन के लिए वीजा की जरूरत नहीं पड़ती है. 9 नवंबर 2019 को इस कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ था. हालांकि 16 मार्च 2020 को कोरोना फैलने पर इस कॉरिडोर को बंद करना पड़ा था.
क्या है धार्मिक महत्व?
करतारपुर साहिब गुरुद्वारा सिखों का पवित्र तीर्थ स्थल है. माना जाता है कि 1522 में सिखों के गुरु नानक देव ने इसकी स्थापना की थी. उन्होंने अपने जीवन के आखिरी साल यहीं बिताए थे. गुरु नानक देव जी ने अपनी जिंदगी के 17-18 साल यहीं रहे थे. यहीं गुरुनानक देव की ज्योति लीन हुए.
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय करतारपुर का इलाका पाकिस्तान में चला गया था. कहते हैं कि बंटवारे के समय एक अंग्रेज वकील की गलती से पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था. दरअसल रावी नदी को बॉर्डर माना गया जिसके चलते करतारपुर का इलाका पाकिस्तान को सौंप दिया गया.
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