Kartavya Path: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बेटी हुईं भावुक, बोलीं- मेरे पिता आजाद भारत में पैर नहीं रख सके, आज उन्हें जगह मिल गई
Netaji Subhash Chandra Bose: पीएम मोदी ने गुरुवार को इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया. ये देखकर जर्मनी में रह रहीं नेताजी की बेटी अनीता बोस बेहद खुश हुईं.
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Kartavya Path: पीएम मोदी ने गुरुवार को दिल्ली स्थित इंडिया गेट (India Gate) पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की ग्रेनाइट से बनी भव्य प्रतिमा का अनावरण किया. ये देखकर जर्मनी में रह रहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनीता बोस फाफ भावुक हो गईं. खुशी का इजहार करते हुए, उन्होंने कहा कि नेताजी की प्रतिमा किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा की जगह लेगी, यह महान प्रतीकात्मक मूल्य का है कि भारत स्वतंत्रता संग्राम के एक नेता को ऐसे स्थान पर ले गया है, जहां एक बार औपनिवेशिक शक्तियां आराम करती थीं. वह आजाद भारत में पैर नहीं रख सका.
उन्होंने कहा कि मेरी इच्छा है कि कम से कम उनके अवशेष अपनी मातृभूमि पर लौट आएं और एक अंतिम विश्राम स्थल खोजें... दस्तावेज इस बात का प्रमाण है कि 18 अगस्त, 1945 को वर्तमान ताइवान में विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. मुझे उम्मीद है कि उनकी अस्थियां देश में वापस लाई जाएंगी. खुशी है कि इतने दशकों के बाद भारतीय देशवासियों ने उनका नाम और स्मृति बरकरार रखी. लोग उन्हें तब भी याद करते हैं, जब स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका वास्तव में आधिकारिक तौर पर इतनी मान्यता प्राप्त नहीं थी, लेकिन उन्होंने भारत के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
मेरे पिता की अस्थियां लाई जाएं
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनिता बोस फाफ ने देश में राजनीतिक दलों से उनके पिता की अस्थियां टोक्यो के रेनकोजी मंदिर से भारत लाने की दिशा में काम करने का अनुरोध किया. ‘‘मेरे पिता की आजाद भारत में जीने की इच्छा थी. दुखद रूप से उनके असामयिक निधन ने उनकी यह इच्छा पूरी नहीं होने दी. मुझे लगता है कि कम से कम उनकी अस्थियां तो भारत की सरजमीं को छू पाएं, इसलिए मैं भारत के लोगों और भारत के सभी राजनीतिक दलों से अपने पिता की अस्थियां भारत लाने के लिए गैर-राजनीतिक रूप से एकजुट होने की अपील करती हूं.’’
नेताजी एक महामानव थे
वहीं पीएम मोदी ने कहा कि सुभाषचंद्र बोस ऐसे महामानव थे, जो पद और संसाधनों की चुनौती से परे थे. उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था. उनमें साहस था, स्वाभिमान था. उनके पास विचार थे, विजन था. उनमें नेतृत्व की क्षमता थी, नीतियां थीं. अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊंचाइयों पर होता, लेकिन दुर्भाग्य से, आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया. उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजरअंदाज कर दिया गया.
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