काशीपुर में यूपी पुलिस पर हत्या का मुकदमा, जानिए सबसे चर्चित एनकाउंटर जिनमें पुलिस को सजा भी मिली
पुलिस पर एनकाउंटर को लेकर कई बार सवाल उठाए जाते रहे हैं. जो सही साबित हुए और फर्जी एनकाउंटर को लेकर पुलिस वालों को सजा भी मिली है. आज उन्हीं फर्जी एनकाउंट की चर्चा करेंगे.
Kashipur Firing Case: खनन माफिया मोहम्मद जफर को पकड़ने गई यूपी की मुरादाबाद पुलिस पर उत्तराखंड के काशीपुर में भीड़ ने हमला कर दिया. आरोप लगा कि यूपी पुलिस को ज्येष्ठ ब्लाक प्रमुख गुरुताज भुल्लर के घर पर बंधक बनाकर रखा गया. दोनों तरफ से फायरिंग हुई, जिसमें यूपी पुलिस के 6 पुलिसकर्मी घायल हो गए. उत्तराखंड के काशीपुर में फायरिंग केस में यूपी पुलिस पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ है. इसके बाद दो राज्यों की पुलिस आमने-सामने खड़ी है.
ऐसा कई बार हो चुका है कि पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठे हैं. इस मामले ही नहीं बल्कि यूपी में हुए विकास दुबे एनकाउंट, पंजाब एनकाउंटर, हैदराबाद एनकाउंटर और न जाने कितने ऐसे एनकाउंटर रहे जिन पर पुलिस की कार्रवाई को लेकर सवाल खड़े किए. तो वहीं कुछ मामले तो वाकई फर्जी निकले और उनमें पुलिसकर्मियों को अदालत से सजा भी मिली. तो आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ मामलों को जिनमें पुलिस वाले ही दोषी पाए और जेल गए.
पंजाब पुलिस के दो पूर्व अधिकारियों को मिली सजा
30 साल पुरानी फर्जी मुठभेड़ के मामले में पंजाब के दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को सजा मिली. ये सजा सीबीआई की विशेष अदालत ने सुनाई थी. इन दोनों पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. ये घटना 13 सितंबर 1992 की थी जिसमें साहिब सिंह, दलबीर सिंह, बलविंदर सिंह और एक अज्ञात व्यक्ति को पंजाब पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था. इस मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो के विशेष न्यायाधीश राकेश कुमार की अदालत ने अमृतसर जिले के सीआईए मजीठा में तैनात पूर्व उपनिरीक्षक तरसेम लाल और निरीक्षक किशन सिंह को दोषी करार दिया.
रणवीर एनकाउंटर
देहरादून में भी एक एनकाउंटर काफी सुर्खियों में रहा था. रणवीर एनकाउंटर के नाम से जाने गए इस फेक एनकाउंटर में कोर्ट ने 7 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा दी. मामला कुछ ऐसा था कि साल 2009 की 3 जुलाई को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का मसूरी में दौरा था. पुलिस वाहनों को चेकिंग कर रही थी, तभी 2 मोटरसाइकिल सवार युवक भागने की कोशिश करने लगे. इसी बीच हुई हाथापाई में युवकों ने एक चौकी प्रभारी की रिवॉल्वर लूट ली और भाग निकले.
बदमाशों की खोज के दौरान रणवीर को पुलिस ने उसी रोज एनकाउंटर में मार गिराया था. उसके दो साथी फरार बताए गए. बाद में सामने आया कि मुठभेड़ फर्जी थी, जिसमें रणवीर को खूब पिटाई के बाद 22 गोलियां मारी गई थीं. मृतक के पिता ने इस मामले में पुलिस पर हत्या का मुकदमा दर्ज करवाया. जांच के बाद कोर्ट ने जून 2014 को 18 पुलिसवालों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा दी. बाद में 11 पुलिसकर्मियों को मामले से जुड़ा न पाते हुए उन्हें रिहाई मिली, जबकि 7 पुलिसवालों की उम्रकैद की सजा बरकरार है.
पीलीभीत फेक एनकाउंटर
इसी तरह से पीलीभीत फेक एनकाउंटर में स्पेशल कोर्ट ने 47 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा दी. साथ ही पद के अनुसार सभी पर अलग-अलग जुर्माना भी लगा. पुलिसवालों ने आतंकी बताकर 11 सिखों की हत्या की थी. घटना 12 जुलाई 1991 की है. सिख तीर्थयात्रियों के एक जत्थे को पीलीभीत में रोका गया और बस से 11 सिखों को उतार लिया गया. बाद में तीन अलग-अलग थानों में फेक एनकाउंटर में उन्हें मृत बता दिया गया.
कहा कहा कि मारे गए सिख असल में आतंकी थे और उन्होंने पुलिस पर फायरिंग की थी. गुस्साए घरवालों के कहने पर एक वरिष्ठ वकील ने सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दायर की. साल 2016 में आखिरकार दोषी पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा हुई. हालांकि तब तक आरोप के बाद भी कई पुलिसवाले प्रमोशन पा चुके थे, वहीं 10 पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी थी.
उद्योगपतियों का फर्जी एनकाउंटर
तो वहीं, अन्य मामले में कोर्ट ने साल 1997 में एक फर्जी मुठभेड़ में दो उद्योगपतियों को मार डालने के मामले में एक सहायक पुलिस आयुक्त सहित दिल्ली पुलिस के दस अधिकारियों को साल 2011 में उम्रकैद की सजा सुनाई. मामला कुछ ऐसा है कि 31 मार्च 1997 को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक कार पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं.
पुलिस ने तर्क दिया कि उन्हें संदेह था कि कार में अपराधी बैठे हैं. गलत पहचान में गोलियां चलाकर जान लेने के आरोप में दिल्ली हाई कोर्ट ने सितंबर 2009 में 10 पुलिसवालों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा दी. मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने भी सजा बरकरार रखी.
भोजपुर फर्जी एनकाउंटर
इस तरह के कई मामले हैं, जिसमें दोषी मानते हुए पुलिसवालों को कोर्ट ने सजा दी. जैसे भोजपुर एनकाउंटर का मामला भी काफी चर्चित रहा था. 8 नवंबर 1996 को गाजियाबाद के भोजपुर थाना में पुलिस ने फेक एनकाउंटर में चार मजदूरों को कुख्यात अपराधी बताते हुए उनकी हत्या कर दी थी. साथ ही शवों को लावारिस कहते हुए अज्ञात जगह ले जाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था. इनमें तीन नाबालिग थे. हंगामे के बाद मामले की जांच सीबीआई कोर्ट में शुरू हुई. आखिरकार 22 फरवरी 2017 को चारों पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
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