कश्मीर में 1990 के दशक में हुए नरसंहार की दोबारा जांच की मांग एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में उठी है. कश्मीरी पंडितों की संस्था 'रूट्स इन कश्मीर' ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर 2017 में आए कोर्ट के आदेश में बदलाव की मांग की है. तब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए जांच का आदेश देने से मना किया था कि घटना के 27 साल बाद सबूत जुटाना मुश्किल होगा.


नई याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 33 साल बाद 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच करवाई. उसी तरह इस मामले की भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए. संस्था की तरफ से कहा गया है कि 24 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया था, वह कानूनन गलत था. अपनी जड़ों से उखड़ कर संघर्ष कर रहे एक समुदाय से यह नहीं कहा जाना चाहिए था कि उसने याचिका दाखिल करने में समय क्यों लगाया.


2017 में तत्कालीन चीफ जस्टिस जे एस खेहर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने जिस याचिका को खारिज किया था, उसमें कश्मीरी पंडितों की हत्या से जुड़ी 215 घटनाओं की जांच की मांग की गई थी. यह बताया गया था कि इन घटनाओं में 700 लोगों की मौत हुई थी. याचिका में कहा गया था कि तब जान बचा कर कश्मीर से भागे लोग जांच में शामिल नहीं हो पाए थे. इस वजह से दोषी बिना सज़ा पाए बच गए. पुलिस ने किसी मामले में जांच को अंजाम तक नहीं पहुंचाया. अब यासीन मलिक, बिट्टा कराटे जैसे अलगाववादी नेताओं की भूमिका की दोबारा जांच होनी चाहिए.


अब एक बार फिर 'रूट्स इन कश्मीर' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने के पर्याप्त आधार की पुष्टि के लिए किसी वरिष्ठ वकील से सर्टिफिकेट लेना जरूरी होता है. इस मामले में वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने सर्टिफिकेट दिया है. अगर जज मामले को विचार योग्य मानते हैं, तो इस पर दोबारा सुनवाई हो सकती है.


Param Bir Singh Case: परमबीर सिंह केस में महाराष्ट्र सरकार को झटका, सभी मुकदमों को SC ने CBI को ट्रांसफर किया