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MasterStroke: कश्मीरी लेखिका सुनंदा वशिष्ठ ने कहा- बिना भारत के कश्मीर नहीं, बिना कश्मीर के भारत नहीं

सुनंदा वशिष्ठ कश्मीरी लेखिका और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. अमेरिकी कांग्रेस के टॉम लैंटोस ह्यूमन राइट्स कमिशन में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद मानवाधिकारों की स्थिति के लिए सुनवाई का आयोजन किया गया था. इसमें शामिल होते हुए सुनंदा ने पाकिस्तान का एजेंडा चलाने वालों की बोलती बंद कर दी.

नई दिल्ली: जब से जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया है, पूरी दुनिया में पाकिस्तान का एजेंडा चलाने वाले तड़प रहे हैं. वो कश्मीर में मानव अधिकारों के उल्लंघन का प्रोपेगैंडा फैला रहे हैं. भारत के कथित अत्याचारों का दुष्प्रचार कर रहे हैं. लेकिन आज एक सवाल दुनिया के मानव अधिकारों के ठेकेदारों से पूछा गया है. ये सवाल किसी और ने नहीं बल्कि कश्मीर की ही एक महिला ने पूछा है. सवाल ये है कि 1990 में जब कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया जा रहा था, उनके घर और दुकानें लूटी जा रही थीं, उनकी जमीनों पर कब्जा हो रहा था और उनकी महिलाओं से बदसलूकियां हो रही थीं, तब मानव अधिकारों की आवाज उठाने वाले ये वकील कहां थे. ये सवाल उठाने वाली महिला का नाम है सुनंदा वशिष्ठ, जो खुद एक कश्मीरी हैं.

1990 में घाटी में कश्मीरी पंडितों का सामूहिक नरसंहार हुआ था. उनके मंदिर तोड़े गए. दुकानों और फैक्ट्रियों को लूटा गया. उनकी जमीनें और घर छीने गए. नतीजा ये हुआ कि जनवरी 1990 में चार लाख कश्मीरी पंडित अपना घर बार, जमीन और दुकान सब छोड़कर भाग गए. इसके बाद 29 सालों तक कश्मीरी पंडितों की अंतहीन पीड़ा पर किसी ने आंसू भी नहीं बहाए. अब 370 हटाने के इस माहौल में अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी से एक कश्मीरी पंडित की आवाज उठी है. वो आवाज आज पूरी दुनिया में गूंज रही है.

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कश्मीरी लेखिका सुनंदा वशिष्ठ ने कहा, ''30 साल पहले जब पश्चिम के देशों को इस्लामिक आतंकवाद की बर्बरता के बारे में पता भी नहीं था, तब हमने ISIS के स्तर की बर्बरता कश्मीर में देखी थी. मुझे अच्छा लगा कि आज ये सुनवाई हो रही है, क्योंकि जब मेरे परिवार और मैंने अपना घर छोड़ा था तो दुनिया खामोश थी. जब मेरे अधिकार छीने जा रहे थे, तब मानव अधिकारों के ये वकील कहां थे? 19 जनवरी 1990 को मानव अधिकारों की कांग्रेसी कमेटी कहां थी, जब घाटी की मस्जिदों से ये कहा जा रहा था कि उन्हें कश्मीर हिंदू मर्दों के बिना और हिंदू औरतों के साथ चाहिए. मानवता के रक्षक उस वक्त कहां थे, जब मेरे बूढ़े दादाजी किचन के दो चाकुओं और एक कुल्हाड़ी के साथ मेरी मां और मुझे मारने के लिए तैयार थे, ताकि वो हमें आतंकवादियों के हाथों से बचा सकें. मेरे लोगों को तीन विकल्प दिए गए, भाग जाओ, धर्म बदल लो या मर जाओ. उस रात के बाद करीब साढ़े चार लाख हिंदू भाग गए.''

सुनंदा वशिष्ठ कश्मीरी हिंदू हैं. वे मौजूदा दौर में लेखिका और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. उनका ये बयान अमेरिकी कांग्रेस के एक कमीशन में सुनवाई के दौरान आया है. इसमें सुनंदा वशिष्ठ एक गवाह के तौर पर हिस्सा ले रही थीं. इस कमिशन का नाम टॉम लैंटोस ह्यूमन राइट्स कमिशन है. ये अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स का द्विपक्षीय समूह है. जिसका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य मानवाधिकार नियमों की वकालत करना है.

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इसमें जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद मानवाधिकारों की स्थिति के लिए सुनवाई का आयोजन किया गया था. इसी के तहत सुनंदा वशिष्ठ एक गवाह के तौर पर यहां शामिल हुई थीं. कमिशन की इस सुनवाई में बहुत से लोग ऐसे थे जो भारत के खिलाफ प्रोपेगैंडा फैला रहे थे और किसी एजेंडे के तहत वहां आए थे. लेकिन जब सुनंदा वशिष्ट ने कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों की कहानी सुनाई को कइयों की बोलती बंद हो गई.

सुनंदा वशिष्ठ ने ये भी कहा, ''आज 30 साल के बाद, मैं अपने घर कश्मीर नहीं जा सकती हूं. मैं बिना डर के अपने धर्म का पालन नहीं कर सकती. कश्मीर में मेरे और मेरे रिश्तेदारों के घरों पर अवैध कब्जा है. जिन घरों पर कब्जा नहीं है, उन्हें जला दिया गया. हमारे मंदिरों को तोड़ दिया गया, उन्हें बर्बाद कर दिया गया. कश्मीर से हिंदू धर्म को खत्म करने के लिए खत्म करने के लिए हर कोशिश की गई. आज कश्मीर में सिर्फ एक ही धर्म के लिए जगह है.''

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इस कमीशन में शामिल पैनलिस्ट से लेकर चेयरमैन और सदस्य तक, ज्यादातर लोग भारत के खिलाफ एजेंडा रखते हैं. शीला जैक्सन ली यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में पाकिस्तान का कॉकस हेड करती हैं. इन्होंने सुनंदा वशिष्ठ को बीच में रोककर ये पूछा कि आगे का रास्ता क्या है? इस पर सुनंदा ने कहा, ''आगे का रास्ता ये है कि हम कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद से जूझ रहे हैं. हमें इस तथ्य से परिचित होना चाहिए. ऐसा क्यों है कि इस पैनल में मुझे छोड़कर कोई भी इस्लामिक आतंकवाद की बात नहीं कर रहा है? क्या इस्लामिक आतंकवाद मेरे कल्पनाओं की मनगढंत कहानी है? नहीं, ऐसा नहीं है.'' शीला ने फिर से पूछा गया कि आगे का रास्ता क्या है, एक वाक्य में बताएं. इस पर सुनंदा ने कहा, ''आगे का रास्ता यही है कि हमें कट्टर इस्लामिक आतंकवाद के खात्मे में भारत की मदद करनी चाहिए. उसके बाद ही मानव अधिकार संभव हैं.''

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इस सुनवाई के दौरान ये भी बात उठी कि कश्मीर में जनमत संग्रह होना चाहिए. कश्मीर पर पाकिस्तान का एजेंडा फैलाने वाले जनमत संग्रह की अक्सर बात करते हैं. सुनंदा वशिष्ठ ने इसका करारा जवाब, ''जनमत संग्रह तभी हो सकता है, जब हर कोई वहां से पीछे हो जहां वो है. इसका मतलब ये है कि कश्मीर सिर्फ भारत के पास ही नहीं है, ये पाकिस्तान और चीन में भी बंटा हुआ है. तो इस कांग्रेस को शुभकामनाएं हैं कि वो चीन से कश्मीर खाली करवा दे. अगर आप ये कर सकते हैं तो. जनमत संग्रह की तो बात मत कीजिए, क्योंकि ये तो कभी नहीं होगा. तो शुभकामनाएं हैं कि पाकिस्तान से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर खाली करवा लें और चीन से भी.''

सुनवाई के दौरान लगातार पाकिस्तान समर्थित लोग सुनंदा की हूटिंग कर रहे थे और उनके जवाब के दौरान व्यवधान पैदा कर रहे थे. लेकिन सबसे शक्तिशाली देश की सबसे शक्तिशाली संसद के मंच पर सुनंदा डटीं रहीं और कश्मीर को भारत से अलग करने वाली सोच को भी करारा जवाब दिया. उन्होंने कहा, ''मैं चाहती हूं कि कोई भी एक सबूत इस बात का दिखा दे कि भारत ने कश्मीर पर कब्जा किया है. भारत ने कश्मीर पर कब्जा नहीं किया, वो भारत का अटूट अंग है और हमेशा रहेगा. भारत को 70 साल पुराना देश नहीं है, जैसा कि आप देखते हैं. भारत एक पांच हजार साल पुरानी सभ्यता है और बिना भारत के कोई कश्मीर नहीं है और बिना कश्मीर के कोई भारत नहीं है.''

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