राजधानी दिल्ली में केंद्र की तरफ से लाया गया ट्रांसफर-पोस्टिंग अध्यादेश को लेकर घमासान जारी है. सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस अध्यादेश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. दरअसल आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के इस कदम से भड़क गए हैं. उन्होंने इस अध्यादेश का लाना सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तौहीन और केंद्र सरकार की तानाशाही बताई है. 


हालांकि यह अध्यादेश अभी कानून नहीं बना है. संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा में पास होने के बाद ये कानून का शक्ल लेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि केंद्र सरकार के अध्यादेश पर केजरीवाल की रणनीति क्या होगी और वर्तमान में राज्यसभा में बीजेपी की क्या स्थिति है? 


पहले समझते हैं क्या है पूरा मामला 


संविधान के अनुच्छेद 239 (एए) के बाद दिल्ली को नेशनल कैपिटल टेरिटरी घोषित किया गया था. यह एक केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन दिल्ली को अपना विधानसभा बनाने का हक़ मिला हुआ है. ऐसे में दिल्ली की सरकार की मांग है कि क्योंकि राजधानी में जो सरकार है वह जनता के द्वारा चुनी हुई होती है इसलिए दिल्ली के सभी अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार भी राज्य सरकार के पास भी होना चाहिए.


इस मामले में सबसे पहले फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने बंटा हुआ फैसला सुनाया था. ये न्यायाधीश थे जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण. एक तरफ जहां जस्टिस सीकरी ने फ़ैसले में कहा कि निदेशक स्तर की नियुक्ति दिल्ली सरकार कर सकती है. तो वहीं दूसरी तरफ जस्टिस भूषण ने फैसले में कहा था कि अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार उपराज्यपाल के पास होने चाहिए.


दोनों जजों के फैसले में असहमति होने पर ये मामला तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया था लेकिन पिछले साल यानी 2022 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि इस मामले को बड़ी संवैधानिक बेंच को भेज दिया जाए. क्योंकि यह मुद्दा भारत की राजधानी के अधिकारियों की पोस्टिंग और तबादले से जुड़ा है.


इसके बाद इस मुद्दे को पांच जजों की संवैधानिक पीठ को सौंपा गया और 11 मई 2023 को संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया. फैसले में कहा गया कि अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास ही होना चाहिए.


केंद्र सरकार ने SC के फैसले को कैसे पलट दिया?


सुप्रीम कोर्ट के केंद्र सरकार के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद 19 मई की देर शाम केंद्र सरकार ने एससी के आदेश को पलटने वाला अध्यादेश जारी कर दिया. केंद्र सरकार 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023' लेकर आई है. जिसके तहत किसी भी अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा अंतिम निर्णय लेने का हक उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया है. यानी अब उपराज्यपाल अधिकारियों की पोस्टिंग या ट्रांसफर करवाएंगे. 


अध्यादेश से केजरीवाल नाराज 


सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के बाद दिल्ली में सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा था. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का लाया गया ये अध्यादेश ग़ैरकानूनी, ग़ैर संवैधानिक और जनतंत्र के ख़िलाफ़ है.


उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सभी विपक्ष पार्टियों से अनुरोध किया कि वह इस अध्यादेश को राज्यसभा में पारित होने से रोकें. केजरीवाल पूरी कोशिश में लग गए हैं ताकि केंद्र सरकार इस अध्यादेश को राज्यसभा में पास नहीं करा पाए. उन्होंने इसके लिए विपक्षी पार्टियों को एकजुट करना भी शुरू कर दिया है. 


सीएम केजरीवाल विपक्ष के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. बीते रविवार को ही में उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मुलाकात की थी. जिसके बाद नीतीश कुमार ने अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों से एकजुट होने की अपील की है. इन दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि इस अध्यादेश के खिलाफ शुरू की गई मुहिम में वह केजरीवाल का साथ देंगे. 


इसके बाद वो 24 मई को सीएम केजरीवाल पंजाब के सीएम भगवंत मान के साथ मुंबई में उद्धव ठाकरे से मिलें. ठाकरे ने आप अध्यक्ष से मुलाकात के बाद कहा कि हम रिश्ता मानने और उसे संभालने वाले लोग हैं. राजनीति अपनी जगह पर है. लेकिन अगले चुनाव में ट्रेन छूट गयी तो फिर हमारे देश से लोकतंत्र खत्म हो जायेगा. इसलिए वर्तमान में हमें मिलकर काम करना होगा. 


ठाकरे का साथ मिलने के बाद अब अध्यादेश के मुद्दे सीएम अरविंद केजरीवाल महाविकास अघाड़ी के संयोजक शरद पवार से भी मिलेंगे. 


कांग्रेस से है उम्मीद 


केजरीवाल को अगर इस अध्यादेश को राज्यसभा में पास होने से रोकना है तो उन्हें कांग्रेस के साथ की जरूरत होगी. कांग्रेस के राज्यसभा में 31 सदस्य हैं जो बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा हैं. भारतीय जनता पार्टी के 93 राज्यसभा सदस्य हैं


भले ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के रिश्ते तल्ख हैं. लेकिन आप संयोजक अरविंद केजरीवाल को उम्मीद है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस उनका समर्थन करेगी. नीतीश कुमार का हाल ही में मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मिलना इस बात का संकेत दे रहे है. इससे पहले कांग्रेस खुद भी केंद्र सरकार के अध्यादेश लाने के फैसले को गलत बता चुकी है.


सोमवार यानी 22 मई की रात को पार्टी महासचिव केसी वेगुगोपाल ने ट्वीट करते हुए बताया था कि कांग्रेस पार्टी ने अब तक अध्यादेश के मामले को लेकर कोई फैसला नहीं लिया है. पार्टी इस मुद्दे पर अपनी प्रदेश इकाइयों और दूसरी समान विचारधारा वाली पार्टियों से बातचीत करेगी. 


क्या है राज्यसभा में सीटों का गणित?


वर्तमान में राज्यसभा में 238 सदस्य हैं और 120 बहुमत का आंकड़ा है. सदन में एनडीए के पास 110 सदस्य हैं. जबकि यूपीए के पास 64 सदस्य हैं. अगर अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को राज्यसभा में रोकना चाहते हैं उन्हें यूपीए के अलावा अन्य दलों के समर्थन की भी जरूरत पड़ेगी. 


ममता की अगुवाई वाली टीएमसी के पास राज्यसभा में 12 सदस्य हैं. आम आदमी पार्टी के पास 10 सदस्य हैं. बीजेडी के पास 9, वीआरएस के पास 7 सदस्य, वाईएसआर कांग्रेस के पास 9 है. वहीं लेफ्ट के पास 7, सपा के पास 3 सदस्य हैं.


सीएम केजरीवाल की क्या होगी रणनीति 


अगर अध्यादेश को पास होने से रोकना है तो केजरीवाल को बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस की जरूरत पड़ेगी. इन पार्टियों के सहयोग के बिना अध्यादेश के खिलाफ बहुमत जुटा पाना मुश्किल हो सकता, क्योंकि अगर इन दोनों पार्टियों ने बीच का रास्ता निकालते हुए वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया तो सदन में बहुमत का आंकड़ा कम हो जाएगा और बीजेपी इसे पास कराने में कामयाब हो जाएगी.


इस मुहिम के पीछे सीएम अरविंद केजरीवाल की रणनीति केंद्र सरकार की दिल्ली विधानसभा को संविधान के अनुच्छेद 239एए और सुप्रीम कोर्ट से मिली ताकत को जन समर्थन के बल पर बनाए रखना है. इस मुहिम के तहत वो चाहते हैं कि विपक्षी दलों का साथ मिले. 


वह अपनी इस योजना के तहत सभी विपक्षी दलों के नेताओं से एक-एक कर मिलेंगे. सीएम केजरीवाल चाहते हैं कि विपक्षी दलों के नेता इस अध्यादेश के खिलाफ उनका साथ दें. इतना ही नहीं, संसद के दोनों सदनों यानी राज्यसभा और लोकसभा से कानूनी रूप देने की केंद्र की रणनीति का विरोध के लिए सभी दलों को राजी करना है. जिससे राज्यसभा में केंद्र की मुहिम को विफल करना संभव हो सके. 


अध्यादेश को लेकर बीजेपी का तर्क 


अध्यादेश को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का तर्क है कि आप सरकार दिल्ली में जो स्थिति पैदा करने पर उतारू है, उस बात को ध्यान में रखते हुए अध्यादेश लाना जरूरी था. 


बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा था कि दिल्ली की प्रशासनिक और कानूनी स्थिति दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाती है. इस बात को जानते हुए भी दिल्ली के सीएम अपने 'तानाशाह रवैये' के कारण स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हैं. ऐसे में केंद्र के पास आवश्यक अध्यादेश लाने का अधिकार है. यही वजह है कि केंद्र इसे लेकर आई है. सीएम केजरीवाल इस पर विवाद कर रहे हैं. सच यह है कि उन्हें भ्रष्टाचार के उजागर होने का डर है.


अनुराग ठाकुर आगे कहते हैं "इस तरह के प्रयोग साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनावों के वक्त भी किए गए थे, लेकिन कारगर नहीं हो पाया. लोग जानते हैं कि इन दलों की कोई सामान्य नीति या विचारधारा नहीं है और चुनाव जीतने के लिए झूठे वादे करते हैं."


बीजेपी के पूर्व विधायक और प्रदेश प्रवक्ता मनोज शर्मा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि पहले तो विपक्षी एकता वाले शपथ ग्रहण में उन्हें बुलाया ही नहीं गया और अब केजरीवाल कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियों से सौदा कर करने में लग गई है. 


दरअसल राजधानी दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर केंद्र सरकार ने जो अध्यादेश जारी किया है उससे नाराज अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी नेताओं से अपील की है कि वह इस मुद्दे पर समूचे विपक्ष को उनका साथ दें. मनोज शर्मा ने कहा कि अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों से जो अपील कर रहे हैं वह पूरी तरह से असंवैधानिक होगा.