सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को नहीं दी विधायकों का मुकदमा वापस लेने की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने केरल विधानसभा में हंगामा और तोड़फोड़ करने वाले विधायकों के खिलाफ मुकदमा निरस्त करने से इनकार कर दिया है.
तिरुवनंतपुरम: केरल विधानसभा में हंगामा और तोड़फोड़ करने वाले विधायकों के खिलाफ मुकदमा निरस्त करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार कर दिया है. 2015 में बजट पेश होने के दौरान लेफ्ट फ्रंट के इन विधायकों ने तोड़फोड़ की थी.
दरअसल, मौजूदा लेफ्ट फ्रंट सरकार मुकदमा वापस लेना चाहती थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायकों ने संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन किया है. उन्हें संरक्षण नहीं दिया जा सकता. 2015 में राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ की सरकार थी. विधानसभा के बजट सत्र में किसी मुद्दे का विरोध कर रहे लेफ्ट फ्रंट के विधायक अनियंत्रित हो गए थे. उन्होंने सत्ताधारी विधायकों के साथ धक्का-मुक्की की. सदन के फर्नीचर को तोड़ा. माइक उखाड़ कर फेंके.
5 विधायकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई
इस मामले में 6 विधायकों- वी सिवानकुट्टी, ई पी जयराजन, के टी जलील, सी के सहदेवन, के अजित और के कुनहम्मद के खिलाफ विधानसभा सचिव ने एफआईआर दर्ज करवाई. इनमें से सिवानकुट्टी वर्तमान पिनराई विजयन सरकार में शिक्षा मंत्री हैं
केरल सरकार ने इस मामले को सदन के विशेषधिकार का मामला बता कर वापस लेने की अर्ज़ी दी. यह भी कहा गया कि विधानसभा सचिव ने स्पीकर की अनुमति के बिना मुकदमा दर्ज करवाया था. लेकिन पहले तिरुवनंतपुरम के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट और बाद में केरल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार का आवेदन खारिज कर दिया. इसके बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची. सुनवाई के दौरान जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह ने इस याचिका पर हैरानी जताई थी.
लोगों में गलत संदेश जाएगा
कोर्ट ने पूछा था कि क्या राज्य सरकार समझती है कि इससे जनता का कोई हित होगा? जजों ने यह भी कहा था कि लोगों में यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि कि विधायक कुछ भी कर सकते हैं. सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं. आज सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार की याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा, "जनप्रतिनिधियों को संविधान ने इसलिए विशेषाधिकार दिया है कि वह अपने विधायी काम बिना रुकावट कर सकें. लेकिन सदन में हंगामा विधायी कार्य नहीं माना जा सकता. जनप्रतिनिधि संविधान का सम्मान करने की शपथ से बंधे हैं. केरल विधानसभा में जो हुआ उसे विरोध की सीमा के तहत भी नहीं माना जा सकता. हम केरल सरकार की अपील खारिज करते हैं. निचली अदालत कानून के मुताबिक कार्रवाई करे. यह जनप्रतिनिधि भी वहीं अपनी दलील रखें."
सदन में तोड़फोड़ स्वतंत्रता के दायरे में नहीं आता
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 की भी व्याख्या की. कोर्ट ने कहा कि इसके तहत सांसदों और विधायकों को सदन में अपनी बात रखने की स्वतंत्रता दी गई है. सदन की कार्रवाई के दौरान हुई किसी बात के लिए मुकदमे से भी छूट मिली हुई है. लेकिन सदन में तोड़फोड़ इसके दायरे में नहीं आता. अगर विशेषाधिकार के नाम पर ऐसे मामलों में भी जनप्रतिनिधि को मुकदमे से छूट दी गई तो यह नियम-कानून का पालन करने वाले नागरिकों के साथ धोखा होगा.
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