Kochi Blast: केरल के कोच्चि कन्वेंशन सेंटर में यहोवा साक्षियों (Jehova's Witnesses) की प्रार्थना सभा में रविवार (29 अक्टूबर ) सिलसिलेवार ब्लास्ट हुए हैं. इनकी शुरुआती जांच में घटना स्थल से बैटरी, वायर और ब्लास्ट के लिए इस्तेमाल किए गए अन्य इंस्ट्रूमेंट बरामद किए जा चुके है. दावा किया जा रहा है कि इन सिलसिलेवार धमाकों में आईईडी (Improvised explosive device) की तर्ज पर बमों को टिफिन में रखकर ब्लास्ट किया गया है.
आखिर यह IED ब्लास्ट है क्या? खास बात यह है कि जम्मू कश्मीर से लेकर भारत के अन्य प्रांतों में हुए पहले भी हिंसक वारदातों में इसी पैटर्न पर धमाके किए गए थे. आखिरकार सिलसिलेवार धमाकों को अंजाम देने वालों के लिए ये क्यों खास है? चलिए हम आपको बताते हैं.
केरल ब्लास्ट में इनसेंनडायरी डिवाइस का इस्तेमाल
यहोवा साक्षियों की प्रार्थना सभा में हुए इस ब्लास्ट की शुरुआती जांच के मुताबिक सिलसिलेवार धमाके को अंजाम देने के लिए इनसेंनडायरी (incendiary) डिवाइस का इस्तेमाल हुआ है. यह आईईडी की तरह ही होता है. इससे एक छोटा धमाका होता है, जिससे आग लग जाती है.
बमों में होता है घातक और आग लगाने वाले केमिकल्स का इस्तेमाल
आईईडी भी एक तरह का ऐसा बम है जिसमें आग लगाने वाले घातक केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि भीड़ में ब्लास्ट की चपेट में आने वाले लोगों के अलावा आग से बड़े पैमाने पर नुकसान को अंजाम दिया जा सके. इसीलिए इसका इस्तेमाल आतंकी या नक्सली वारदातों को अंजाम देने वालों के लिए अधिक पसंदीदा है, क्योंकि इससे अधिक घातक जन हानि होती है. इस बम को ट्रिगर करने के लिए बम प्लांट करने वालों को मौके पर रहने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि दूर से रिमोट कंट्रोल के जरिये ब्लास्ट किया जा सकता है.
ट्रिप वायर तकनीक से होता है ब्लास्ट
इसके अलावा ट्रिप वायर तकनीक (बैटरी के साथ फिट करके वायर में शॉर्ट सर्किट करा कर इससे निकलने वाली चिनगारी से ब्लास्ट) का भी धमाके करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. केरल ब्लास्ट के मामले में इसी तरह की तकनीक का अंदेशा है. इंफ्रारेड या मैग्नेटिक ट्रिगर्स, प्रेशर-सेंसिटिव बार्स भी IED ब्लास्ट को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल होते हैं. इसीलिए भारत में आतंकियों और नक्सलियों ने इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया है, क्योंकि इस बम को फिट कर देने के बाद मौके पर पकड़े जाने का अंदेशा नहीं रहता.
कब-कब हुआ इस्तेमाल