समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर नए सिरे से छिड़ी बहस के बाद केरल में सत्तारूढ़ माकपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों ने केन्द्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. दोनों पार्टियां अब लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अल्पसंख्यकों का मत जीतने के लिए खुद कौ तैयार कर रही है. 

आम चुनाव 2024 केरल में माकपा और कांग्रेस दोनों के लिए महत्वपूर्ण होगा. 20 संसदीय क्षेत्र वाले राज्य केरल में 2019 आम चुनाव में कांग्रेस को 16 सीटें और उसके सहयोगियों ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की थीं. लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह विफल रही और माकपा के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ने भारी जनादेश के साथ सत्ता बरकरार रखी थी.

भारत की जनगणना 2011 के आधार पर केरल में अल्पसंख्यक आबादी (मुस्लिम) 26 प्रतिशत हिस्सा हैं. अतिपिछड़ी जातियां 9.8 प्रतिशत हैं, और ईसाई 18 प्रतिशत हैं. वहीं 2011 की जनगणना के मुताबिक केरल के 3 करोड़ से ज्यादा मलयाली (मलयालम भाषा बोलने वाले) जाति के लोग हैं.  

केरल की आबादी 

धर्म जनसंख्या प्रतिशत अधितकम संख्या वाले ज़िले
हिंदू 1,82,82,492 54.73 तिरूवनंतपुरम
मुस्लिम 88,73,472 26.56 मलप्पुरम
क्रिश्चियन 61,41,269 18.38 एर्नाकुलम

2019 के लोकसभा चुनावों में 65 प्रतिशत मुस्लिमों का वोट यूडीएफ को पड़ा था, और 30 प्रतिशत वोट एलडीएफ को पड़ा था. एनडीए को वोटिंग प्रतिशत जीरो था.  मुस्लिमों के अलावा हिंदू वर्ग के एझावा और नायर समुदायों और ईसाई समुदायों के मतदान पैटर्न में मामूली बदलाव देखे गए थे.

हिंदू वर्ग के एझावा समुदाय का 45 प्रतिशत वोट एलडीएफ को, 28 प्रतिशत वोट यूडीएफ को और 21 प्रतिशत वोट एनडीए को गया था. वहीं नायर समुदायों का 20 प्रतिशत वोट एलडीएफ, 35 प्रतिशत वोट यूडीएफ, और 43 प्रतिशत वोट एनडीए को गया था.

इस तरह से हिंदू वर्ग के एझावा, नायर समुदायों ,मुस्लिम और ईसाई समुदायों के मतदान पैटर्न में मामूली बदलाव ने यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के चुनावी भाग्य पर असर डाला था. 

इंडिया टुडे में छपी एक खबर के मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार पीके सुरेंद्रन कहते हैं 'केरल के मतदाता आमतौर पर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देते हैं और विधानसभा चुनावों में माकपा को चुनते हैं. 2019 में केरल के अल्पसंख्यकों का मानना था कि कांग्रेस केंद्र में सत्ता में वापस आ सकती है. वायनाड से राहुल गांधी शानदार जीत दर्ज कराते आए हैं. लेकिन अब अल्पसंख्यकों को शायद लगता है कि 2024 में कांग्रेस के पास कोई मौका नहीं है'.

पीके सुरेंद्रन ने कहा, "आगामी लोकसभा चुनाव में केरल में अल्पसंख्यकों के बीच राजनीतिक मूड में बदलाव देखने को मिल सकता है. उन्होंने कहा कि बीजेपी यूसीसी के बारे में बात कर रही है, ऐसे में माकपा के पास राज्य के अल्पसंख्यकों का समर्थन हासिल करने का अच्छा मौका है.

बता दें कि माकपा समान नागरिक संहिता के खिलाफ विरोध कर रही है. पार्टी की राज्य समिति ने यूसीसी पर चर्चा करने और बीजेपी के 'मंसूबों' को उजागर करने के लिए विशेष बैठकें बुलाने का फैसला किया है. माकपा के राज्य सचिव एमवी गोविंदन मास्टर ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है. आईयूएमएल राज्य में कांग्रेस की सहयोगी है. 

मौके की नजाकत को देखते हुए माकपा 2024 के चुनावों से पहले इस मुद्दे को भुनाना शुरू कर चुकी है. दूसरी तरफ कांग्रेस ने हाल ही माकपा पर यूसीसी को सपोर्ट करने का आरोप लगाया था.

केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के प्रमुख और सांसद के सुधाकरन और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने वाम दल पर यह कहकर हमला किया कि यह "अवसरवादी" है. वो इस मुद्दे से राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है.

कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा कि अगर सीपीआईएम ईमानदारी से यूसीसी का विरोध करती है, तो उसे अपने पूर्व नेता और केरल के पहले सीएम ईएमएस नंबूदरीपाद के रुख को खारिज कर देना चाहिए. नंबूदरीपाद ने सभी नागरिकों के लिए एक समान व्यक्तिगत कानून का आह्वान किया था. 

 रणनीति की तैयारी में माकपा कांग्रेस से आगे

माकपा ने समान नागरिक संहिता के खिलाफ अल्पसंख्यकों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए रणनीति तैयार कर रही है. हाल ही मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने यूसीसी को लेकर अपनी पार्टी का बचाव किया था और कांग्रेस के रुख को 'राजनीतिक रूप से बेईमान' करार दिया था.

पिनराई विजयन ने छह जुलाई को एक सोशल मीडिया पोस्ट में टिप्पणी करके कांग्रेस की आलोचना की है. उन्होंने ट्वीट करके लिखा 'यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कांग्रेस का कोई स्पष्ट रुख नहीं है. यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना रुख बताने के बजाय सीपीआई (एम) का अपमान करना कांग्रेस की इससे भागने की रणनीति है'. 

वरिष्ठ पत्रकार आर राजगोपालन ने एबीपी न्यूज को बताया कि  माकपा की तरह कांग्रेस ने भी यूसीसी और मणिपुर में हिंसा के खिलाफ अभियान शुरू किया है. लेकिन माकपा यूसीसी पर स्पष्ट और सुसंगत राष्ट्रव्यापी राजनीतिक स्थिति ले रही है.

माकपा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की असमर्थता को उजागर करके अल्पसंख्यकों को वाम गठबंधन की ओर आकर्षित करने की योजना बना रही है. माकपा 2024 लोकसभा से पहले यूसीसी के खिलाफ अपने अभियान और मणिपुर हिंसा के मुद्दे के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदायों की चिंताओं और हितों उजागर तो कर रही है, लेकिन वो सीधे कांग्रेस पर निशाना भी साध रही है .

जानकारों का ये भी मानना है कि केरल में माकपा ने जिस तरह से स्पष्ट राजनीतिक कदम उठाया है वो आम चुनाव में माकपा के हित में जाएगा. सीपीएम उन अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने की कोशिश भी कर रही है जो वर्तमान में यूडीएफ के साथ जुड़े हुए हैं.

वहीं पार्टी का भी मानना है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर अल्पसंख्यकों का विश्वास हासिल करने में सफल नहीं रही है, जो वामपंथियों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर बन गया है. 

सीपीएम राज्य समिति के एक सदस्य ने हाल ही में मीडिया को बताया था कि कांग्रेस ने एक संदिग्ध स्थिति ले ली है. भारत के अलग-अलग राज्यों में कई कांग्रेस नेताओं ने खुले तौर पर यूसीसी का समर्थन किया है. राज्य में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व अब तक यूसीसी को खारिज करने वाला कोई बयान या अभियान लेकर नहीं आया है.  

आर राजगोपालन ने बताया कि केरल में यूसीसी को लेकर आम चुनाव में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. कांग्रेस केरल में सिर्फ एक समुदाय पर निर्भर है, वहीं माकपा  के पास दो अल्पसंख्यक समुदायों को सपोर्ट है. हिंदू वोट कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है लेकिन ये पार्टी को चुनाव नहीं जिता पाएगा. यूसीसी एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है, और इसपर माकपा बहुत अच्छे से राजनीति करेगी. केरल में कांग्रेस आपस में बंटी हुई भी है. 

आर राजगोपाल ने कांग्रेस केरल में यूसीसी का खुल कर विरोध नहीं कर पा रही, क्योंकि केरल में कांग्रेस को हिंदुओं का वोटिंग परसेंटेज वहां के अल्पसंख्यकों से ज्यादा है. ऐसे में कांग्रेस को डर है कि हिंदू वोटर कांग्रेस के खिलाफ न चले जाए. 

देखना होगा कि कौन सा पक्ष अल्पसंख्यकों का दिल जीतने में कामयाब होता है. इस बीच 2024 में यूसीसी का मुद्दा बीजेपी के लिए वोट बैंक की राजनीति और राज्य में बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच जगह बनाने की कोशिश करने का एक मौका माना जा रहा है. लेकिन बहुमत बीजेपी को मिलेगा ये नहीं कहा जा सकता.