Kerala Court: केरल की अदालत ने यौन उत्पीड़न के मामले को लेकर एक फैसला सुनाया है. अदालत ने ‘ऑटिस्टिक’ बीमारी से पीड़ित नाबालिग लड़के का यौन उत्पीड़न करने के मामले में एक व्यक्ति को दोषी ठहराया है. साथ ही उसे सात साल की जेल की सजा सुनाई है. मामले को लेकर अदालत ने कहा कि मानसिक रूप से अक्षम बच्चों की जरूरतों को पूरा करना हर किसी का विशेष कर्तव्य है. 


स्पेशल जज ए. सुदर्शन ने 41 वर्षीय युवक को 2013 में लड़के का यौन उत्पीड़न करने के लिए यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया और सजा सुनाई. इसके अलावा जज ने आरोपी पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. अदालत ने कहा कि आरोपी को सजा देने का मतलब केवल समाज को डराना ही नहीं है, बल्कि यह बताना है कि यौन उत्पीड़न का सामना करने और उससे उबरने वाले व्यक्ति के लिए शर्म की बात नहीं है और शर्म तो अपराधी को आनी चाहिए. 


2013 की है घटना


मामले को लेकर अदालत ने कहा कि इसमें आरोपी ने मानसिक रूप से अक्षम बच्चे की कमजोरी का फायदा उठाकर उसका यौन उत्पीड़न किया है. सुदर्शन ने कहा कि जो बच्चे मानसिक रूप से अक्षम हैं उनकी जरूरतों को पूरा करना हर एक व्यक्ति का विशेष कर्तव्य है. उन्होंने कहा कि दूसरों पर निर्भर रहने, कमजोर होने और समाज में यौन शोषण के बारे में शिक्षा की कमी के कारण ऐसी घटनाएं होती है. इसके अलावा इन्हीं वजहों से घटनाओं का शिकार होने का खतरा अधिक रहता है. पब्लिक प्रॉसिक्यूटर आर. एस. विजय मोहन ने बताया कि घटना 2013 की है. 


क्या है ऑटिस्टिक बीमारी? 


‘ऑटिस्टिक’ शरीर के विकास से जुड़ी एक गंभीर समस्या है. यह दूसरों से बातचीत जैसी चीजों की क्षमता को कम कर देती है. यह बीमारी बचपन में ही पनपना शुरू हो जाती है. यह एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. 


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