Gay Marriage: समाज ने ठुकराया तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मंदिर में पहनाई अंगूठी, केरल के पहले गे कपल की प्रेम कहानी
Same Sex Marriages: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 15 फरवरी तक समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी लंबित याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है.
Legalising Same Sex Marriages: सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2018 को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद्द कर दिया था. इससे दो महीने पहले, केरल के दो युवाओं सोनू और निकेश ने एक दूसरे को अंगूठी पहनाई थी. उन्होंने सगाई के लगभग एक साल बाद शादी की थी. जब उन्हें मालूम हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को रद्द कर दिया है, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था. वह एक शानदार जीवन की कल्पना करने लगे थे.
Live Law के वरिष्ठ संवाददाता रिंटू मरियम से हुई बातचीत में सोनू और निकेश ने समाज में समलैंगिकों की क्या स्थिति है इस पर विस्तार से चर्चा की. इंटरव्यू में युगल जोड़ी ने शादी के बाद अपनी जीवन से जुड़ी कठिनाईयों का खुलासा किया. उन्होंने यह भी बताया कि जब आईपीसी की धारा 377 लागू थी, उस वक्त वे कैसा महसूस कर रहे थे और उनके प्रति लोगों का क्या नजरिया था.
क्या चुनौतियां होंगी खत्म?
शादी के दो साल बाद सोनू और निकेश ने शादी संबंधी चुनौतियों को खत्म करने और मौजूदा कानून को चुनौती देने के फैसला किया. उन्होंने जनवरी 2020 में केरल हाईकोर्ट का रूख किया और समलैंगिक विवाहों की कानूनी वैधता की मांग की. इस मुद्दे पर देश में पहली बार इस तरह की याचिका दायर की गई.
निकेश और सोनू ने बताया कि उन्होंने केरल के गुरुवायुर मंदिर में एक दूसरे को अंगूठी पहनाई थी. इस सगाई समारोह के गवाह के तौर पर केवल भगवान की प्रतिमा वहां मौजूद थी. वे किसी भी प्रथा का पालन नहीं कर पाए थे. उनकी शादी की कोई कानूनी वैधता नहीं थी इस वजह से किसी भी सरकारी फॉर्म या आवदेन में अपने पार्टनर के तौर पर सोनू का नाम नहीं दे सका. वह बदलाव चाहते हैं और इसलिए लड़ रहे हैं.
जीवन साथी चुनना मौलिक अधिकार
समलैंगिक विवाह से जुड़े याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जीवन साथी को चुनना एक मौलिक अधिकार है. निकेश और सोनू से पूछा गया कि क्या आज का समय समलैंगिक जोड़े के लिए सही है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार समलैंगिक जोड़ों पर भी लागू किया जाना चाहिए. जहां तक उनका संबंध है उन्होंने एक दूसरे को चुना है. हालांकि, कानूनी व्यवस्था उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं करती है.
कब तक मिलेगा समस्या का समाधान
निकेश और सोनू को लगता है कि वे बूढ़े हो रहे हैं. केरल हाईकोर्ट में गए उन्हें ढाई साल हो चुके हैं. अब तक उनका ज्वाइंट बैंक अकाउंट ओपन नहीं हुआ है. उन्हें लगता है कि उनके पास कोई अधिकार नहीं है. साल 2022 में, सुप्रीम कोर्ट ने पारंपरिक परिवार की समझ को बदले के लिए समलैंगिक संबंधों को इसके दायरे में लाने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट की इस बात पर समलैंगिक जोड़े को एक आशा की किरण दिखाई दे रही है.
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