Kerala HC on Publishing of Judgement: केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने शुक्रवार (23 दिसंबर) को एक फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि अदालत के निर्णयों की रिपोर्टिंग और पब्लिशिंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा हैं. कोर्ट के आदेशों या फैसलों को इंटरनेट पर अपलोड करने के खिलाफ 'भूलने के अधिकार' को लागू करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक (Justice A Muhamed Mustaqe) और जस्टिस शोबा अन्नम्मा एपेन (Justice Shoba Annamma Eapen) की बेंच ने कहा कि कोर्ट रूम सभी के लिए खुला है.


केरल हाईकोर्ट (Kerala HC) ने कहा कि कोर्ट हमारे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत निर्णयों के प्रकाशकों को उपलब्ध सुरक्षा की अनदेखी नहीं कर सकते. निर्णयों की रिपोर्टिंग और पब्लिशिंग अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा हैं और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है.


केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी


हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि जनता के विश्वास के आधार पर ज्यूडिशियरी की पहचान आम तौर पर न्यायिक कामकाज में सूचना के मुक्त प्रवाह के बिना संभव नहीं है. बेंच ने कहा कि अक्सर मीडिया अदालत की कार्यवाही की मिनट-दर-मिनट डिटेल्स के साथ ब्रेकिंग न्यूज की सुर्खियां बनाता है, जिसमें जज ने मामलों में कार्यवाही के दौरान क्या कहा, शामिल होता है. बेंच ने कहा, "खुले न्याय में कोर्ट रूम को जनता को अपने कामकाज के बारे में राय बनाने का अवसर देना चाहिए. जनता के विश्वास को बनाने में यह सबसे महत्वपूर्ण विचार है." 


'जनता को राय बनाने का मिले अवसर'


कोर्ट ने यह भी कहा कि सीपीसी की धारा 153-बी और सीआरपीसी की धारा 327 अदालतों को वैधानिक रूप से सार्वजनिक क्षेत्र बनाते हैं, जहां लोगों को कार्यवाही देखने और जनता की राय बनाने की इजाजत मिले. कोर्ट रूम को जनता के लिए खुला रखने का विचार ओपन कोर्ट सिद्धांत की रक्षा करना है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक मूलभूत पहलू है. जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है कि एक जज ने पार्टियों, सामग्री आदि के विवरण के साथ एक विशेष मामले का संचालन कैसे किया.


कॉपीराइट का दावा नहीं- हाईकोर्ट


केरल हाईकोर्ट (Kerala HC) की बेंच ने आगे कहा कि संसद की ओर से इस संबंध में निर्धारित किसी भी कानून के अभाव में एक डिजिटल स्पेस में ओपन कोर्ट (Open Court) प्रणाली के विस्तार को ही निजता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है. ओपन कोर्ट प्रणाली को मान्यता पहले से ही है. बेंच ने यह भी कहा कि अदालतों के पास निर्णयों पर कोई कॉपीराइट (Copyright) का दावा नहीं हो सकता है क्योंकि ये सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा हैं.


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