Kerala High Court: केरल उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सोमवार को कहा कि एक गर्भवती महिला को 24 हफ्ते तक के गर्भ को गिराने का हक है,  बशर्ते उसकी शादीशुदा जिंदगी में तनाव हो. वह अपनी प्रेगेंनेंसी खत्म करने के लिए इस बात को आधार बना सकती है. इसके लिए उसे कानून तलाक और पति की मंजूरी की भी जरूरत नहीं है.


अदालत ने कहा है कि वैवाहिक जीवन में भारी बदलाव (Drastic Changes) गर्भावस्था के मेडिकल टर्मिनेशन-एमटीपी (Medical Termination of Pregnancy-MTP) के नियमों के तहत आता है. शादीशुदा जिंदगी का तनाव इसी बदलाव की तरफ इशारा करता है. दरअसल एमटीपी (MTP) का नियम 3बी (Rule 3B) उसकी  'वैवाहिक स्थिति में बदलाव' की शर्त को पूरा करता है. यही वो आधार है, जो शादीशुदा औरत को 24 हफ्ते तक की गर्भावस्था को मेडिकल तरीके से खत्म किए जाने के योग्य करार देता है.


केरल हाईकोर्ट के न्यायमूति वीजी अरुण (V G Arun) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले का हवाला देते हुए यह भी कहा कि एक महिला की प्रजनन पसंद (Reproductive Choice) भी उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आयाम है. जस्टिस अरूण ने इस मामले में फैसला सुनाते वक्त एमटीपी मामले में शीर्ष अदालत के हालिया आदेश को भी आधार बनाया. 


पति की मंजूरी जरूरी नहीं


फैसले में अदालत ने कहा कि यदि एमटीपी के नियम 3बी के तरीके से व्याख्या और समझा जाए तो गर्भवती महिला के वैवाहिक जीवन में भारी परिवर्तन 'उसकी वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन' के बराबर है." अदालत ने कहा, इस मामले में 'तलाक' शब्द भी किसी तरह से गर्भवती महिला के गर्भपात के अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है." कोर्ट के मुताबिक मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसमें महिला को गर्भावस्था को खत्म करने के लिए अपने पति की मंजूरी जरूरत होती है. इसकी वजह यह है कि गर्भावस्था और प्रसव के तनाव और दबाव को केवल औरत ही सहन करती है.


इस हालिया केस में अदालत ने पाया कि जब महिला की शादीशुदा जिंदगी में बेहद खराब बदलाव आए हैं तो उसे गर्भावस्था को खत्म करने की मंजूरी देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, भले ही वह कानूनी रूप से तलाकशुदा नहीं है और इसके लिए उसके पति की मंजूरी की भी जरूरत नहीं हैं. दरअसल नवीनतम एमटीपी नियमों के तहत, केवल एक खास कैटेगरी में आने वाली महिलाएं ही 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भावस्था को खत्म करने के लिए पात्र हैं. 'वैवाहिक स्थिति में बदलाव' श्रेणी के तहत ये नियम केवल विधवा और तलाकशुदा औरत को इसकी इजाजत देते हैं.


अदालत ने 21 साल की महिला की उस याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें उसने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) की अनुमति मांगी थी. उसके पति और उसकी सास के उसके खिलाफ की गई ज्यादतियों की वजह से उसकी हालिया शादी खराब दौर का सामना कर रही थी. महिला ने अदालत को बताया गया कि उसके पति ने अजन्मे बच्चे के पितृत्व पर भी सवाल उठाया और कोई भी मदद देने से इंकार कर दिया.


दरअसल इस महिला ने अपने हालातों को देखते हुए जब अपनी गर्भावस्था को खत्म करने का फैसला किया और डॉक्टरों से संपर्क किया. वहां उसे कहा गया कि वह एमटीपी अधिनियम और नियमों की शर्तों को पूरा नहीं करती है. हालांकि अदालत के सामने महिला के पति ने आरोपों से इंकार किया, लेकिन गर्भपात के सवाल पर कुछ नहीं कहा. हालांकि केरल सरकार ने  इस केस में तर्क दिया है कि इस मामले में पति-पत्नी को मिलकर फैसला करना चाहिए. 


क्या है केस


याचिकाकर्ता महिला अर्थशास्त्र से ग्रेजुएशन कर रही थी. वह एक पेपर में फेल हो गई. इस पेपर की पूरक परीक्षा की तैयारी के दौरान उसने एक कंप्यूटर कोर्स में दाखिला लिया. वहीं उसकी मुलाकात मौजूदा बस कंडक्टर पति से हुई थी. 30 नवंबर 2021 में वह उसके साथ भाग गई. 11 मार्च को दोनों ने पंरपरागत तरीके से शादी कर ली. इसके बाद से ही उसके पति और सास ने उसके साथ बुरा बर्ताव शुरू कर दिया.


उसने अदालत को बताया कि उन लोगों ने दहेज की भी मांग की. जब याचिकाकर्ता अप्रैल 2022 में गर्भवती हुई तो उसके पति ने बच्चे के पितृत्व को लेकर भी  उस पर शक किया. इसके साथ ही उसके पति के घर पर उसके साथ क्रूरता बढ़ती गई. इस वजह से उसने 22 अगस्त 2022 को घर छोड़ अपने माता-पिता के घर लौटने का फैसला लिया.


इसके बाद उसने 31 अगस्त को कोट्टयम मेडिकल कॉलेज में परिवार नियोजन क्लिनिक में अपनी गर्भावस्था को खत्म करने की मांग की. हालांकि क्लिनिक के डॉक्टरों ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि याचिकाकर्ता के पास पति से अलग होने या तलाक को साबित करने के लिए कोई कानूनी दस्तावेज नहीं थे. इसके बाद महिला ने 4 सितंबर को अपने पति और सास के खिलाफ कांजिरापल्ली (Kanjirappally) पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई.


इसके इन दोनों के खिलाफ धारा 498ए आर/डब्ल्यू 34 आईपीसी के एफआईआर दर्ज हुई. हालांकि, इस दौरान क्लिनिक ने फिर से उसके गर्भपात कराने के अनुरोध को ठुकरा दिया. क्लिनिक ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला की गर्भावस्था 21 सप्ताह से अधिक की थी और भ्रूण में खराबी या मां में बीमारी का कोई संकेत नहीं था. इसके बाद से मामला केरल उच्च न्यायालय पहुंचा.


लाइव लॉ डॉट इन की रिपोर्ट के मुताबिक अदालत ने 15 सितंबर को कोट्टयम के मेडिकल कॉलेज अस्पताल (Medical College Hospital Kottayam) के अधीक्षक को याचिकाकर्ता की जांच और इस मामले में अपनी राय पेश करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया. इस महीने 17 सितंबर को बोर्ड ने अपनी राय में कहा, "गर्भावस्था जारी रखने से महिला की मानसिक सेहत पर नकारात्मक असर पड़ सकता है इसलिए सिफारिश की गई उसका एमटीपी किया जा सकता है."


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