Kerala: केरल की सरकार को बड़ा झटका देते हुए केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुख्यमंत्री के काफिले के सामने काले झंडे लहराना न तो गैरकानूनी है और न ही इसे मानहानि माना जा सकता है. यह फैसला मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पक्ष में आया है, जिन्हें पिछले साल ‘नव केरल सदास’ कार्यक्रम के दौरान पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा था.
जस्टिस बी कुरियन थॉमस के इस फैसले का महत्व इसलिए भी है क्योंकि उन्होंने इसे विरोध प्रदर्शन के अधिकार के तौर पर मान्यता दी है. न्यायालय का यह फैसला सरकार के प्रति असंतोष जताने के मौलिक अधिकार को भी समर्थन देता है.
विरोध का प्रतीक है काले झंडे लहराना
न्यायमूर्ति थॉमस ने अपने आदेश में कहा, "हालांकि कुछ स्थितियों में कोई विजुअल संकेत किसी व्यक्ति को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं, लेकिन किसी व्यक्ति को काला झंडा दिखाना या लहराना मानहानि के दायरे में नहीं आता." न्यायालय ने साफ किया कि यह एक विरोध का प्रतीक मात्र है और जब तक इसे अवैध घोषित करने वाला कोई कानून नहीं होता, तब तक इसे गैरकानूनी नहीं माना जा सकता.
यह फैसला 2017 की एक घटना पर आधारित है, जब विजयन के काफिले के सामने काले झंडे लहराने के लिए तीन व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. न्यायालय ने इस घटना में पुलिस की तरफ से दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द कर दिया.
कानून में बदलाव की जरूरत नहीं
अदालत ने कहा कि काले झंडे लहराना आम तौर पर विरोध का संकेत होता है और किसी को अपमानित करने का मकसद नहीं होता है. जब तक ऐसा आचरण प्रतिबंधित करने का विशेष कानून नहीं बनाया जाता, तब तक इसे अवैध या मानहानि का अपराध नहीं समझा जा सकता. इस फैसले से साफ है कि अदालत विरोध प्रदर्शन के अधिकार को संवैधानिक अधिकार मानती है और इस तरह की कार्रवाई को लोकतंत्र का हिस्सा मानती है.
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