नई दिल्ली: दिल्ली से लेकर कई शहरों में मेट्रो रेल की सौगात देने वाले ई श्रीधरन ने 88 बरस की उम्र में राजनीति का दामन थामकर सबको चौंका दिया है. अपनी बेदाग व ईमानदार छवि और सख्त अनुशासन के लिये मशहूर श्रीधरन ने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर यह संकेत दिया है कि दक्षिण में लाल झंडे के अभेद्य किले को ध्वस्त करना अब कोई ज्यादा मुश्किल काम नहीं है. जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा नेतृत्व ने बेहद सोच-समझकर ही उन पर दांव खेला है और इसीलिये 75 साल की उम्र की बंदिश को भी दरकिनार कर दिया गया.
पार्टी सूत्रों की मानें, तो अगले कुछ महीने में होने वाले केरल विधानसभा के चुनाव में भाजपा उन्हें बतौर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में जनता के समक्ष पेश करेगी. श्रीधरन संभवतः पहले ऐसे नौकरशाह होंगे जो राजनीति में पैर रखते ही पहले दिन से सीएम पद के दावेदार बन गए हैं. भाजपा की सदस्यता लेते ही उन्होंने न सिर्फ पार्टी लाइन को फॉलो करना शुरू कर दिया है, बल्कि तीखे तेवरों के साथ अपनी प्राथमिकताओं का खुलासा भी कर रहे हैं. आरएसएस व भाजपा के प्रिय विषय लव जिहाद को लेकर उन्होंने बयान दिया है कि वह भी लव जिहाद के खिलाफ हैं, क्योंकि हिंदू लड़कियों को बरगलाया जा रहा है.
श्रीधरन ने कहा है कि वह जानते हैं कि केरल में लव जिहाद हो रहा है. दक्षिणी राज्य में चुनाव से पहले उनके इस बयान के बाद हलचल मचना स्वाभाविक है. चुनावी रणनीति के तहत वहां के वोट बैंक का ध्रुवीकरण करने के मकसद से ही यह बयान दिया गया है. उन्होंने कहा, "हां, मैं देख रहा हूं कि केरल में क्या हो रहा है. शादी के लिए हिंदुओं को कैसे बरगलाया जा रहा है और वे किस तरह से लव जिहाद से पीड़ित हैं. न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम, ईसाई लड़कियों को भी शादी के लिए धोखा दिया जा रहा है. मैं निश्चित रूप से लव जिहाद का विरोध करूंगा."
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यो में इसके खिलाफ कानून बनाया गया है. वैसे भी केरल में भाजपा तेजी से अपने पैर फैला रही है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले NDA को 10.85 फीसदी वोट मिले थे, जो 2019 के चुनाव में बढ़कर 15.20 प्रतिशत हो गए और इसमें अकेले भाजपा को 12.93 यानी करीब 13 फीसदी वोट मिले थे. भले ही पार्टी को राज्य की 20 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट नहीं मिल पाई हो पर, राज्य की 140 विधानसभा सीटों पर इसका सीधा असर पड़ना तय है. इसी वजह से भाजपा के हौंसले बुलंद हुए हैं और वहां सत्ता पर काबिज़ होने के वास्ते मोदी ने श्रीधरन को मनाने के लिये कोई कसर बाकी नहीं रखी. वैसे भी पिछले कई बरस से दोनों एक-दूसरे के कामों के मुरीद रहे हैं.
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