नई दिल्ली: केरल के कोझीकोड जिले में निपह वायरस से छह लोगों की मौत हो गई है. कोझीकोड के जिला कलेक्टर ने इस बात की पुष्टी की है. वहीं वायरस से हुई मौत के मामले की जांच के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से गठित डॉक्टर्स की एक एक उच्च स्तरीय टीम को कोझीकोड भेजा गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के निदेशक के नेतृत्व में एक मल्टी डिसिप्लीनरी टीम का गठन किया है.
क्या है निपह वायरस?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक निपह वायरस एक नए तरह का जूनोसिस (ऐसी बीमारी जिसे जानवरों से इंसानों में पहुंचाया जा सकता है)) है. निपह वायरस से मनुष्य में कई बिना लक्षण वाले संक्रमण से लेकर एक्यूट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम और प्राणघातक इन्सैफेलाइटिस तक हो सकता है. डब्ल्यूएचओ की वेबसाइट के अनुसार एनआईवी (निपह वायरस) से सुअरों और दूसरे घरेलू जानवरों में भी बीमारी हो सकती है.
क्या इसका इलाज संभव है?
अभी न तो इंसान और न ही जानवरों के उपचार के लिए इसका टीका विकसित हुआ है. इंसानों के मामलों में इसका प्राथमिक उपचार इंटेंसिव सपोर्टिव केयर (सघन सहायक देखभाल) के जरिए किया जा सकता है.
इससे कैसे बचा जा सकता है?
इस बात का संदेह है कि चमगादड़ से विषाणु का प्रसार हो रहा है. अगर किसी इलाके में निपह वायरस का पता चलता है तो ऐसे में उन जगहों पर जाने से बचना चाहिए जहां चमगादड़ पाए जाते हैं.
निपह वायरस का पहला मामला कब सामने आया?
साल 1998 में निपह वायरस का पहला मामला मलेशिया में सामने आया था. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक सूअरों के जरिए ये बीमारी सामने आई.
भारत में कब सामने आया निपह वायरस का पहला मामला?
भारत में इससे जुड़ा पहला मामला साल 2001 में पश्चिम बंगाल में सिल्लीगुड़ी जिले में सामने आया था. वहीं निपह वायरस का दूसरा मामला पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में साल 2007 में सामने आया था. ये दोनों जिले बांग्लादेश के बॉर्डर से करीब हैं. रिपोर्ट्स की निपह वायरस का ये तीसरा मामला केरल में सामने आया है.