नई दिल्ली: नागरिकता क़ानून और एनआरसी पर अभी विवाद ख़त्म भी नहीं हुआ था कि एनपीआर यानि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को लेकर विवाद शुरू हो गया है. पहले पश्चिम बंगाल और अब केरल की सरकार ने भी राज्य में एनपीआर की प्रक्रिया को फ़िलहाल रोकने का फ़ैसला किया है. इस बीच अगले हफ्ते होने वाली कैबिनेट की बैठक में 2021 की जनगणना और उससे जुड़े एनपीआर को मंज़ूरी मिलने की संभावना है.


एनपीआर आख़िर है क्या?


एनपीआर यानि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर भारत में हर दस साल पर होने वाली जनगणना का हिस्सा है. इसे पहली बार 2011 की जनगणना के साथ बनाया गया था. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान 2010 में इसपर पहली बार नागरिकता कानून, 1955 और Citizenship (Registration of Citizens and Issue of National Identity Cards) Rules, 2003 के तहत काम शुरू हुआ. एनपीआर का मकसद देश में रहने वाले हर व्यक्ति के बारे में एक डेटाबेस तैयार करना था जिसमें उनकी संख्या के साथ-साथ उनका बायोमेट्रिक भी शामिल हो. रजिस्टर तैयार करने के लिए हर व्यक्ति के बारे में 15 जानकारियां मांगी गईं. इनमें व्यक्ति का नाम, परिवार के मुखिया से उसका संबंध, माता-पिता का नाम, वैवाहिक स्थिति, शादीशुदा होने पर पति/पत्नी का नाम, लिंग, जन्म स्थान, नागरिकता, वर्तमान पता, पते पर रहने की अवधि, स्थायी पता, पेशा और शैक्षणिक स्थिति.


निवास का पता की श्रेणी में दो उपश्रेणियां हैं- Usual Resident (Actual) और Usual Resident (Intent).


Usual Resident (Actual) का मतलब है कि जो निवास का पता दिया गया है उस पते पर 6 महीने या उससे ज़्यादा समय से रह रहे हैं. जबकि Usual Resident (Intent) का मतलब हुआ कि उस पते पर 6 महीने से कम समय से रह रहे हैं लेकिन 6 महीने से ज़्यादा रहने की संभावना है. वहीं एनपीआर में नागरिकता की जो जानकारी दी जाती है वो स्वघोषित होती है. मतलब ये कि वो उसकी नागरिकता का सबूत नहीं होता है.


अब एक बार फिर से एनपीआर को अपडेट करने का काम शुरू किया जा रहा है. सरकार ने इसी साल 31 जुलाई को काम की प्रक्रिया शुरू करने की अधिसूचना जारी कर दी थी. अधिसूचना के मुताबिक़ 2010 की तरह ही इस बार भी एनपीआर के लिए आंकड़ा जुटाने का काम 2020 में 1 अप्रैल से 30 सितंबर तक किया जाएगा. अगले हफ्ते मंगलवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक में 2021 की जनगणना और एनपीआर को अपडेट करने की औपचारिक मंज़ूरी मिलने की संभावना है. अभी से इसका विरोध शुरू हो गया है. बंगाल के बाद केरल की सरकार ने भी इसपर चल रही प्रक्रिया को रोकने का फ़ैसला किया है.


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