नई दिल्ली: केरल में लव अफेयर के बाद शादी रचाने वाली हदिया के पिता केएम अशोकन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए. अशोकन ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटी को 'लव जिहाद' का शिकार बनाया गया था और वह इस मामले को कोर्ट लेकर गए थे. जिसके बाद इस मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी. शादी तोड़ने के खिलाफ कोर्ट गए अशोकन को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर लड़का-लड़की कहते हैं कि उन्होंने शादी की है तो यह किसी जांच का विषय नहीं हो सकता.
क्या है पूरा मामला?
केरल के वाइकोम की रहने वाली अखिला तमिलनाडु के सलेम में होम्योपैथी की पढ़ाई कर रही थी. इसके पिता के एम अशोकन का आरोप था कि हॉस्टल में उसके साथ रहने वाली 2 मुस्लिम लड़कियों ने उसे धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया. अखिला ने इस्लाम कबूल कर अपना नाम हदिया रख लिया. जनवरी 2016 में वो अपने परिवार से अलग हो गई.
हदिया के पिता ने दिसंबर 2016 में केरल हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की. उन्होंने दावा किया कि उनकी बेटी गलत हाथों में पड़ गई है. उसे IS का सदस्य बना कर सीरिया भेजा जा सकता है. उन्होंने बेटी को अपने पास वापस भेजने की मांग की. हदिया ने मुस्लिम लड़के शफीन जहां से शादी कर ली.
हाई कोर्ट ने हदिया को कोर्ट में पेश होने को कहा. पिछले साल 19 दिसंबर को वो शफीन जहां के साथ कोर्ट में पेश हुई और बताया कि दोनों ने कुछ दिन पहले निकाह किया है. दोनों पक्ष के वकीलों की दलील के बाद कोर्ट ने शादी के हालात को शक भरा माना. हदिया को उसके पिता के पास भेज दिया गया.
हाई कोर्ट ने शादी की परिस्थितियों को भी देखा. कोर्ट ने पाया कि अशोकन की नयी याचिका के बाद जल्दबाज़ी में शादी करवाई गई. ये साफ हुआ कि हदिया को अपने पति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. पति और हदिया का धर्म परिवर्तन कराने वाली महिला की संदिग्ध और आपराधिक गतिविधियों की बात भी कोर्ट के सामने आई.
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इसके अलावा कोर्ट ने हदिया की मानसिक स्थिति जानने की भी कोशिश की. सुनवाई कर रहे दोनों जज उससे व्यक्तिगत रूप से मिले. जजों का निष्कर्ष था कि उसका दिमाग अपने काबू में नहीं है. उस पर कट्टरपंथ का इतना असर है कि वो सही-ग़लत सोचने की स्थिति में नहीं है.
पिछले साल 25 मई को हाई कोर्ट ने निकाह को अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया. कोर्ट ने माना कि इस शादी की कानून की नज़र में कोई अहमियत नहीं है. जजों ने अपने आदेश में लिखा है कि अगर कोई सोचने-समझने की स्थिति में न हो तो उसके अभिभावक की भूमिका निभाना हमारी कानूनी ज़िम्मेदारी है. इसी के तहत हम लड़की को उसके पिता के पास वापस भेज रहे हैं.
हाई कोर्ट के इस फैसले को हदिया ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद मार्च में हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और शादी को वैध करार दिया.