कृषि कानूनों के विरोध में 26 जनवरी को हुई ट्रैक्टर परेड ने किसान आंदोलन के कंधे पर बंदूक रख खालिस्तानी एजेंडा भुनाने की कोशिशों को भी बेपर्दा कर दिया है. राजधानी दिल्ली की सड़कों पर हुए तांडव के सीमापार से जुड़े तार न केवल उजागर हुए बल्कि लालकिले पर 'निशान साहिब' का झंडा लगाए जाने की तस्वीरों पर मनाया जाने वाला जश्न भी इसकी गवाही देता है.
किसान आंदोलन की आड़ में अपना एजेंडा चलाने की खालिस्तानी गुट एसएफजे की कोशिशें नई नहीं है. मगर गणतंत्र दिवस से करीब 15 दिन पहले अपनी चिट्ठियों में किसानों से ट्रैक्टर परेड निकाल इंडिया गेट पर खालिस्तानी झंडा लगाने वाले को 25 हज़ार डॉलर (18.25 लाख रुपए) का इनाम देने की घोषणा कर अपने मंसूबो की बाकायदा जाहिर सूचना भी दे दी थी. इतना ही नहीं अमेरिकी, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया समेत कई मुल्कों में छुटभैये समर्थकों के सहारे चल रहे इस प्रतिबंधित संगठन ने लालकिले की घटना के बाद न केवल अपनी भूमिका का ऐलान किया बल्कि 1 फरवरी को संसद घेराव के लिए नए उकसावे का बयान भी जारी किया.
गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों की ट्रैक्टर परेड को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाइलाइट करने के लिए न्यूयॉर्क, वाशिंगटन, लंदन समेत कई शहरों में समर्थन के प्रदर्शनों के दौरान खालिस्तानी झंडे भी बरामद हुए.
खालिस्तानी एसएफजे का पाकिस्तान और आईएसआई कनेक्शन किसी से छुपा नहीं है. ऐसे में पाकिस्तान के फौज परस्त कॉलमनिस्ट जाहिद हामिद ने लाल किले पर सिख धार्मिक ध्वज लगाए जाने को दिल्ली फतह और खालिस्तानी ध्वजारोहण जैसे जुमलों के साथ प्रचारित किया. हालांकि भारत मेम सरकार की शिकायत के बाद जाहिद हामिद के ट्विटर हैंडल को प्रतिबंधित कर दिया गया है.
पाकिस्तानी सरकारी समाचार माध्यम रेडियो पाकिस्तान ने भी किसान आंदोलन के दौरान लाल किले पर हुई घटना को अपनी खबरों में परोसा. इतना ही नहीं कई अन्य पाक समाचार माध्यमों ने लाल किले पर हुए हुडदंग को फतह करार दिया. इतना ही नहीं दिल्ली पुलिस के मुताबिक पाकिस्तान से करीब 30 सोशल मीडिया हैंडल किसान आंदोलन से जुड़ी सूचनाओं को तोड़-मरोड़कर पेश करने के लिए ही चलाए जा रहे थी. बाद में भारत सरकार की शिकायत के बाद सोशल मीडिया कम्पनियों ने इनपर रोक लगा दी.
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