Kheer Bhawani Mela 2023: कश्मीर घाटी के गंदरबल जिले स्थित खीर भवानी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. दरअसल, माता खीर भावनी के मंदिर में मेला लगा है, जो दो दिन तक चलेगा. पिछले साल हुई टारगेट किलिंग के विपरीत इस साल काफी बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित माता खीर भवानी के वार्षिक उत्सव में पहुंचे हैं.
इस साल भी आस्था आतंकी हमले के डर पर भारी पड़ रही है. साल 1990 में कश्मीर में बिगड़े हालात के दौर में भी मेले को कभी रोका नहीं गया और कश्मीरी पंडितों के लिए कश्मीर से उनके जुड़ाव का सबसे बड़ा कारण भी रहा.
27-28 मई को मेला
इस साल माता रंगया देवी (माता खीर भवानी) का मेला 27-28 मई को मनाया जाना है. श्रीनगर से 35 किमी दूर गांदरबल जिले के तुलमुल्ला गांव में मौजूद मां भवानी के मंदिर परिसर में मेले के लिए तैयारियां करीब दो महीने पहले शुरू हो गई थीं.
30 हजार से ज्यादा भक्त पहुंचेंगे
मंदिर का संचालन करने वाले धर्मार्थ ट्रस्ट के प्रेसिडेंट ब्रिगेडियर रजिंदर सिंह के अनुसार मेले के लिए सभी प्रबंध किए गए हैं, ताकि आने वाले समय में कोई दिक्कत न हो. इस बार उम्मीद है कि प्रशासन के जरिये 30 हजार से ज्यादा भक्त यहां पहुंचेंगे.
कश्मीरी पंडितों की कुल देवी मां भवानी
कश्मीरी पंडितों में मां भवानी को कुल देवी माना जाता है और इस मंदिर में मां भवानी के जल स्वरूप की पूजा होती है. मान्यता है कि यहां पर हनुमान जी माता को जल स्वरूप में अपने कमंडल में लाए थे. माना जाता है कि मंदिर के जल का रंग बदलता रहता है. अपने परिवार के साथ खीर भवानी पहुंची मरेलिन कौल के अनुसार मेला उन जैसे कश्मीरी पंडितों को अपनी जड़ों में मिलने और उनके बच्चों को कश्मीर के साथ जोड़े रखने का तरीका है.
पानी का रंग बदल जाए तो प्रलय आ सकती है!
मरेलिन ने कहा, "यहां आकर हमको बहुत अच्छा लगता है, लेकिन कहीं न कहीं अब भी कश्मीरी विस्थापितों में कश्मीर के प्रति जो डर है, उसके चलते वापस आने और यहां रहने में बहुत झिझक है." मंदिर को लेकर कश्मीरी पंडितों की अपार आस्था है और मंदिर में बने जल-कुंड में पानी के रंग से उनको आने वाले साल के हालात पता चलता है. मान्यता है कि जल का रंग अगर काला या लाल हो तो प्रलय या खूनखराबा हो सकता है और अगर हरा, सफेद या नीला हो तो अच्छा समय होगा.
इस बार जल कुंड का रंग हरा
इस बार जल कुंड का रंग हरा है, लेकिन मंदिर में आए कुछ भक्तों के अनुसार इस बार भी पंचांग के अनुसार हालात विपरीत ही रहेंगे. पंचांग बनाने वाले ओमकारनाथ शास्त्री के अनुसार, उन्होंने पिछले साल भी महाचंडी यज्ञ रखा और इस साल जुलाई में ग्रहों की शांति के लिए पूजा होगी.
एक समय छा गया था मंदिर में सन्नाटा
1990 से पहले मेले में लाखों भक्त मंदिर में आकर दर्शन किया करते थे, लेकिन इसके बाद कश्मीर में मिलिटेंसी के चलते यहां सन्नाटा छा गया था. मगर अभी एक बार फिर से न सिर्फ मेले में बड़ी हलचल रहने लगी है, बल्कि फिर से यहां कश्मीरी पंडितों के वापस बसाने की भी बात हो रही है.
मेले का आयोजन मुसलमानों के बिना नामुमकिन
राजनेता संजय सराफ के अनुसार मेले का आयोजन भले ही सरकार और प्रशासन करता हो, लेकिन इस की सफलता कश्मीरी मुसलमानों के बिना ना मुमकिन है. संजय सराफ ने कहा, "मेला कश्मीरियत की मिसाल है, मगर कश्मीरी पंडितों की वापसी तब तक मुमकिन नहीं जब तक यहां के मुसलमान उनको सुरक्षा का आश्वासन ना दें."
मंदिर की खास बात है- हिंदू-मुस्लिम एकता है
आस्था के साथ-साथ खीर भवानी के मंदिर की खास बात हिंदू-मुस्लिम एकता है. यहां पर पूजा के लिए सारी सामग्री मुसलमान बेचते हैं. यहां तक कि चढ़ावे का दूध भी मुसलमानों के यहां से उपलब्ध होता हैं. गंदरबल म्युनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट अल्ताफ ने कहा, "हम पिछले दो महीने से यहां काम कर रहे हैं और यहां आने वाले लोगों को सारी सुविधाएं मुसलमान दे रहे हैं."
मंदिर में सरकार के प्रबंध नाकाफी
जम्मू से मेले में शामिल होने के लिए पहुंचे एक भक्त किरण वातल के अनुसार, मेले के लिए सरकार के प्रबंध नाकाफी हैं. किरण वातल ने कहा कि कल जम्मू से पहुंचे करीब 10 हजार भक्तों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. बता दें कि मेले का आयोजन जम्मू-कश्मीर के कई विभाग करते हैं और इस बार भी आयोजन के सारे प्रबंध राजभवन की ही देखरेख में चल रहे हैं.
मंदिर को तैयार करने में लगे सफाईकर्मी
मंदिर परिसर में बने गेस्ट हाउस और सराई और मंदिर के आस पास बने जल कुंड और परिसर में टेंट भी लगाए गए हैं, लेकिन फिर भी आने वाले भक्तों की बड़ी संख्या के चलते सब इंतजाम नाकाफी लग रहे हैं. गांदरबल म्युनिसिपल कारपोरेशन के चेयरमैन अल्ताफ अहमद के अनुसार उनके कर्मचारी और सफाईकर्मी मंदिर को तैयार करने में लगे हुए हैं और जो भी भक्त मेले में आए हैं उनको पूरी सुविधाएं मिलेगी. शायद यही वजह है कि कश्मीरी मुसलमान भी उतनी ही आस्था के साथ इस मंदिर में आते हैं, जितनी आस्था के साथ हिंदू आते हैं.