Khori Village Demolition Work: फरीदाबाद दिल्ली बॉर्डर स्थित खोरी गांव से लोगों के घर बिना पुनर्वास के ही तोड़े जा रहे हैं. इसके बाद इस पूरे मामले में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार एजेंसियां भी कूद पड़ी हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने सरकार से अपील की कि खोरी गांव में तोड़फोड़ रोक दिया जाए. कोरोना और मानसून के दौरान इन्हें विस्थापित करना अमानवीय है.


प्रशासन नहीं चाहता कि लोगों की बातें बाहर पहुंचे इसलिए न सिर्फ बाहरी लोगों के गांव में जाने पर पाबंदी लगा दी है बल्कि अंदर जाने की कोशिश करने वाले पत्रकारों के साथ बदसलूकी भी की जा रही है. पूरे इलाके को बैरिकेड और जवानों की टोलियों से घेर दिया गया है. लोगों की स्थिति जानने के लिए पहुंची एबीपी न्यूज़ की टीम के साथ ना सिर्फ पुलिस ने धक्कामुक्की की बल्कि कैमरे को भी बंद करा दिया गया.


क्या है पूरा मामला?


खोरी गांव संरक्षित वन भूमि पर बसा हुआ है. 1992 में ये जमीन संरक्षित वन भूमि के दायरे में मानी गई. इसके बावजूद यहां पर अवैध निर्माण होते रहे. सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध कब्जा मानते हुए गांव वालों को विस्थापित करने का आदेश दिया. इसी साल सात जून को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद जंगल की जमीन को पूरी तरह से अतिक्रमण मुक्त बनाने का आदेश दिया था. इसके बाद प्रशासन ने यहां रह रहे लोगों के पुनर्वास की नीति जारी करते हुए उन्हें घरों को छोड़ने का निर्देश दिया था.


पुनर्वास का काम शुरू होने से पहले ही लोगों ने इस फैसले से असहमति जताई जिसके बाद यहां घरों को तोड़ने का काम शुरू हो गया.  नगर निगम के अनुसार, दिल्ली-फरीदाबाद बॉर्डर पर बसे खोरी गांव में 125 एकड़ जमीन है. इसमें से 80 एकड़ जमीन पर लोगों ने कब्जा कर मकान बनाए हुए हैं. यहां करीब 10 हजार परिवार रहते हैं.


इलाके में अशांति न हो इसके लिए पूरे गांव को छावनी में बदल दिया गया है. गांव के चप्पे चप्पे पर पुलिस के जवान मौजूद हैं. ना सिर्फ मीडिया बल्कि किसी भी जगह के बाहरी शख्स को यहां घुसने की इजाज़त नहीं है.


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