नई दिल्ली: यूपी के बरेली के रहने वाले 45 साल के मंसूर रफी पिछले साल मई में जब पहली बार दिल्ली के एक अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग में पहुंचे तो चेकअप के बाद डॉक्टर ने उन्हें कीडनी ट्रांसप्लांट की हिदायत थी. दिल्ली के वीपीएस रॉकलैंड अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर विक्रम कालरा ने उनसे पूछा कि क्या उनका कोई रिश्तेदार किडनी दान कर सकता है?


डॉक्टर के इस सवाल के बाद मंसूर रफी सकपकाए.. फिर बोले- मेरे भाई किडनी देना नहीं चाहते और मेरी बीवी का ब्लड ग्रुप अलग है. लेकिन मंसूर रफी यहीं खामोश नहीं हुए, बल्कि उनकी बाद की बातें ज्यादा तवज्जों चाहती हैं.


मंसूर रफी ने कहा कि कीडनी ट्रांसप्लांट के लिए उसने अपने एक गहरे दोस्त से जब अपनी मुसीबत भरी दास्तान सुनाई तो उनसे किडनी दान देने के लिए हामी भर दी है. वो किडनी देने को तैयार है.

लेकिन इसमें एक दिक्कत थी... जो दोस्त था, वो न तो परिवार से था, न खानदान से था और न ही रिश्तेदारों में से था, बल्कि मामला ये था वो उसके धर्म से भी संबंध नहीं रखता था. जोकि डॉक्टर ने दान देने के लिए इसे नामुमकिन माना.

अब रफी के सामने एक शर्ते थी जिसे पूरा करना था. डॉक्टर का कहना था कि अब रफ़ी को ये साबित करना होगा कि बीमार होने से पहले से उसका कीडनी डोनर से इमोशनल रिश्ता था.

डॉक्टर के इस शर्त पर रफी ने अतीत के पन्नों को पलटना शुरू किया. डॉक्टर के सामने उन लम्हों की तस्वीरें पेश की जिसमें कभी दोनों ने साथ मिलकर धार्मिक यात्राएं की थीं. रफी ने दोस्त विपिन कुमार गुप्ता के साथ की 12 साल पुरानी तस्वीरें दिखाईं. तस्वीरों में दिख रहा था कि दोनों के परिवार एक साथ अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह गये थे. अजमेर से लौटते समय दोनों दोस्त परिवार समेत तिरुपति के बालाजी मंदिर गए. कुछ तस्वीरों में दोनों के पड़ोसी भी दिख रहे थे जो दोनों की दोस्ती के गवाह थे.

डॉक्टर कालरा ने मामले को राज्य सरकार के संबंधित अधिकारियों को भेज दिया. अधिकारियों ने जांच किया कि कहीं गुप्ता पैसे के लिए तो किडनी दान नहीं कर रहे हैं? जांच में ये पता चल गया कि गुप्ता अपने मन से किडनी दान करना चाहते हैं. करीब एक साल के लंबी प्रक्रिया के बाद उन्हें किडनी दान की इजाजत मिल गई. रफी को दान दी हुई किडनी लगा दी गई है. रफी और गुप्ता दोनों ही पेशे से गाड़ी चालक (ड्राइवर) हैं. दोनों की तनख्वाह लगभग बराबर है.

गुप्ता ने किडनी दान करने के फैसले पर बताया कि रफी उसके गुरु हैं. गुप्ता आगे कहते हैं, "साल 2001 में वह अपने पिता कि मिठाई की दुकान में काम करता था. रफी वहां आते थे. उसने रफ़ी से कहा कि मैं भी ड्राइविंग सीखना चाहता हूं. कई महीनों तक वो समय निकालकर मुझे गाड़ी चलाना सिखाते रहे. अगर आज मैं अपने परिवार का खर्च चला पा रहा हूं तो रफी की वजह से. ये तो उसके बदले छोटा सा प्रतिदान है." ये किडनी दान का मामला भारत की गंगा जमुनी तहजीब की एक जीती जागती मिसाल है, जहां मुसीबत में फंसे इंसानों की मदद करने में मजहब आड़े नहीं आता.