Kiren Rijiju Controversy: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल हुआ है. सरकार की ओर से फैसला लिया गया है कि कानून मंत्रालय से किरेन रिजिजू को हटाकर कमान अर्जुन राम मेघवाल को सौंपी जाए. राजनीतिक मुद्दों पर नजर रखने वालों की मानें तो इसके पीछे एक बड़ी चुनावी वजह भी हो सकती है लेकिन, इस बात से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि कानून मंत्री रहते हुए किरेन रिजिजू ने काफी विवादों को तूल दिया था. 


रिजिजू की युवा मामलों और खेल मंत्रालय से कानून मंत्रालय में पदोन्नति होना कई लोगों के लिए एक आश्चर्य रहा था. सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करने वाली अपनी टिप्पणी के लिए भी वह काफी सुर्खियों में रहे. उन्होंने सरकार के कामकाज में "न्यायिक हस्तक्षेप" का मुद्दा भी उठाया था. 



किरण रिजिजू ने अपनी टिप्पणी से खड़े किए ये विवाद 




1- 'अंकल जज सिंड्रोम' वाली उनकी टिप्पणी ने काफी हंगामा खड़ा किया था. रिजिजू नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली के हमेशा खुले तौर पर आलोचक रहे हैं. उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा था कि हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति पर विवाद तब तक बना रहेगा जब तक कॉलेजियम प्रणाली रहेगी. हाई कोर्ट में तीन वरिष्ठ जज तय करते हैं कि अगले जज कौन बनेंगे. वे केवल उन नामों पर निर्णय लेंगे जो उनकी जानकारी या उनके अधिकार क्षेत्र में हैं. कॉलेजियम ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहां जज सिर्फ उन्हीं का नाम लेंगे जिन्हें वे जानते हैं. उन्होंने कहा था कि "अंकल-जज का मतलब है कि अगर आपका कोई जानने वाला जज बन गया है, तो आपका रास्ता साफ हो जाता है." कहा था कि किसी प्रभावशाली जज को जानने वाले एक अच्छे वकील की सिफारिश नहीं की जाएगी. 


2- न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बढ़ते विवाद के बीच, रिजिजू ने कॉलेजियम प्रणाली को संविधान के लिए "विदेशी" बताया था. महाराष्ट्र में बार काउंसिल की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, रिजिजू ने कहा था कि जजों को चुनाव लड़ने या सार्वजनिक जांच का सामना नहीं करना पड़ता है. हालांकि, वे अभी भी अपने कार्यों और अपने निर्णयों के लिए जज हैं. उन्होंने आगे कहा था कि “लोग आपको देख रहे हैं और आपको जज कर रहे हैं. आपके निर्णय, आपकी कार्य प्रक्रिया, आप कैसे न्याय करते हैं... लोग देख सकते हैं और आंकलन कर सकते हैं... वे राय बनाते हैं.'


3- पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट में कुछ नियुक्तियों को "रोकने" के लिए सरकार का बचाव करने वाली अपनी टिप्पणी को लेकर रिजिजू सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर आ गए थे. उन्होंने कहा, 'यह कभी न कहें कि सरकार फाइलों पर बैठी है. फिर फाइलें सरकार को मत भेजें, आप खुद को नियुक्त करें, आप शो चलाते हैं. यह बयान रिजिजू ने टाइम्स नाउ समिट में दिया था. उन्होंने आगे कहा था कि "कोई भी चीज जो केवल अदालतों या कुछ जजों कि तरफ से लिए गए फैसले के कारण संविधान से अलग है, आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि फैसला हमेशा देश के समर्थन में होगा. 


4- 25 नवंबर 2022 को रिजिजू ने कहा था कि जब तक कॉलेजियम सिस्टम चल रहा है, उन्हें सिस्टम का सम्मान करना होगा. “लेकिन अगर आप उम्मीद करते हैं कि सरकार को जज के रूप में नियुक्त किए जाने वाले नाम पर सिर्फ इसलिए हस्ताक्षर कर देना चाहिए क्योंकि यह कॉलेजियम इसमें सिफारिश की गई है, तो सरकार की क्या भूमिका है? ड्यू डिलिजेंस शब्द का क्या अर्थ है?' रिजिजू ने आगे कहा कि कॉलेजियम प्रणाली में खामियां हैं और "लोग आवाज उठा रहे हैं" कि प्रणाली पारदर्शी नहीं है.
 
5- रिजिजू साल 2023 मार्च में अपनी टिप्पणी को लेकर विपक्ष के निशाने पर भी आ गए थे. जब उन्होंने कहा था कि भारतीय न्यायपालिका को कमजोर करने और "इसे सरकार के खिलाफ मोड़ने के लिए एक "सोचे-समझे प्रयास" थे. मंत्री ने कहा था कि कुछ जज ऐसे हैं जो कार्यकर्ता हैं और एक भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा हैं, जो न्यायपालिका को विपक्षी दलों की तरह सरकार के खिलाफ करने की कोशिश कर रहे हैं. 



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