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kisan Andolan: साल 2018 में किसानों ने उठाई सबसे ज्यादा अपने हक की आवाज, दिल्ली में हुए कई आंदोलन
kisan Andolan: सरकार बदलने के बाद भी किसानों के हालात नहीं बदले हैं. हालांकि, मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात की है.
kisan Andolan: साल 2018 में देश के किसानों ने अपनी मांगों को लेकर अनेक बार प्रदर्शन किए. प्रदर्शन के दौरान कभी किसानों ने संसद भवन तक का मार्च किया तो कभी महाराष्ट्र में नासिक से मुंबई के बीच 30 हजार किसानों ने पैदल मार्च किया. इस दौरान एक प्रदर्शन के दौरान दिल्ली आ रहे किसानों को यहां की सीमा से पहले यूपी में ही रोक लिया गया. मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन के दौरान 5 किसानों की पुलिस की गोली लगने से मौत की हर जगह किरकिरी हुई. ऐसे ही साल 2018 में हुए तमाम बड़े किसान आंदोलन के बारे में हम यहां आपको बताएंगे. जिससे साल के खत्म होने के साथ ही आप इस दौरान हुए अहम घटनाक्रम को भूलें नहीं बल्कि याद रखें.
30 हज़ार किसानों का नासिक से मुंबई पैदल मार्च
8 मार्च को नासिक से 30 हज़ार किसान छह दिनों तक पैदल मार्च कर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में अपनी गुहार लगाने पहुंचे. 200 किलोमीटर मार्च कर राजधानी पहुंचे इन किसानों की बुंलद आवाज से सरकार हरकत में आई. आंदोलन के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस लगभग सभी मांगें मानने पर सहमत हो गए थे. इस किसान आंदोलन का नेतृत्व सीपीएम से जुड़ी संगठन अखिल भारतीय किसान सभा कर रही थी. इनकी मांग किसानों के ऋण बिना शर्त माफ करने और वन भूमि उन आदिवासी किसानों को सौंपने की मांग की थी जो सालों से इस पर खेती कर रहे हैं. साथ ही किसान स्वामीनाथन समिति की कृषि लागत मूल्यों से डेढ़ गुना ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की सिफारिश को लागू करने की भी मांग कर रहे थे.
उत्तर प्रदेश में भी असंतुष्ट हैं किसान
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कुछ शर्तों के साथ किसान कर्जमाफी के बावजूद कई बार किसान आंदोलन हो चुके हैं. किसानों ने सरकार पर आलू का उचित दाम नहीं मिलने का आरोप लगाते हुए जून के महीने में विधानसभा और राजभवन के सामने आलू फेंक दिया. इसके बाद समाजवादी पार्टी ने सरकार को घेरा. वहीं भारतीय किसान यूनियन ने नौ फरवरी को आलू किसानों की समस्याओं को लेकर प्रदेशव्यापी आंदोलन किया था. वहीं, महोबा जिले में ओलावृष्टि से तबाह फसलों के नुकसान के मुआवजे की मांग को लेकर किसानों ने फरवरी में आंदोलन किया था. आंदोलन करने वाले 40 किसानों के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा भी दर्ज किया था. बुंदेलखंड के किसान अपनी मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन करते रहते हैं.
किसानों ने संसद भवन तक निकाला मार्च
सितंबर के महीने में इस साल देश ने एक और बड़ा किसान आंदोलन देखा. किसान ने इस दौरान रामलीला मैदान से लेकर संसद मार्ग तक मार्च निकाला. किसानों ने महंगाई, न्यूनतम भत्ता, कर्जमाफी समेत कई बड़े मुद्दों को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोला था. इस प्रदर्शन में देश भर से आए किसान एकत्रित हुए थे, जिसमें बाढ़ प्रभावित केरल के किसान भी शामिल थे. इस प्रदर्शन की अगुवाई ऑल इंडिया किसान महासभा ने की थी. किसान महासभा और सीटू के नेतृत्व में लाखों की संख्या में किसान इस मार्च में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंचे थे.
राजस्थान में भी सड़कों पर उतरे किसान
इस साल सितंबर महीने में राजस्थान में बीजेपी की सरकार थी. वहां इस दौरान किसान सड़कों पर उतरे. सीकर में किसानों ने सितंबर महीने में प्याज, मूंगफली के उचित दाम, पशुओं की बिक्री पर लगी रोक हटाने, कर्ज माफी, किसानों को पेंशन देने सहित अन्य मांगों को लेकर आंदोलन किया. इस आंदोलन में ज्यादातर महिलाएं थी. किसान नेताओं के साथ दो हजार से अधिक किसानों ने जयपुर कूच किया. हालांकि पुलिस नाकेबंदी की वजह से किसान जयपुर नहीं पहुंच पाए. पुलिस ने आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया. आंदोलन के आगे झुकी सरकार ने अंतत: 50,000 रुयपे तक का लोन माफ करने का ऐलान किया था. साथ ही 2,000 रुपये किसानों को बतौर पेंशन देने के दावे किये थे.
किसान और पुलिस के बीच सीधी झड़प
दो अक्टूबर को कर्ज माफी, गन्ना की कीमतों समेत कई अन्य मांगों को लेकर दिल्ली मार्च करने जा रहे हजारों किसानों की दिल्ली सीमा पर पुलिस से झड़प हो गई. पुलिस की चेतावनी के बावजूद किसानों ने आगे बढ़ने की कोशिश की. इसके बाद किसानों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया. इस दौरान दिल्ली सीमा पर स्थिति बेहद तनावपूर्ण बन गई थी. बाद में पुलिस ने बल प्रयोग कर किसानों को दिल्ली में नहीं घुसने दिया.
सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा मामला
20 नवंबर को ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी (AIKSCC) ने दिल्ली में प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और तेलंगना के हजारों किसान शामिल हुए थे. इस दौरान स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने किसानों की रैली का नेतृत्व रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक किया था. योगेंद्र यादव ने सूखा प्रभावित इलाकों का पिछले दो सालों में दौरा किया है. उन्होंने इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से किसानों की बदहाली पर रिपोर्ट मांगी थी.
रामलीला मैदान से संसद भवन तक का मार्च
30 नवंबर को एक बार फिर हजारों किसान कर्जमाफी और फसलों के उचित दामों की मांगों को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जुटे थे. किसानों ने इस दौरान रामलीला मैदान से संसद भवन तक का मार्च किया था. इस मार्च में लगभग 200 किसान संगठन और 21 छोटे बड़े राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल था. इस मार्च का आह्वान अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने ने किया था. इसमें मेघालय, जम्मू कश्मीर, गुजरात और केरल सहित देश के विभिन्न राज्यों से किसानों दिल्ली आए थे.
साल 2018 के इन सभी किसान आंदोलनों पर नजर डालें तो साफ दिख रहा है कि देश के किसानों की नाराज़गी बढ़ी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने किसानों की आत्महत्या समेत कई मुद्दों को अपना चुनावी एजेंडा बनाया था. स्वामिनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का वादा किया था. लेकिन सरकार बदलने के बाद भी किसानों के हालात नहीं बदले हैं. हालांकि, मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात की है.
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