नई दिल्लीः उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसफ का सुप्रीम कोर्ट जज बनना एक बार फिर टलता नज़र आ रहा है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सदस्य जस्टिस जे चेलमेश्वर 22 जून को रिटायर होने जा रहे हैं. इससे पहले कॉलेजियम की बैठक होने की उम्मीद नहीं है.


पिछले कुछ अरसे से ये मसला सरकार और न्यायपालिका के बीच तनातनी की वजह बना हुआ है. सरकार ने जोसफ को सुप्रीम कोर्ट जज बनाने से मना कर दिया था. इसके बाद 5 वरिष्ठतम जजों की कॉलेजियम ने ये तय किया था कि उनका नाम दोबारा सरकार के पास भेजा जाएगा. लेकिन, इस बारे में अंतिम फैसला नहीं हो पाया था.

कॉलेजियम की बैठक सभी सदस्य जजों की मौजूदगी में होती है. सुप्रीम कोर्ट में इस समय गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं. इस वजह से ज़्यादातर जज नियमित रूप से दिल्ली में उपलब्ध नहीं हैं. खुद जस्टिस चेलमेश्वर फिलहाल हैदराबाद हैं. अगले हफ्ते जब वो दिल्ली में होंगे तब जस्टिस रंजन गोगोई, कुरियन जोसफ और मदन बी लोकुर के यहां होने की उम्मीद नहीं है.

अगर चेलमेश्वर के रिटायर होने से पहले कॉलेजियम की बैठक नहीं हो पाती है तो इसके अगले महीने ही होने की उम्मीद है. इस वक्त छठे नंबर के जज जस्टिस एके सीकरी कॉलेजियम में चेलमेश्वर की जगह लेंगे. जोसफ का नाम दोबारा भेजने के लिए उनकी भी सहमति ज़रूरी होगी.

क्या है मसला :-

कॉलेजियम ने 10 जनवरी को जस्टिस जोसफ और वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा को सुप्रीम कोर्ट जज बनाने की सिफारिश एक साथ सरकार को भेजी थी. लेकिन सरकार ने 26 अप्रैल को सिर्फ इंदु मल्होत्रा के नाम को मंज़ूरी दी. जोसफ का नाम दोबारा विचार के लिए कॉलेजियम के पास भेज दिया.

कानून मंत्रालय की तरफ से भेजी गई चिट्ठी में जोसफ का नाम स्वीकार न करने के पीछे कई वजह बताई गई. चिट्ठी में कहा गया :-

* हाई कोर्ट के जजों में जोसफ वरिष्ठता के लिहाज से 42वें हैं

* 11 हाई कोर्ट चीफ जस्टिस उनसे वरिष्ठ हैं

* केरल हाई कोर्ट के एक जज पहले से सुप्रीम कोर्ट में हैं. कई हाई कोर्ट से कोई जज नहीं

* सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल कोई भी अनुसूचित जाति/जनजाति का जज नहीं

सरकार के इस कदम को लेकर कानूनविद हैरान थे. कहा गया कि 2 साल पहले उत्तराखंड में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार को बहाल करने का जस्टिस जोसफ का फैसला केंद्र को खटक रहा है. जानकारी के मुताबिक कॉलेजियम के सदस्य जज भी सरकार के इस कदम से नाराज़ थे.

आख़िरकार, 11 मई को कॉलेजियम की बैठक में चीफ जस्टिस और बाकी 4 जजों ने सर्वसम्मति से ये तय किया कि जोसफ का नाम सरकार के पास फिर से भेजा जाएगा. लेकिन, बैठक में ये भी तय हुआ कि जोसफ के साथ कुछ और नामों की भी सिफारिश की जाएगी. इन नामों पर अब तक फैसला नहीं हो पाया है.

मौजूदा नियमों के तहत एक सिफारिश दोबारा भेजे जाने पर सरकार को उसे मानना ही होता है. लेकिन उस पर अमल करने को लेकर कोई समय सीमा तय नहीं है. यानी, कॉलेजियम की तरफ से जस्टिस जोसफ की सिफारिश दोबारा भेजे जाने पर सरकार उनकी नियुक्ति से मना नहीं कर सकेगी. सिर्फ नियुक्ति का नोटिफिकेशन जारी करने में देरी कर सकती है.

इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में जजों के 6 पद खाली हैं. इस लिहाज़ से नए जजों की नियुक्ति काफी अहम है.