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बोगीबील ब्रिज: टैंक और फाइटर जेट की हो सकेगी लैंडिंग, चीन की चालाकी पर लगेगी लगाम, जानें पुल की 10 खास बातें
बोगीबील पुल की आधारशिला साल 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने रखी थी, लेकिन इसका निर्माण कार्य साल 2002 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शुरू हुआ.
नई दिल्ली: भारतीय इंजीनियरिंग की मिसाल कहे जा रहे असम के बोगीबील पुल को आज क्रिसमस के मौके पर पीएम मोदी जनता को सौपेंगे. डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने इस पुल की खासियत है कि ये देश के दो राज्यों असम और अरुणाचल प्रदेश को सीधा जोड़ता है. बोगीबील पुल सामरिक लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है ताकि 1962 जैसा धोखा देश को फिर न मिल सके, जब चीन ने अरूणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों पर कब्जा करने के लिए भारत पर हमला कर दिया था. पुल बनने से सेना को भारत-चीन सीमा के पास पहुंचने में काफी मदद मिलेगी. चीन से युद्ध जैसी स्थिति में देश के दूसरे इलाकों से सैनिकों को अरुणाचल प्रदेश जल्द से जल्द भेजा जा सकेगा. ये पुल इतना मजबूत है कि इस पर सेना के टैंक चलाए जा सकते हैं और फाइटर जेट भी लैंड हो सकते हैं.
आज 25 दिसंबर को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन है और आज ही के दिन ये पुल देश के लोगों को मिल जाएगा. जानिए इस पुल से जुड़ी 10 खास बातें:- बोगीबील पुल की आधारशिला साल 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने रखी थी, लेकिन इसका निर्माण कार्य साल 2002 में अटल जी की सरकार में शुरू हुआ.
- पीएम मोदी इस पुल के उद्घाटन के मौके पर तिनसुकिया और नहारलागुन इंटरसिटी एक्सप्रेस को भी हरी झंडी दिखाएंगे.
- 4.94 किलोमीटर लंबा बोगीबील पुल एशिया का दूसरा और देश का सबसे लंबा रेल-रोड पुल है.
- बोगीबील पुल भारत का एकमात्र पूरी तरह से वेल्डेड पुल है जिसके लिए यूरोपीय कोड और वेल्डिंग मानकों का पालन किया गया है.
- ब्रह्मपुत्र नदी पर बना ये पुल कुल 42 खम्भों पर टिका हुआ है जिन्हें नदी के अंदर 62 मीटर तक गाड़ा गया है. ये पुल 8 तीव्रता का भूकंप झेलने की क्षमता रखता है.
- ये एक डबल डेकर पुल है जिसे भारतीय रेलवे ने बनाया है. इसके नीचे के डेक पर दो रेल लाइने हैं और ऊपर के डेक पर तीन लेन की सड़क है. रेल लाइन पर 100 किलोमीटर की रफ्तार से ट्रेनें दौड़ सकेंगी.
- पुल को बनाने में इंजीनियरों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी की चौड़ाई 10 किलोमीटर से भी ज्यादा है और इसके रास्ते में भी बदलाव होता रहता है. ऐसे में सबसे पहले इंजीनियरों ने यहां सीमेंट के बड़े-बड़े ढांचे खड़े किए और इस नायाब तकनीक से नदी की चौड़ाई को 5 किलोमीटर में बदल दिया.
- ये पुल ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी और दक्षिणी सिरों को जोड़ेगा. पहले धेमाजी से डिब्रूगढ़ की 500 किमी की दूरी तय करने में 34 घंटे लगते थे, अब ये सफर महज 100 किमी का रह जाएगा और 3 घंटे लगेंगे. पहले इटानगर से डिब्रूगढ़ की भी दूरी तय करने में 24 घंटे का समय लगता था लेकिन अब पुल की मदद से सिर्फ 5 घंटे लगेंगे.
- पुल को बनाने में तकरीबन 6000 करोड़ रुपयों की लागत आई है जबकि इसका शुरुआती बजट 3200 करोड़ रुपये था और इसकी लंबाई भी शुरुआत में 4.31 किमी तय की गई थी. पुल को बनाने में 30 लाख सीमेंट की बोरियां लगी.
- पुल को बनाने में 15 साल से ज्यादा का वक्त लगा, क्योंकि डिब्रूगढ़ में मार्च से लेकर अक्टूबर तक बारिश होती है. हालांकि, पुल को बनाने की समय सीमा 6 साल तय की गई थी.
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प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक
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