नई दिल्ली: वित्तमंत्री निर्मला सीतारण ने आज मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया. सरकार जहां बजट को आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का बजट बता रही है तो वहीं विपक्ष इसे नई बोतल में पुरानी शराब बता रहा है. इस सब के बीच जो एक चीज जो चर्चा का विषय बनी हुई है वो है वित्त मंत्री के हाथ में मौजूद ला रंग का कपड़ा. वित्तमंत्री जब बजट पेश करने के लिए निकलीं तो उनके हाथ में पारंपरिक सूटकेस नहीं बल्कि लाल रंग का एक कपड़ा था जिस पर अशोक स्तंभ बना हुआ था. ये पारंपरिक बहीखाते की शक्ल में था, इसलिए इस बार के बजट को बहीखाता कहा गया.
दिल्ली के फतेहपुरी इलाके में भोलानाथ राछो मल बही खाते वाले की प्रसिद्ध दुकान है. यहां पर साल 1890 से लेकर आज भी खाताबही की मिलती है. इस दुकान के मालिक वीरेंद्र गुप्ता ने बताया कि बही खाता बहुत पहले से चला आ रहा है. इसमें पूरे साल का रोज का हिसाब रखा जाता है. इसमें सारे हिसाब रखे जाते है. बही खाते हर साल वित्त वर्ष के हिसाब से खरीदा जाता है.
उन्होंने बताया कि ये कई तरह और साइज की हो सकती है. साथ ही लोग प्रमुखता दो तरह से इसका इस्तेमाल करते है. पहला रोकड़ा यानी कैश का हिसाब रखने के लिए और दूसरा खाता बनाने के लिए. इन्हें लाल कपड़े में लपेट कर रखते हैं. हर साल के लिए अलग बही और कपड़ा होता है. खास बात ये है कि किताबें हाथ से बनती हैं. अलग राज्यों में अलग समय इसे खरीदने की परम्परा है. गुजरात में दीवाली तो दिल्ली में वित्तीय वर्ष के हिसाब से लेकिन ये पूरे साल की है. खाताबही अब ज्यादा लोग नहीं इस्तेमाल करते है. बही खाता ज्यादातर लाल रंग की होती है.
देश में अंग्रेजों के जमाने से ही बजट पेश होता आया है. आजादी के बाद कई सालों तक बजट शाम 5 बजे पेश होता था. साल 1999 में अटल सरकार में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने बजट का समय बदलने का सुझाव दिया जो सबको पसंद आया. बजट का समय बदलने के पीछे जो वजह यशवंत सिन्हा ने बताई उसका जिक्र पीएम मोदी अपने पहले कार्यकाल में संसद में भी कर चुके हैं. मतलब साल 1999 से पहले तक अंग्रेजों के समय अनुसार देश का बजट पेश होता रहा था. बाद में ये परंपरा बदली और अब समय के बाद ब्रीफकेस भी आज मोदी सरकार ने बदल दी.