जस्टिस पिनाकी घोष हो सकते हैं पहले लोकपाल, जयललिता से लेकर आडवाणी तक पर सुनाए फैसले
आज देश को पहला लोकपाल मिल सकता है. अन्ना आंदोलन के भारी दबाव में पूर्व की कांग्रेस सरकार ने 2013 में लोकपाल कानून पारित किया गया था लेकिन कई कारणों से अब तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो सकी थी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल हो सकते हैं. आज उनके नाम की आधिकारिक घोषणा की जा सकती है. अधिकारियों ने कोई विस्तृत जानकारी दिये बिना कहा कि समझा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली लोकपाल चयन समिति पूर्व जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष के नाम पर विचार कर रही है. अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन में चयन समिति की बैठक की तारीख बताने के लिए कहा था.
कौन हैं जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष? 67 साल के जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष का जन्म 28 मई 1952 को पश्चिम बंगाल में हुआ. जस्टिस घोष अपने परिवार में वकालत के पेशे से जुड़े पांचवीं पीढ़ी के सदस्य हैं, उनके पिता जस्टिस शंभू चंद्र घोष कोलकाता हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस थे.
मार्च 2013 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. उन्होंने साल 1976 में पश्चिम बंगाल बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन करवाया और वकालत की शुरुआत की. जस्टिस घोष मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए, वर्तमान मान में वह राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं.
सुप्रीम कोर्ट आने से पहले कलकत्ता हाई कोर्ट के जज थे, वहां वे जुलाई 1997 में पहुंचे. जून 2012 में उनका तबादला आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के लिए हो गया. इसी साल वे आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जज भी बन गए. 16 जून 2014 को लोकपाल विधेयक लागू होने के करीब पांच साल बाद लोकपाल पद के लिए उनकी नियुक्ति हुई है.
जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष के कुछ महत्वपूर्ण फैसले जस्टिस पिनाकी घोष ने आय से अधिक संपत्ति मामले में तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता और उनकी सहयोगी वीके शशिकला के खिलाफ निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था. यह फैसले सुनाए जाने से पहले जयललिता का निधन हो गया था.
सरकारी विज्ञापन के लिए दिशा निर्देश तय करने वाली बेंच में भी जस्टिस घोष शामिल थे. इस बेंच ने राजनेताओं के सरकारी विज्ञापन में अपनी फोटो के इस्तेमाल से रोका था.
अप्रैल 2017 में जस्टिस पिनाकी घोष और जस्टिस आएफ नरीमन की बेंच ने बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह समेत बाकी नेताओं पर आपराधिक साजिश की धारा के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया था.
इसके साथ ही जस्टिस घोषण उस बेंच के भी सदस्य थे जिसने आदेश दिया था कि अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन के फैसले को पलट दिया. इस बेंच ने अरुणाचल में पहले जैसी स्थिति बहाल करने का आदेश दिया था.
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