नई दिल्ली: अक्सर आप खेत में टिड्डी दल को देखते हैं, जो पल भर में लगी पैदावार को चट कर जाते हैं. जिससे किसानों की मेहनत पर पानी तो फिरता ही है साथ में उन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. लेकिन क्या आप जानते हैं इनका हमला करने का तरीका?


कीड़े-मकोड़ों की प्रजातियों में टिड्डी दल बिल्कुल अलग तरह के जीव होते हैं. ये झुंड में किसी प्रशिक्षित फौज की तरह हमलावर होते हैं. और लहलहाते खेतों को तबाह कर आगे बढ़ जाते हैं. टिड्डी दल की फौज जिस खेत पर हमला करने का इरादा करती है, उस पर एक सिरे से अचानक दाखिल होती है और दूसरे सिरे पर पहुंचने तक खेत उजाड़ देती है.


टिड्डी दल उस वक्त तक तबाही फैलाता रहता है जब तक उस खेत में तमाम फसल बर्बाद ना हो जाए. जब उसे पूरी तरह विश्वास हो जाता है कि अब उस खेत में उसकी दिलचस्पी के लिए कुछ बाकी नहीं बचा हो. तो फिर ये अगले खेत का रुख कर उसे भी अपना शिकार बना डालता है. फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों में टिड्डी दल सबसे निर्दयी और खौफनाक किस्म का होता है.


टिड्डी की छह टांगें होती हैं. दो सीने में और दो बीच में और दो आखिर में. इस कीड़े के अंडे देने का तरीका भी काफी रोचक होता है. टिड्डी जब अंड्डे देने का इऱादा करती है तो ये सख्त और बंजर जमीन का चुनाव करती है. जहां किसी इनसान की आवाजाही ना हुई हो. फिर उस जमीन पर दुम से अपने अंडे के बराबर सुराख कर उसमें अंडा देती है. जिसके बाद वहीं पड़े-पड़े जमीन की गर्मी से अंडे से बच्चा पैदा हो जाता है. टिड्डी उन कीट पतंगों में से है जो फौज की तरह एक साथ उड़ती है. टिड्डी अपने लीडर के अधीन उसके साथ उड़ती है. उनका लीडर अगर कहीं उतरता है तो ये भी उसके साथ उतर जाती है.


टिड्डी दल को खाद्यान्न और नस्ल के बढ़ाने के लिए रेतीले इलाके की जरुरत होती है जहां वातावरण में नमी पाई जाती हो. आमतौर पर ये कीट पतंग रेगिस्तानी इलाकों में रहने को प्राथमिकता देते हैं. मगर उचित वातावरण ना मिलने पर ये फिर खेतों का रुख करते है.


टिड्डी से तात्पर्य कीड़े मकोड़ों की उस प्रजाति से होता है जो कभी झुंड की शक्ल में इकट्ठी उड़ती हुई आती है. ये जिस खेत या फसल पर बैठ जाएं उसे चट कर जाती हैं. यहां तक कि पेड़ों के पत्ते का स्वाहा कर देते हैं.


कहा जाता है कि टिड्डी में कई जानवरों की दस विशेषताएं पायी जाती हैं. घोड़े का चेहरा, हाथी की आंख, बैल की गर्दन, बारहसिंगा के सींग, शेर का सीना, बिच्छू का पेट, ऊंट की रान, शुतुरमुर्ग की टांग और सांप की दुम की तरह उसका आकार होता है. जानकारों का कहना है कि टिड्डी दल का शिकार करने के लिए रात का समय बहुत ही मुनासिब होता है क्योंकि सर्दी के कारण उनके परों में शिकारी से बचने की ताकत नहीं रहती.


टिड्डी के हमलों से निबटने का तरीका किसी को मालूम नहीं है. यहां तक कि उन कंपनियों के पास भी नहीं है जो कीड़े-मकोड़े, कीट पतंग मारनेवाली दवा बनाती हैं. दुनिया में टिड्डी दल के हमले सबसे ज्यादा कजाकिस्तान में होते हैं. कजाकिस्तान की हुकूमत उनके हमले से रोकथाम के लिए सालाना करीब एक करोड़ 18 लाख डॉलर खर्च करती है.


टिड्डी समुद्री और जलीय दोनों होते हैं. मगर समुद्री टिड्डी दल से इंसानों का आम तौर पर वास्ता नहीं होता. ये शक्ल के एतबार से कुछ बड़ी होती हैं और कुछ छोटी. कुछ टिड्डियों का रंग लाल होता है जबकि कुछ का रंग पीला. इसके अलावा कुछ टिड्डी सफेद रंग की भी होती हैं.