पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में महज कुछ ही महीने बचे हैं ऐसे में सभी राजनीतिक दलों की तरफ से सियासी चालें चली जा रही हैं. राज्य की 294 विधानसभा सीटों के लिए सभी दलों की तरफ से रणनीति करीब-करीब तैयार की जा चुकी है. इस बीच, ममता ने नंदीग्राम-1 विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का सोमवार को ऐलान कर एक साथ कई रानजीतिक संदेश देने की कोशिशें की है. सिंगूर के साथ नंदीग्राम वो जगह है जहां पर भूमि अधिग्रहण को लेकर भारी विरोध हुआ था और इसका ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने में मदद मिली.


ममता के लिए नंदीग्राम महत्वपूर्ण


वाम मोर्चे की सरकार की वहां पर कैमिकल फैक्ट्री स्थापना करने की योजना थी और हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी की तरफ से साल  2006 में इसका ऐलान भी किया गया था. लेकिन, जबरदस्ती भूअधिग्रहण के खिलाफ भारी तादाद में प्रदर्शन शुरू हो गया था. भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी का इसके विरोध में गठन किया गया था और शुभेंदु अधिकार परिवार ने इसमें अहम भूमिका निभाई थी.


नंदीग्राम और सिंगूर क्यों अहम?


कोलकाता स्थित आलिया यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोसेसर मोहम्मद रियाज का कहना है कि नंदीग्राम-1 विधानसभा तामलुक संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है और यह पूर्वी मेदिनीपुर जिले का हिस्सा है. हालांकि, पूर्वी मेदिनीपुर में कुल आबादी की तुलना में मुस्लिम आबादी करीब 14.59 फीसदी है जबकि नंदीग्रीम में मुसलमानों की आबादी करीब 34 फीसदी है. नंदीग्राम में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 14.59 फीसदी है.


मोहम्मद रियाज आगे कहते हैं कि पश्चिम बंगाल  की मुख्यमंत्री की तरफ से नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान खुले दौर पर वहां के मौजूदा विधायक शुभेंदु अधिकारी को चुनौती देना है, जो नंदीग्राम आंदोलन के महत्वपूर्ण चेहरा थे लेकिन अब विधानसभा चुनाव से पहले वह टीएमसी से पाला बदलते हुए बीजेपी में जाकर मिल चुके हैं.


ममता के कदम के पीछे प्रशांत किशोर की रणनीति


प्रोसेसर रियाज के मुताबिक ममता बनर्जी का यह बहुत बड़ा कदम है और इससे यह जाहिर होता है कि विधानसभा चुनाव में कई महीने बाकी रहने के बावजूद जिस तरह इसका अचानक ऐलान किया गया है इस रणनीति के पीछे प्रशांत किशोर का दिमाग हो सकता है. इसके जरिए जहां वह एक तरफ शुभेंदु अधिकारी को उनके घर में चुनौती देंगी वहीं दूसरी तरफ राज्यभर में इसका व्यापक संदेश जाएगा कि पार्टी मोर्चे पर खड़ी होकर लड़ाई लड़ रही है.