नई दिल्ली : "ये घटना इस दुनिया की लगती ही नहीं. ये ऐसी दुनिया की घटना लगती है जहां इंसानियत मर चुकी हो. यकीन नहीं आता कि उस असहाय लड़की को दोषी मनोरंजन का सामान समझ रहे थे." निर्भया के हत्यारों को फांसी की सज़ा देते वक्त जस्टिस दीपक मिश्रा की टिप्पणी उनके चरित्र को बताने के लिए काफी है. कोमल मन वाला ऐसा शख्स जो बतौर जज सख्त फैसले लेने में नहीं चूकता.


भारत के 45वें मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहें जस्टिस दीपक मिश्रा की छवि कानून के साथ ही साहित्य और आध्यात्म की गहरी जानकारी रखने वाले जज की है. किसी मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस मिश्रा अचानक दुनिया भर के साहित्य से कोई अंश वकीलों के सामने रखते हैं. अगर वकीलों के उसके बारे में पता न हो तो वो उसके बारे बताते हैं और फिर समझाते हैं कि आखिर केस से उसका क्या संबंध है.

आध्यात्मिक-पौराणिक विषयों पर उनकी गहरी जानकारी भी अक्सर चर्चा का विषय बनती है. केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश मसले पर सुनवाई के दौरान उन्होंने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह से पूछा, "यतो धर्मस्ततो जय: का मतलब आप बता सकती हैं? ये सुप्रीम कोर्ट का आदर्श वाक्य है. हमारी कोर्ट में भी ये लिखा है. आपको पता है ये किसने कहा था?"

इंदिरा जयसिंह के अलावा कोर्ट में उस वक़्त के पराशरन जैसे दिग्गज वकील मौजूद थे. सुनवाई का मसला धर्म से जुड़ा होने के चलते कुछ धार्मिक विद्वान भी कोर्ट में थे. लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था. आखिरकार, जस्टिस मिश्रा ने बताया कि ये बात गांधारी ने अपने बेटे दुर्योधन से तब कही थी जब वो महाभारत के युद्ध में विजय का आशीर्वाद मांगने आया था. इसका अर्थ है जहाँ धर्म है, वहीं जीत है.

3 अक्टूबर 1953 को जन्में दीपक मिश्रा अगले साल 2 अक्टूबर तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहेंगे. पटना और दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस का पद संभालने के बाद वो 2011 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने. 1996 में उड़ीसा हाई कोर्ट में जज बनने वाले जस्टिस मिश्रा को बतौर जज 21 साल का अनुभव है. 1977 से 1996 तक वो उड़ीसा हाई कोर्ट के कामयाब वकीलों में से एक थे. वो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा के भतीजे हैं.

जस्टिस दीपक मिश्रा की बात करते हुए 29-30 जुलाई 2015 के बीच की रात की चर्चा न हो ये नामुमकिन है. रात के ढाई बजे अदालत के दरवाज़े खोल कर जस्टिस मिश्रा हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गए. इंसाफ होना ही नहीं चाहिए, होते हुए नज़र भी आना चाहिए के प्रसिद्ध वाक्य को हकीकत बनाते हुए जस्टिस मिश्रा अपने साथी जजों पी सी पंत और अमिताव राय के साथ रात ढाई बजे कोर्ट में बैठे. 1993 मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन के लिए.



29 मई की शाम को ही मैराथन सुनवाई के बाद उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने याकूब को अगली सुबह फांसी दिए जाने की पुष्टि की थी. इसके बावजूद रात में कुछ वकीलों के आवेदन पर वो दोबारा बैठे. सुबह 4.56 पर उन्होंने फैसला पूरा किया. उन्होंने कहा, "हम इस बात से सहमत हैं कि याकूब को परिवार से मिलने, कानूनी विकल्प आज़माने के पूरे मौके मिले. हर बार राष्ट्रपति को दया आवेदन भेजना फांसी पर रोक का आधार नहीं हो सकता."

मई 2016 में उन्होंने केंद्र की दलीलों को ठुकराते हुए उत्तराखंड विधानसभा में फ्लोर टेस्ट करवाया. हरीश रावत सरकार को दोबारा बहाल किया. सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने का आदेश भी जस्टिस मिश्रा ने ही दिया है. थानों में दर्ज एफआईआर की कॉपी 24 घंटे में वेबसाइट पर डालने का आदेश भी उन्होंने ही दिया है.

मुंबई में डांस बार में काम करने वाली महिलाओं से सहानुभूति दिखाते हुए जस्टिस मिश्रा ने शर्तों के साथ डांस बार चलाने की इजाज़त दी. नृत्य को संस्कृति का हिस्सा बताते हुए उन्होंने कहा, "अपराध रोकना सरकार का काम है. जो काम अपराध नहीं है, उस पर ये कह कर रोक नहीं लगाई जा सकती कि उसकी आड़ में अपराध हो सकता है. नृत्य करके अपना परिवार चलाने वाली महिलाओं की इज़्ज़त करिए."

रामजन्मभूमि विवाद पर पिछले दिनों हुई सुनवाई की अध्यक्षता जस्टिस मिश्रा ने ही की थी. वो ये साफ कर चुके हैं कि इस सुनवाई को अब और टाला नहीं जाएगा. उन्होंने 5 दिसंबर से मसले पर नियमित सुनवाई शुरू करने की बात कही है. माना जा रहा है कि अगले साल 2 अक्टूबर को रिटायर होने से पहले जस्टिस दीपक मिश्रा इस मामले पर फैसला कर सकते हैं.