नई दिल्लीः केंद्र की मोदी सरकार के 3 साल पूरे होने में बस 5 दिन बाकी हैं. विकास की राह पर ले जाकर युवाओं को रोजगार देने का वादा जो पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने किया था क्या वो पूरा हुआ? क्या मोदी राज में युवाओं के अच्छे दिन आए?


मोदी सरकार के 3 साल बनने के बाद
साल 2013 में आगरा की एक ऐतिहासिक रैली में मोदी ने कांग्रेस सरकार को रोजगार के मुद्दे पर घेर कर युवा पीढ़ी की दुखती रग पर हाथ रखा था. नरेंद्र मोदी ने भारत को युवाओं का देश बताते हुए उन्हें विकास की राह पर ले जाकर रोजगार का सपना दिखाया था.


युवाओं का वो सपना साकार हुआ या नहीं और क्या सरकार युवाओं को रोजगार देने का वादा पूरा कर पाई? 3 साल में कितने युवाओं को नौकरियां मिलीं और क्या देश में बेरोजगारी दर घटी ? मोदी सरकार में कितने बेरोजगारों का भला हुआ और क्या देश का युवा अपने पैरों पर खड़ा हो सका है?

मोदी सरकार में कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने कल ABP न्यूज के शिखर सम्मेलन समारोह में रोजगार के मोर्चें पर मोदी सरकार को 10 में से 10 नंबर दिए लेकिन आंकड़े कुछ और ही गवाही देते हैं. रोजगार पर जारी सरकार के ही आंकड़े कहते हैं कि पीएम मोदी को रोजगार देने के मोर्चे पर 10 में 10 नंबर देना साफ-साफ बेइमानी होगी.

केंद्र सरकार के लेबर ब्यूरो के आकंड़ों के मुताबिक




  • साल 2016 में बीजेपी सरकार ने मैन्यूफेक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड समेत 8 प्रमुख सेक्टर में सिर्फ 2 लाख 31 हजार नौकरियां दी हैं .

  • साल 2015 में ये आकंडा इससे भी कम था, 2015 में सिर्फ 1 लाख 55 हजार लोगों को नौकरियां मिलीं.

  • जबकि साल 2014 में 4 लाख 21 हजार लोगों को नौकरियां मिलीं.

  • मोदी सरकार के तीनों साल के आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो अब तक सिर्फ और सिर्फ 9 लाख 97 हजार नौकरियां दी हैं.

  • इसके इतर कांग्रेस ने दूसरी बार सरकार बनने के पहली साल यानी 2009 में 10.06 लाख नौकरियां दी थीं.

  • यानि मोदी सरकार 3 साल में उतनी नौकरी नहीं दे पाई जितनी की कांग्रेस सरकार ने 1 साल में ही दे दी थी. बावजूद इसके मोदी सरकार अब भी अपनी पीठ थपथपा रही है. रविशंकर प्रसाद रोजगार बढ़ाने की बात कर रहे हैं लेकिन जानकारी के लिए बता दें एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में अब भी 6 करोड़ 5 लाख 42 हजार लोग बेरोजगार हैं.


बीजेपी का घोषणापत्र
2014 के मेनीफेस्टो में रोजगार बढ़ाना बीजेपी के मुख्य एजेंडे में शामिल था, रोजगार बढ़ाने लिए बड़े-बड़े वादे भी किए गए थे लेकिन रोजगार को बढ़ाना तो दूर की बात है, बड़े महकमे में जो पद सालों से खाली है वो भी अब तक नहीं भरे जा पाए हैं.


देश में 14 लाख डॉक्टरों की कमी है. 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6000 पोस्ट खाली पड़ी हैं. IIT, IIM और एनआईटी में भी 6500 पद खाली पड़े हैं इंजीनियरिंग कॉलेज में 27 फीसदी शिक्षकों की कमी है. स्कूलों में पढ़ाने के लिए 12 लाख शिक्षकों की जरूरत है. महत्वपूर्ण पदों पर रिक्तियां और बेरोजगारी की वजह से विरोधी मोदी सरकार पर हमलावर हैं

अगर बात फैक्ट एंड फिगर पर की जाए तो 3 सालों में मोदी सरकार रोजगार देने के मामले में अब भी वो रफ्तार नहीं पकड़ पाई है, जो उसे पाना था. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मोदी सरकार इस दिशा में काम नहीं कर रही है. रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए मोदी ने अलग से कौशल विकास मंत्रालय बनाया, थर्ड-फोर्थ ग्रेड की सरकारी नौकरियों में धांधली रोकने के लिए इंटव्यू प्रक्रिया को खत्म कर दिया और इसका एलान खुद पीएम मोदी ने किया था.

फिलहाल के आंकड़े बताते हैं मोदी सरकार कुछ हद तक बेरोगारी कम करने में सफल हुई है, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और सीएमआईई के मुताबिक


बेरोजगारी की दर अगस्त 2016 के 9.5 फीसदी से घटकर फरवरी में 4.8 फीसदी पर आ गयी है. उत्तर प्रदेश में इस दौरान बेरोजगारी दर 17.1 फीसदी से घटकर 2.9 फीसदी और मध्य प्रदेश में 10 फीसदी से घटकर 2.7 फीसदी पर आ गई है.  रिपोर्ट के मुताबिक मनरेगा के तहत रोजगार हासिल करने वाले परिवारों की संख्या 83 लाख से बढ़कर 1.67 करोड़ हो गयी. 

ग्रामीण इलाकों के रोजगार के नए मौके मुहैया कराने पर सरकार का खास जोर है. यानि रोजगार देने के लिए मोदी सरकार कदम तो बढ़ा रही है, भले ही रफ्तार सुस्त है. 3 साल पूरे हो गए हैं और पीएम मोदी के पास अभी 2 साल बाकी हैं. अब देखना होगा कि इन बचे 2 सालों में एनडीए सरकार रोजगार की रेंगती रफ्तार को दौड़ा पाती है या नहीं.