सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत करने के लिए तीन वार्ताकारों को नियुक्त किया है. ये लोग हैं- वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन, पूर्व चीफ इंफोर्मेशन ऑफिसर वजाहत हबीबुल्लाह. ये लोग शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के साथ मुलाकात करेंगे और उन्हें जगह खाली करने के लिए आग्रह करेंगे.
जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ की बेंच ने माना कि प्रदर्शन करना जनता का अधिकार है लेकिन इससे लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए. पब्लिक रोड को ब्लॉक करना परेशानी पैदा करता है.
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बेंच ने कहा कि लोकतंत्र हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है लेकिन इसके लिए भी कुछ सीमाएं हैं. अगर मामला नहीं सुलझता तो हम संबंधित अधिकारियों से कहेंगे कि वे इस स्थिति से निपटें.
कौन हैं वार्ताकार-
संजय हेगड़े-
संजय सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और 1989 से वकालत के पेशे में हैं. 1989 में उन्होंने एलएलबी की पढाई बॉम्बे विश्वविद्यालय से की और फिर 1991 में एलएलएम की पढ़ाई भी यहीं से की.
हाल ही में दो बार उनका ट्विटर भी ब्लॉक कर दिया गया था. एक बार उन्होंने एंटी नाजी पिक्चर पोस्ट की थी और एक बार हिंदी कवि गोरख पांडे की कविता पोस्ट की थी.
आपको बता दें कि कई हाई प्रोफाइल मामलों में संजय वकील रह चुके हैं. राष्ट्रीय नागरिकता सूची से निकाले गए लोगों, मॉब लिंचिंग के मामलों और मुंबई के आरे जंगल के पक्ष में वे सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें रख चुके हैं.
संजय टीवी की बहसों में भी दिखाई देते हैं. संजय हेगड़े एक बड़ा नाम हैं और माना जा रहा है कि वे इस केस में अहम रोल निभाएंगे. वे बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे ताकि सभी पक्षों की बातों को सुना और समझा जा सके.
साधना रामचंद्रन-
साधना भी सीनियर एडवोकेट हैं जो मध्यस्थता के लिए जानी जाती हैं. 1978 से वे सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रही हैं. वे मानवाधिकार आयोग से जुड़ी रही हैं और कई बड़ी जांचों का भी हिस्सा रही हैं.
वे एक संगठन 'माध्यम इंटरनेशनल' की सीनियर वाइस प्रेसीडेंट हैं. इस संगठन का उद्देश्य मध्यस्थता मुहैया कराना है. साल 2006 से वे एक प्रोफेशनल मध्यस्थ हैं और कई बड़े मामलों में अपने सेवाएं दे चुकी हैं. इन मामलों में मध्यस्थता के निर्देश अदालतों ने दिए थे.
वजाहत हबीबुल्लाह-
वजाहत हबीबुल्लाह 1968 बैच के आईएएस थे जो अगस्त 2005 में रिटायर हुए थे. वे भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त भी रहे हैं. यही नहीं वे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं.
वजाहत, पंचायती राज मंत्रालय में भारत सरकार के सचिव रहे हैं. सीएए की संवैधानिक वैधता पर गंभीर आपत्तियों को लेकर नौकरशाहों ने जो खुला खत लिखा था उसमें वजाहत का नाम भी शामिल था.
अगस्त 2019 में जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को दो हिस्सों में विभाजित कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया था तब भी वजाहत ने इसकी आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि ऐसा करके लोगों की ताकत को कम किया जा रहा है.