नई दिल्ली: आज साल 2020 का आखिरी सुपर मून देखा जायेगा. ये मून अपने पूरे प्रभाव में शाम 4 बजकर 15 में दिखेगा. इस सुपर मून का नजारा हालांकि भारत के लोग नहीं देख पाएंगे. क्योंकि भारत में इस समय दोपहर होती है. अगले साल 27 अप्रैल 2021 को दोबारा ये मून दिखाई देगा. इन मून को फूल मिल्क मून या कोर्न प्लांटिंग मून के नाम से भी जाना जाता है. इंटरनेट के जरिए भारत के लोग इस मून का नजारा देख सकते हैं.
क्या है सुपर मून
आज बुध पूर्णिमा है. नासा की वेबसाइट के मुताबिक ये सुपर मून भारतीय समय के मुताबिक आज चार बजकर 15 मिनट पर दिखेगा. इस समय चांद पृथ्वी के सबसे नजदीक होगा. पूर्णिमा की तिथि के दिन चंद्रमा हमारे ग्रह यानि पृथ्वी के बहुत नजदीक आ जाता है. जिस कारण चंद्रमा का आकार विशाल और चमकीला दिखाई देता है.
चंद्रमा के कारण समुद्र में ऊंची ऊंची लहरें उठती हैं. समुद्र में आने वाला ज्वारा भाटा भी चंद्रमा से ही प्रभावित होता है. मार्च में भी दिखाई दिया था. सुपर मून जिसे वॉर्म मून कहा गया था. अप्रैल में भी सूुपर मून दिखाई दिया था. जिसे पिंक मून कहा गया था.
माना जा रहा है यह साल का आखिरी सुपर मून होने के कारण सबसे आकर्षक होगा. इस दिन चंद्रमा बेहद चमकदार नजर आएगा. इसकी छठा देखते ही बनेगी. दुनियाभर के लोग इस घटना को देखने का इंतजार कर रहे हैं. एक सुपरमून ऑर्बिट पृथ्वी के सबसे करीब होता है. इस दिन चंद्रमा विशाल और चमकते हुए गोले की तरह दिखाई देगा. इस दिन सुपर मून पृथ्वी से 3,61,184 किलोमीटर दूर होगा. आमतौर पर पृथ्वी और चंद्रमा के बीच औसत दूरी 384,400 किलोमीटर की है.
फ्लॉवर मून ही क्यों
मई माह में दिखाई देने वाले सुपर मून को फ्लॉवर मून कहा जाता है. वहीं मार्च महीने के सुपर मून को वॉर्म मून अप्रैल के सुपरमून को पिंक मून कहा गया. इसी तरह मई के सुपरमून को फ्लॉवर मून कहा जा रहा है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि पूर्ण चंद्र का नाम अमेरिकी मौसमों, फूलों और क्षेत्रों के नाम पर रखा गया है.
मई में दिखाई देने वाले सुपर मून का नाम उत्तरी अमेरिका में एलगोनक्विन जनजाति की देन है. इस जनजाति ने ही मई माह की पूर्णिमा को फ्लॉवर मून नाम दिया है. नासा के अनुसार एक वर्ष में तीन या चार सुपरमून हो सकते हैं. पिछली बार सुपरमून सात अप्रैल को देखा गया था.
नाम के पीछे का इतिहास
सुपरमून का नाम आमतौर पर लुभावने नामों पर रखा जाता है जैसे पिंक मून, एग मून और फ्लॉवर मून. परंपरागत रूप से, इन खगोलीय घटनाओं को मूल अमेरिकी मौसम, इलाकों या फूलों के नाम पर रखा गया है. पहली बार इसका नाम 1930 के दशक मे एक पंचांग में प्रकाशित किया गया था.
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