नई दिल्ली: पाकिस्तान की सीमा में दाखिल होने और स्पाइस बम को लॉक करने के बाद हमारा सारा ध्यान इस बात पर सबसे ज्यादा था कि वापस अपने देश की एयर-स्पेस में सुरक्षित वापस लौट आएं. महज़ डेढ़ मिनट यानि नब्बे सेकेंड में हमने अपना पूरा मिशन निपटा दिया था. ये कहना है बालाकोट एयर स्ट्राइक को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले दो जाबांज फाइटर पायलट का.


दिल्ली से करीब साढ़े तीन सौ (350) किलोमीटर दूर भारतीय वायुसेना के ग्वालियर एयरबेस के ऑप्स-रूम (ऑपरेशन रूम) में एबीपी न्यूज सहित देश के कुछ चुनिंदा डिफेंस-जर्नलिस्ट्स को 'ऑफ-कैमरा ऑफ-रिकॉर्ड', मिलने की इजाजत दी गई थी. लेकिन मुलाकात से पहले ही 'इंटरेक्शन' का नियम बता दिया गया था कि मिशन से जुड़ी 'ऑपरेशन्ल-डिटेल्स' ना तो पत्रकार पूछेंगे और ना ही बताई जाएगी. वायुसेना की इंटेलीजेंस विंग के एक सीनियर अधिकारी की मौजूदगी में ये अनौपचारिक बातचीत की गई, ताकि वो पत्रकारों के सवाल और पायलट्स के जवाब को 'वैट' यानि पूछना है या नहीं, या जवाब देना है या नहीं बताता रहे.


आपको बता दें कि बालाकोट में आतंकी संगठन, जैश ए मोहम्मद के ट्रैनिंग कैंप पर एयर-स्ट्राइक के ठीक चार महीने बाद ग्वालियर एयरबेस पर मीडिया को आमंत्रित किया गया था. हालांकि मौका करगिल युद्ध में ग्वालियर एयर बेस और यहां तैनात मिराज लड़ाकू विमानों की अहम भूमिका निभाने के 20 साल पूरे होने का था, लेकिन क्योंकि बालाकोट में एयर-स्ट्राइक में ग्वालियर एयरबेस से ही मिराज2000 लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी थी इसलिए बालाकोट में 'ऑपरेशन बंदर' को अंजाम देने वाले पायलटों से हमारी मुलाकात 'फाइटर टॉउन' में हो गई. आपको बता दें कि वायुसेना ने ग्वालियर को फाइटर टाउन का नाम दे रखा है और एयरबेस के ऑप्स-रूम के ठीक बाहर मिराज विमान की एक बड़ी तस्वीर के साथ 'फाइटर टाउन ऑफ एयरफोर्स' लिखा है.



पायलटों के मुताबिक, वे हरदिन अलग अलग तरह के ऑपरेशन्स को अंजाम देने की ट्रैनिंग करते हैं. पुलवामा हमले के बाद इस‌ ट्रैनिंग को और अधिक कड़ा कर दिया गया था. लेकिन पायलटों की मानें तो उन्हें 25 फरवरी की शाम करीब 4 बजे मिशन पर शामिल होने की जानकारी दी गई थी. हालांकि, पिछले दो दिनों से ही उन्हें रात में नहीं सोने दिया गया था और रात के अंधेरे में ऑपरेशन को अंजाम देने की प्रैक्टिस दी जा रही थी. 25 फरवरी की रात करीब दो बजे से उन्होनें एयरबेस छोड़ दिया था और 26 फरवरी की सुबह 4 बजे बेस में सुरक्षित वापस लौट आए.‌


जानकारी के मुताबिक, 26 फरवरी के तड़के 3.40 पर भारतीय वायुसेना के छह मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने जैश ए मोहम्मद के कैंप पर छह इजरायली गाईडेड प्रेसिशयन म्यूनिसेन, स्पाइस2000 बमों पर दागे थे।‌ पायलट्स के मुताबिक, ये इजरायली बम 'लॉक‌ एंड फॉरगेट' होते हैं। यानि जहां टारगेट करना होता है वहां के कोरडिनेट्स (लोंगिट्यूटड-लैटेटियटूड) इसके सॉफ्टवेयर में इलेक्ट्रोनेक्ली भर दिए जाते हैं और फिर कई किलोमीटर दूर से भी इसे लॉक कर दिया जाए तो करीब तीन मीटर के अंदर ये अपने टारगेट पर ही जाकर गिरता है। ये एक पैनिट्रेशन-बम है जो किसी भी बिल्डिंग या बंकर के अंदर छत या फिर भी दीवार से अंदर घुसता है और फिर अंदर जाकर इतनी हीट रिलीज करता है कि चंद सेकेंड में ही सबकुछ तबाह हो जाता है। भले ही बिल्डिंग के बाहर से आपको एक छोटा सा होल दिखाए दे लेकिन अंदर सबकुछ नष्ट हो जाता है। भारत ने भी दावा किया था कि बालाकोट एयर स्ट्राइक में जैश ए मोहम्मद के टॉप कमांडर्स सहित बड़ी तादाद में आतंकी मारे गए थे। एक अनुमान के मुताबिक, जैश के इस कैंप में एक समय में करीब 250-300 आतंकी ट्रैनिंग लेते थे।


एयर स्ट्राइक करने के बाद ग्वालियर आने पर उन्होनें क्या किया था, इस जवाब में दोनों पायलट कहते हैं कि वे जमकर सोए। क्योंकि दो दिन से वे सोए नहीं थी और मीडिया में 26 फरवरी की सुबह से ही खबर आने के बाद उनके परिवार और दोस्तों के फोन और व्हाटसअप मैसेज आने लगे थे इसलिए सभी पायलटों ने अपने फोन बंद किए और सो गए. इसके बहुत दिनों तक बाद भी वे ना तो अपने परिवारवालों से मिले और ना ही कोई छुट्टी ली. पायलट्स ने बताया कि ऑपरेशन बंदर इतना गोपनीय था कि उन्होनें अपनी पत्नी या फिर किसी दूसरे परिवावालें को मिशन में जाने की कोई जानकारी नहीं दी थी. लेकिन उनमें से एक पायलट कहते हैं कि मिशन को सफलतापूर्वक करने के बाद परिवार में उनका "सम्मान और बढ़ गया है।" मजाक में कहते हैं कि "पत्नी अब और ज्यादा प्यार करने लगी है."


ग्वालियर एयरबेस पर मिराज2000 लड़ाकू विमानों की कुल तीन स्कॉवड्रन (1,7 और 9 नंबर) मौजूद हैं. नंबर वन को टाईगर्स के नाम से जाना जाता है, सात को बैटेल-एक्सेस और नौ नंबर को वुल्फ-पैक के नाम से जाना जाता है। ऑपरेशन बंदर में इन तीनों ही स्कॉवड्रन ने हिस्सा लिया था.



हालांकि, इन दोनों पायलटों ने सुरक्षा कारणों से इस बात का खुलासा नहीं किया कि वे कौन‌सी स्कॉवड्रन से ताल्लुक रखते हैं. लेकिन जानकारी के मुताबिक, बालाकोट एयर स्ट्राइक के लिए मिराज फाइटर जेट्स के छह-छह एयरक्राफ्ट के दो पैकेज तैयार किए गए थे. पहले पैकेज ने स्पाइस बमों को जैश के टेरर कैंप पर दागा था और दूसरा पैकेज उन्हें एस्कोर्ट दे रहा था. आदमपुर बेस से आए सुखोई विमान और एक आईएल78 रिफ्यूलर एयरक्राफ्ट भी दूसरे पैकेज के साथ था. क्योंकि इन विमानों ने ग्वालियर से उड़ान भरने के बाद पारंपरिक एयर-रूट ना लेकर बरेली के ऊपर से उड़ते हुए हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के ऊरी से होते हुए पीओके में दाखिल हुए और फिर पाकिस्तान के ख्बैर-पखतुनख्वां में बालाकोट पर कुछ किलोमीटर की दूरी से ही स्पाइस बम दाग दिए थे.


इस सवाल पर कि मिराज में क्रिस्टल-ग्रैज नाम के अगर दू‌सरे बम इस्तेमाल किए होते तो उनके वीडियो के रूप में एयर स्ट्राइक के सबूत भी मिल सकते थे, इस‌सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि इसका फैसला 'ऊपर' से (यानि दिल्ली स्थित एयर-हेडक्वार्टर) से हुआ था कि स्पाइस बम से ही स्ट्राइक की जायेगी. लेकिन साथ में ये भी जोड़ देते हैं कि स्पाइस बम पप अगर कोर्डिनेट्स ठीक भरे गए हैं तो वो कभी अपने निशाने से चूकते नहीं हैं. तीन मीटर के दायरे में ही वे अपने टारगेट पर जाकर गिरते हैं.


इस‌ सवाल पर कि उन्होनें इन स्पाइस-बम पर कोई स्लोगन क्यों नहीं लिखा था जैसाकि करगिल युद्ध के दौरान किया गया था ('जोर का झटका धीरे से लगे' इत्यादि), एक पायलट ने कहा कि स्पाइस बम इतना सुंदर ('ब्यूटीफुल') है कि उसपर कुछ लिखने का मन नहीं किया.


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