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Explained: 'मुंबई के फेफड़े' आरे फॉरेस्ट को लेकर क्यों मचा है बवाल? जानें पूरा मामला

आरे पेड़ कटाई मामले को लेकर शिवसेना खुलकर सीएम देवेंद्र फडणवीस का विरोध कर रही है. आरोप है कि करीब 400 पेड़ रातो रात काट दिए गए. शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पेड़ काटने के खिलाफ दायर याचिकाएं इस आधार पर खारिज कर दी कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी में लंबित है.

नई दिल्ली: मुंबई के गोरेगांव में आरे कॉलोनी (Aarey Colony) में पेड़ काटने का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. पुलिस ने आज पूरे इलाके में धारा 144 लगा दी और इस मामले में 100 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया. मुंबई मेट्रो का कार शेड बनाने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने आरे कॉलोनी के जंगल के 2702 पेड़ काटने के आदेश दे दिए हैं. सरकार के इस आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) में याचिकाएं दायर की गई थीं जिन्हें इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी में लंबित है.

इसके बाद पेड काटने के लिए मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRCL) के लोग पहुंचे गए तो आरे बचाओ मुहिम के कार्यकर्ता उनसे भिड़ गए, जमकर हाथापाई हुई. झड़प इतनी बढ़ गई कि पुलिस ने विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया. आरोप है कि करीब 400 पेड़ रातों रात काट दिए गए. मुंबई में पेड़ काटने को लेकर अरसे से विरोध चल रहा है. महाराष्ट्र सरकार में सहयोगी शिवसेना भी पेड़ जाने के को लेकर विरोध कर रही है. पहली बार चुनावी मैदान में उतरे आदित्य ठाकरे ने कहा कि मुंबई मेट्रो के निर्माण के साथ प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में बात करना है संवेदनहीनता है. आरे के आसपास के क्षेत्र में पर्यावरण को तबाह किया जा रहा है.

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आजादी के कुछ साल बाद बनी थी आरे कॉलोनी, पंडित नेहरू ने लगाया था पहला पौधा आरे कॉलोनी को 'आरे मिल्क कॉलोनी' के नाम से भी जानते हैं, इस इलाके को आजादी के कुछ सालों बाद बसाया गया था. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने साल 1951 में पहला पौधा लगाकर इस घने जंगल वाली कॉलोनी की नींव रखी थी. पड़ों से ढंके इस पूरे इलाके का क्षेत्रफल करीब 3166 एकड़ में फैला हुआ है. आरे जंगल (Aarey Forest) का कुछ इलाका संजय गांधी नेशनल पार्क से भी जुड़ा हुआ है. इसे चोटा कश्मीर और मुंबई का फेफड़ा जैसे नामों से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि जो बॉलीवुड के प्रोड्यूसर डिरेक्टर अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए नैनीताल या कश्मीर नहीं जा पाते थे वो आरे जंगल (Aarey Forest) में ही फिल्म शूट करते थे.

Explained: 'मुंबई के फेफड़े' आरे फॉरेस्ट को लेकर क्यों मचा है बवाल? जानें पूरा मामला

मेट्रो विस्तार प्रोजेक्ट के चलते 'आरे जंगल' पर छाए संकट के बादल मुंबई में मेट्रो की आमद के साथ ही आर जंगल पर संकट के बादल चाने शुरू हो गई. मुंबई में साल 2014 वर्सोवा से लेकर घाटकोपर तक मेट्रो रेल सेवा की शुरुआत हुई. इसी के साथ ही मेट्रो के विस्तार पर विचार हुआ और फिर इसकी चपेट में आरे जंगल (Aarey Forest) भी आ गया. मेट्रो शेड बनाने के लिए आरे के 2700 से ज्यादा के पेड़ काटने की चर्चा शुरू हो गई. फिर सरकार ने इस फैसले पर मुहर लगाते हुए पेड़ों की कटाई का आदेश जारी कर दिया. इसके खिलाफ विरोध की आवाजें भी उठीं लेकिन वन विभाग की ओर से कहा गया कि जिस इलाके में पेड़ काटने की बात हो रही है वो जंगल नहीं है.

कानून की दहलीज़ पर पहुंचा मामला, अदालत ने भी कहा- ये जंगल नहीं बीएमसी से पेड़ काटने की इजाजत मिलने के बाद कई समाज सेवी संगठन इसके खिलाफ हाई कोर्ट पहुंच गए. की मशहूर हस्तियां भी इस मामले में सामने आईं और पेड़ काटने का विरोध किया. चार अक्टूबर को हाई कोर्ट ने भी कहा कि आरे कॉलोनी जंगल नहीं है और सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी में चल रहा है, इसलिए एक जैसा मामला होने के कारण खारिज कर रहे हैं. अब इस मामले में याचिकाकर्ताओं के पास सिर्फ देश की सबसे बड़ी अदालत का ही सहारा है.

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केंद्र सरकार का इस पूरे मामले पर क्या कहना है? पूरे विवाद के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पेट काटने के फैसले का समर्थन किया है. जावड़ेकर ने कहा कि हाई कोर्ट ने माना है कि 'आरे' जंगल नहीं है और जहां जंगल है, आप वहां पेड़ नहीं काट सकते हैं. पेड़ कटाई पर शिवसेना के विरोध के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है, अगर कहीं पेड़ काटे जाते हैं तो उससे अधिक लगाये भी जाते हैं.

जावड़ेकर ने दिल्ली मेट्रो का उदाहरण देते हुए कहा, ''दिल्ली में मेट्रो आज दुनिया में सबसे अच्छी मेट्रो है. बाहर के देशों के लोग यहां आकर मेट्रो को देखते हैं कि इसका विकास कैसे हुआ. जब पहला मेट्रो स्टेशन बना तो 20-25 पेड़ गिराने की जरूरत थी, तो लोगों ने इसका विरोध किया लेकिन एक पेड़ के बदले पांच पेड़ लगाये गये और पिछले 15 साल में पेड़ बड़े हो गये हैं. वहां 271 स्टेशन बने, दिल्ली का जंगल भी बढ़ा, पेड़ भी बढ़े और दिल्ली में तीस लाख लोगों के लिये सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था हुई. मतलब यही है कि विकास भी और पर्यावरण की रक्षा भी, दोनों साथ में हुये.''

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