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जानिए कैसे लोकतंत्र की आड़ में देश की गरिमा को पहुंचाया जाता है नुकसान, बढ़ता है आंतरिक सुरक्षा का खतरा

लोकतंत्र की आड़ में कभी कभी देश की आंतरिक सुरक्षा को भी नुकसान पहुंचाया जाता है. हाल में हुए किसान आंदोलन में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब कुछ प्रदर्शनकारी किसानों ने देश की छवि खराब करने की कोशिश की.

भारत फले-फूले. अमन-शांति क़ायम रहे. प्रसिद्धि और समृद्धि निरंतर बढ़े. हर भारतवासी चाहता है. मुल्क की तरक्की की इस सोच के दुश्मन मगर कम नहीं. येन-केन प्रकारेण देश के ये दुश्मन कुछ न कुछ साज़िश रचते रहते हैं. देश के ज़िम्मेदार लोग खुफिया और सुरक्षा तंत्र इसका माकूल जवाब देते हैं. मगर कई बार वोटों की सियासत देश का नुक़सान भी करती हैं.

लोकतंत्र की आड़ में देश की आंतरिक सुरक्षा का लहू बहाने की कई कोशिशें बड़ी जल्दी-जल्दी देश ने देखी हैं. देश ने देखा कि कैसे CAA के खिलाफ हुए आंदोलन ने हिंसक रुख अख्तियार किया और दिल्ली की कानून व्यवस्था को धुआं कर दिया गया. निर्दोषों की हत्या की गई, पब्लिक प्रोपर्टी को जलाया गया और जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि साजिश के पीछे पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का हाथ था. साजिश वाले ये हाथ हाथरस कांड के बाद के हालात को दंगे में तबदील कर देने के लिए भी उठे थे. हंगामा बड़ा हो गया था लेकिन वक्त रहते साजिश का पता चल गया और केरल से चले पीएफआई के कुछ दंगा विशेषज्ञ चट्टे बट्टे मथुरा में एक्सप्रेस-वे पर पकड़ लिए गए और पीएफआई की साजिश की कलई खुलकर सामने आ गई. किसान आंदोलन के दौर में भी आशंकाएँ उभर रही हैं कि इस संगठन की साजिश यहां भी हो सकती है जिसकी जांच जारी है.

बीते कुछ सालों में जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिन घटनाओं से देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा हुआ है उसमें पीएफआई का नाम जरूर सामने आया है. हिन्दुओं पर हिंसा से लेकर ISIS लड़ाके मुहैया कराने तक की साजिश में पीएफआई का पर्दे के पीछे से रोल दिखा है. फेहरिस्त तो 2006 से चली आ रही है और साजिशों का ये सूत्र 27 साल पुराना है. ये वो पीएफआई है जिसने 2009 में देश के मुसलमानों को केवल शरिया अदालतों में जाने और यकीन करने के लिए उकसाया. इतना ही नहीं ये वही खतरनाक सोच और कार्यप्रणाली वाला संगठन है जिसके मुखपत्र में ओसामा बिन लादेन को शहीद बताया गया था.

पीएफआई की सोच आतंक से लेकर आंतरिक सुरक्षा पर चुनौतियों तक बहुत खतरनाक है. इस संगठन ने जबरन धर्मांतरण और लव जिहाद की साजिशों की मुहिम देश में चला रखी है. केवल केरल की बात करें तो वहां की पुलिस पीएफआई के जरिए किए गए 97 जबरन धर्मांतरण की रिपोर्ट NIA को दे चुकी है और 94 लव जिहाद के मामले NIA की जांच के दायरे में हैं. विदेशी लिंक और फंडिंग का जाल ऐसा है कि विवादित हदिया केस मामले में पीएफआई ने कानून लड़ाई के लिए 1 करोड़ रुपए बड़ी आसानी से खर्च दिए थे.

पुड्डुचेरी में पीएफआई ने एक कार्यक्रम किया और उसमें संगठन ने खुद को कोरोना काल का मसीहा बताने की कोशिश की और इस दावे पर सरकारी ठप्पा लगवाने के लिए राज्य के सीएम वी.नारायणसामी को आमंत्रित किया. पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता वी.नारायणसामी पीएफआई के देशविरोधी कारनामों को जानते हुए भी उसके कार्यक्रम में पहुंचे और इस संगठन के तारीफों में कसीदे पढ़ डाले.

कोरोना तो कोरोना, सूबे के सीएम इतने गदगद हुए कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की तारीफ में यहां तक बोल गए कि 2004 में आई सुनामी के दौरान भी सेवा करने के मामले में सबसे बड़ा मसीहा पीएफआई ही था, जबकि हकीकत ये है कि 2004 में इस संगठन का निर्माण ही नहीं हुआ था. तारीफों के ऐसे तारत्म्य की उम्मीद शायद पीएफआई को भी नहीं रही होगी सो फौरन उसने पूरा भाषण अपने ऑफिसियल फेसबुक पेज पर डाला और सीएम साहब भी खुद कृतार्थ मानते हुए पीएफआई के कार्यक्रम में जाने का सौभाग्य जनता से साझा कर दिया. एक ऐसा संगठन जिसके ऊपर 600 आपराधिक मुकदमे पूरे देश में चल रहे हों. एक ऐसा संगठन जो हिंदूओं की हत्या और उनके खिलाफ साजिश रचने के लिए कुख्यात है। जाहिर सी बात है कि ऐसे संगठन से सियासी सूरमाओं की गलबहियां खतरनाक हैं. लेकिन ये गलबहिया हुई, खुल कर हुई और बता गई कि दलों की सत्तालोलुप राजनीति अब इतनी स्तरहीन हो चुकी है कि शायद देश की आंतरिक सुरक्षा से भी समझौता करने के लिए पलक पावड़े बिछाए बैठी है. अगर ऐसा न होता तो वी. नारायणसामी किसी कीमत पर पीएफआई के मंच पर नहीं जाते, अगर जाते तो सुधर जाने का संदेश देकर आते। लेकिन जो वी.नारायणसामी ने किया वो ऐसा कृत्य है तो उनके साथ ही साथ उनकी पूरी पार्टी की विचारधारा को सवालों के घेरे में खड़ा करता है. इस राजनीति के पीछे राज की बात ये है कि दरअसल अगले साल होने जा रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर्स का सरकार बनाने में अहम रोल होगा. पुड्डुचेरी में इसी हित को साधने के लिए सीएम नारायणसामी उस संगठन के मंच जाकर सुशोभित हो गए जिसने केरल को कन्नूर में टेरर कैंप खड़ा कर देने की हिमाकत की और इस बात का जिक्र 2013 में NIA ने स्पेशल NIA कोर्ट में किया। और ये किसी भी कीमत पर माना नहीं जा सकता कि सीएम नारायणसामी को इन तथ्यों की जानकारी नहीं होगी. फिर सवाल ये है कि क्या अल्पसंख्यकों को साधने के लिए सियासत कुछ भी करेगी और देश उसे बर्दाश्त करे? तुष्टिकरण की सियासत में सूरमाओं ने अपने मंसूबे इतने खतरनाक कर लिए हैं तो फिर ये राज की बात आपसे साझा करना हमारी जिम्मेदारी बन जाती है. पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की एक और खतरनाक करतूत जान लीजिए. ISIS के लिए ये संगठन कंसलटेंटी सरीखा हो चुका है. कई सदस्य ISIS जंग लड़ने के लिए रिक्रूट होकर सीरिया का रुख भी कर चुके हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि सत्ता तो जरूरी है लेकिन आतंकवादी विचारधारा के साथ मंच साझा करना क्या संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को शोभा देता है. क्या संवैधानिक पद पर बैठे शख्स को ऐसे विध्वंसकारी सोच को शाबाशी देना शोभा देता है?

पीएफआई ने ये भी रणनीति बनाई है कि अलग अलग हथकंडों के माध्यम से वो सियासी सूरमाओं को साधेगी, अपने मंच पर बिठाएगी और खुद को महिमामंडित करवाती रहेगी. ठीक वैसे ही जैसा वी.नारायणसामी करके आए हैं. मतलब साफ है कि पीएफआई को अगले साल आने वाले चुनाव और उसमें मुस्लिम वोटर्स की भूमिका एक मौके की तरह दिख रही है क्योंकि पीएफआई को पता है कि वी. नारायणसामी जैसे नेताओं की कमी इस देश में नहीं है जो सत्ता के तुष्टीकरण का हर तार तोड़कर आगे बढ़ सकते हैं. नारायणसामी की तारीफों के बाद पीएफआई गदगद है और सुरक्षा एजेंसियां इस सदमे में कि जब राज्य का मुखिया ही आतंकवादी सोच के साथ मंच साझा कर बैठेगा तो फिर हालात आने वाले वक्त में कितने खतरनाक हो सकते हैं.

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